इंटरनेट की मदद से असम की महिलाएं बढ़ा रही हैं अपना बिज़नेस
इंटरनेट साथी की मदद से अब तक एक लाख से भी अधिक ग्रामीण महिलाओं को इंटरनेट के बारे में जागरूक किया जा चुका है। इनमें से कुछ महिलाएं अपने पति को भी उनके क्षेत्र में इंटरनेट के जरिए जानकारी देती हैं।
असम के ग्रामीण इलाकों में ग्राम्य विकास मंच की ओर से 'इंटरनेट साथी' नाम का एक प्रोग्राम क्रियान्वित किया जा रहा है, जिसकी मदद से वहां कि महिलाओं की ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुकी है। असल में इस बदली हुई ज़िंदगी की सबसे बड़ी वजह इंटरनेट है। मोबाइल और इंटरनेट के सहारे वहां की महिलाएं अपना बिज़नेस तेज़ी से बढ़ाते हुए दुनिया भर के डिज़ाइन्स को अपनी हथेली (यानि कि मोबाइल) पर देख रही हैं और कई नये प्रयोग कर रही हैं। इंटरनेट उनके काम को बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें हर दिन कुछ ना कुछ नया सीखने में भी मदद कर रहा है।
फोटो साभार: villagesquare
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इंटरनेट साथी की शुरुआत मार्च 2016 में हुई थी। ये महिलाएं टैबलेट और फोन लेकर साइकिल से गांव-गांव घूमती हैं और अपनी कोशिश से गांव की महिलाओं की जिंदगी बदलने का प्रयास करती हैं। ये प्रॉजेक्ट नालबाड़ी में ग्राम्य विकास मंच के सहारे क्रियान्वित किया जा रहा है।
इंटरनेट साथी गूगल और टाटा ट्रस्ट का एक संयुक्त प्रोग्राम है जिसके माध्यम से गांव की कुछ पढ़ी लिखी लड़कियां बाकी महिलाओं को इंटरनेट से रूबरू कराती हैं और इसके जरिए उनकी मदद भी करती हैं।
निजारा तालुकदार की उम्र 30 के आस-पास है। वह गांव की बाकी महिलाओं की तरह ही गरीबी में पली बढ़ीं और गांव में ही बुनकर का काम करती हैं, जिससे उन्हें थोड़ी बहुत कमाई हो जाती थी, लेकिन अब वे 'इंटरनेट साथी' को धन्यवाद देती हैं जिसकी मदद से उनके बिजनेस और उनकी आय में 30 से 40% की बढ़ोत्तरी हो गई है। इंटरनेट साथी गूगल और टाटा ट्रस्ट का एक संयुक्त प्रोग्राम है जिसके माध्यम से गांव की कुछ पढ़ी लिखी लड़कियां बाकी महिलाओं को इंटरनेट से रूबरू कराती हैं और इसके जरिए उनकी मदद भी करती हैं।
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निजारा का घर असम के बास्का जिले में पड़ता है। बास्का जिला बोडोलैंड आतंकी जिले वाले इलाके में आता है। पिछले कई सालों से वे कपड़े बुनने के लिए वही डिज़ाइन इस्तेमाल करती थीं जो उनकी मां ने सिखाया था। कुछ सीमित डिज़ाइन्स होने के नाते वे ग्राहकों को लुभाने में नाकाम रहती थीं, लेकिन अब वे इंटरनेट पर कई तरह के नये डिज़ाइन्स देखकर कपड़े बुनती हैं, जिससे उनकी सेल काफी बढ़ गई है। निजारा बताती हैं, कि 'सेल तो बढ़ी ही है, साथ में ग्राहकों ने मेरे काम को सराहना भी शुरू कर दिया है। मेरे कुछ पुराने ग्राहक भी हैं जिन्होंने और सामान खरीदने का वादा किया है।' शुरूआती दिनों में निजारा को थोड़ी दिक्कतें ज़रूरी हुईं, लेकिन अब वे आसानी से इंटरनेट पर नये डिज़ाइन्स खोज लेती हैं। अब वे एक पीस को 400 रुपये तक बेच लेती हैं। इसके अलावा वे चादोर मेखेला (वहां की महिलाओं का परंपरागत पहनावा) को 1,200 रुयपे तक बेचती हैं। यानी उनके बिजनेस में अब 30-40% की ग्रोथ हुई है।
