136 साल के इतिहास में पहली बार एक महिला होगी हार्वर्ड लॉ रिव्यू की प्रेसिडेंट
15 अप्रैल, 1887 को हार्वर्ड लॉ रिव्यू का पहला अंक प्रकाशित हुआ.
1817 में हार्वर्ड लॉ स्कूल की स्थापना हुई, जो अमेरिका का पहला लॉ स्कूल था. 15 अप्रैल, 1887 को हार्वर्ड लॉ रिव्यू का पहला अंक प्रकाशित हुआ, जो इस लॉ स्कूल से निकलने वाली पहली मैगजीन थी. हालांकि इस पत्रिका का संपादन हार्वर्ड लॉ स्कूल के विद्यार्थी करते हैं, लेकिन आज पूरी दुनिया में वकालत के पेशे से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, इस मैगजीन के नाम से वाकिफ न हो.
136 साल हो गए इस मैगजीन को छपते हुए, लेकिन आज तक किसी महिला स्टूडेंट को इस पत्रिका का नेतृत्व करने का गौरव हासिल नहीं हुआ. 136 सालों में यह पहली बार है महिला स्टूडेंट हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू की हेड बनी है.
अप्सरा अय्यर भारतीय मूल की अमेरिकन नागरिक हैं और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में लॉ की दूसरे वर्ष की छात्रा हैं.
सोमवार को जब अप्सरा अय्यर को हार्वर्ड लॉ रिव्यू का हेड चुना गया तो उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य इसके संपादन की प्रक्रिया को ज्यादा से ज्यादा पारदर्शी बनाना और संपादकीय भूमिकाओं में ज्यादा लोगों को शामिल करना है.
आज दुनिया भर के मीडिया में अप्सरा अय्यर के प्रेसिडेंट चुने जाने की खबर सुर्खियों में हैं. 136 साल के इतिहास में पहली बार किसी महिला को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है और दुनिया इसे सेलिब्रेट कर रही है.
हार्वर्ड लॉ स्कूल की स्थापना को 206 साल हो चुके हैं, लेकिन उसके बाद 133 साल लगे महिलाओं को इस स्कूल के दरवाजे तक पहुंचने में. अपनी स्थापना के बाद तकरीबन 130 साल तक इस स्कूल में महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाता था.
1900 के बाद से इसे लेकर आवाजें उठने लगीं और मांग की जाने लगी. हालांकि हार्वर्ड लॉ स्कूल एकमात्र ऐसी जगह नहीं थी, जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. 1920 तक दुनिया की किसी भी यूनिवर्सिटी के दरवाजे महिलाओं के लिए नहीं खुले थे.
यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज, इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ बोलोग्ना (University of Bologna), स्पेन की यूनिवर्सिटी ऑफ सलामांका (University of Salamanca), फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ पेरिस और पुर्तगाल की यूनिवर्सिटी ऑफ कोइंब्रा (University of Coimbra) दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटीज हैं, लेकिन इनमें से किसी के दरवाजे 1920 के दशक तक महिलाओं के लिए नहीं खुले थे.
ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज और येल जैसी दुनिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज कुछ कोर्सेज में महिलाओं को दाखिला जरूर देती थीं, लेकिन उन्हें डिग्री नहीं दी जाती थी.
हार्वर्ड लॉ स्कूल के दरवाजे महिलाओं के लिए पहली बार 1950 में खुले. 1953 में उस कॉलेज से कानून की डिग्री लेकर निकलने वाले पहले बैच में एक महिला विद्यार्थी भी थी.
हार्वर्ड की लाइब्रेरी में आज 1953 के बैच के स्टूडेंट्स की एक पेंटिंग लगी है, जिसमें पहली बार स्टूडेंट्स के बीच एक लड़की की भी तस्वीर दिखाई देती है. उसी लाइब्रेरी में एक और तस्वीर लगी है, 1956 के बैच की. इस तस्वीर में आगे से दूसरी पंक्ति में बाईं ओर एक लड़की खड़ी है. यह लड़की कोई और नहीं, बल्कि रूथ बादेर गिंसबर्ग हैं, जो आगे चलकर अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट की जज बनीं.
रूथ बादेर गिंसबर्ग होने के क्या मायने हैं, यह उस देश की हर वो लड़की जानती है, जो आज अपने नाम से बैंक अकाउंट खुलवाती है, क्रेडिट कार्ड रखती है, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाती है और अपने नाम से घर खरीदती है. औरतों को यह सारे अधिकार दिलाने का श्रेय रूथ बादेर गिंसबर्ग को जाता है.
आज न सिर्फ हार्वर्ड लॉ स्कूल के दरवाजे लड़कियों के लिए खुले हैं, बल्कि क्लास में उनकी संख्या भी लड़कों से ज्यादा है. अब वो टॉप कर रही हैं, प्रेसिडेंट चुनी जा रही हैं. ये उपलब्धियां तब हैं, जब इस दौड़ में शामिल हुए लड़कियों को 70 साल भी नहीं बीते.
लेकिन बदलाव तो ऐसे ही होता है. एक लड़की, फिर दो लड़कियां, फिर दस, बीस, पचास. और एक दिन हजारों लड़कियां. यह सबकुछ एक सिलसिले की कड़ी है, जिसकी शुरुआत बहुत साल पहले हुई थी. आज सेलिबेशन का दिन है.
Edited by Manisha Pandey