इंटरनेट की मदद से अपना बिज़नेस बढ़ाने वाली सिर्फ अकेली निजारा ही नहीं हैं, बल्कि इंटरनेट ने असम के ग्रामीण इलाकों की कई महिलाओं की जिंदगी बदल दी है।
इंटरनेट से अपना बिजनेस बढ़ाने वाली निजारा अकेली नहीं हैं। असम के ग्रामीण इलाकों की कई महिलाओं की जिंदगी इंटरनेट ने बदल दी है। एक और महिला भैरबी देबी (जो कि निजारा के बराबर ही कमा लेती हैं) कहती हैं, 'हमारा बिजनेस बढ़ाने में इंटरनेट साथी का बहुत बड़ा योगदान है। मुझे नहीं पता था कि मैं दुनियाभर की डिजाइनों को अपनी हथेली पर देख सकती हूं। अब मैं कई तरह की डिजाइन बना सकती हूं और कई दूसरे कपड़ो के लिए भी डिजाइन सीख रही हूं।'
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इंटरनेट साथी की शुरुआत मार्च 2016 में हुई थी। ये महिलाएं टैबलेट और फोन लेकर साइकिल से गांव-गांव घूमती हैं और अपनी कोशिश से गांव की महिलाओं की जिंदगी बदलने का प्रयास करती हैं। ये प्रोजेक्ट नालबाड़ी में ग्राम्य विकास मंच के सहारे क्रियान्वित किया जा रहा है। इंटरनेट साथी से जुड़ी हुई प्रतिमा दास कहती हैं, कि 'गांव की अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी महिलाओं को इंटरनेट से रूबरू करवाना काफी मुश्किल काम था, क्योंकि उन्हें स्मार्टफोन और टैबलेट का कोई आइडिया ही नहीं था। लेकिन हमारे सभी इंटनेट साथी कि बदौलत आज वे अच्छे से इंटरनेट पर अपने मन पसंद डिजाइन खोज लेती हैं।'
प्रतिमा ने गांव की कम से कम 12 महिलाओं को इंटनेट चलाना सिखा चुकी हैं। गांव की महिलाओं के अलावा स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को इसके माध्यम से एंपावर किया जा रहा है।
दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली मधुमिता दास इंटरनेट की मदद से नई तरह की पेंटिग सीख चुकी है। इस प्रोजेक्ट को हेड करने वाले ग्राम्य विकास मंच के वाइस प्रेसीडेंट प्रांजल चक्रवर्ती का कहना है, कि वे ग्रामीण इलाकों की 90% प्रतिशत महिलाओं को ट्रेनिंग देना चाहते हैं। उनके अनुसार 'काम में मददगार होने के साथ ही इंटरनेट से महिलाएं अब देश दुनिया की जानकारी से रूबरू रहती हैं और अपने अधिकारों के बारे में भी जानकारी रखने लगी हैं।'
इंटरनेट साथी की मदद से अब तक एक लाख से भी अधिक ग्रामीण महिलाओं को इंटरनेट के बारे में जागरूक किया जा चुका है। इनमें से कुछ महिलाएं अपने पति को भी उनके क्षेत्र में इंटरनेट के जरिए जानकारी देती हैं। जैसे किसी महिला का पति खेती किसानी करता है, तो वे उन्हें बीज खाद और मौसम के बारे में जानकारी देती हैं। कुछ महिलाओं ने शादी विवाह के लिए मेकअप की भी ट्रेनिंग इंटरनेट से ले ली है और वे इस क्षेत्र में काम कर के अच्छा पैसा कमा रही हैं। इतना ही नहीं महिलाएं अब पेटीएम भी करना सीख रही हैं। आने वाले समय में ये महिलाएं डिजिटल ट्रांजक्शन के माध्यम से भी पेमेंट लेने लगेंगी।