जब पहले कस्टमर को ऑर्डर डिलीवर करने में Flipkart फाउंडर्स के छूट गए थे पसीने!
शुरुआत में लोगों को ईकॉमर्स कंपनियों पर भरोसा नहीं होता था. फ्लिपकार्ट ने कैश ऑन डिलीवरी और नो क्वेश्चन रिटर्न पॉलिसी लाकर पूरा खेल ही बदल दिया, जिसके बाद कंपनी की सेल्स 20 गुना बढ़ गई. अगस्त 2012 में $15 करोड़ की फंडिंग मिलने के बाद फ्लिपकार्ट यूनिकॉर्न बन गई.
आज हम छोटी-बड़ी हर चीज के लिए ईकॉमर्स कंपनियों पर इस कदर निर्भर हो चुके हैं कि खुद हमें इस बात का अंदाजा नहीं है. मगर ईकॉमर्स कंपनियों को ये भरोसा जीतने में एक दशक से ऊपर का समय लगा है. किसी भी शख्स को जब ऐसी चीज के लिए एडवांस पेमेंट देनी पड़े जिसकी उसने सिर्फ तस्वीर भर देखी हो तो ठगे जाने का खयाल आना काफी जायज है.
ईकॉमर्स इंडस्ट्री के शुरुआती दौर में कंपनियों के लिए कस्टमर का ट्रस्ट जीतना ही सबसे बड़ी परेशानी थी. कंपनियों लाख कोशिशों के बाद भी कस्टमर्स को प्लैटफॉर्म पर नहीं ला पा रही थीं. मगर तब से लेकर आज का माहौल पूरी तरह बदल चुका है. लोगों की शक भरी निगाहों को भरोसे में बदलने में सबसे बड़ा हाथ रहा है फ्लिपकार्ट का. आइए जानते हैं क्या है फ्लिपकार्ट? इंडिया में लोगों का भरोसा जीतने के लिए कौन सा तरीका अपनाया, और कैसे खड़ी कर दी बिलियन डॉलर की कंपनी!
आपको लेकर चलते हैं फ्लैशबैक में. साल था 2005 और जगह थी IIT दिल्ली का लैब. बीटेक स्टूडेंट सचिन बंसल और बिन्नी बंसल एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में पहली बार यहीं मिले, और दोस्त बन गए थे. हालांकि तब दोनों को नहीं मालमू था कि 2 साल बाद दोनों इंडिया के इतिहास में एक माइलस्टोन खड़ा करने वाले हैं. बीटेक खत्म करके सचिन और बिन्नी दोनों नौकरी के लिए बेंगलुरु पहुंचे. 2006 में सचिन ने ऐमजॉन को जॉइन किया और कुछ महीने बाद बिन्नी भी ऐमजॉन में आ गए.
वहां काम करते हुए दोनों को महसूस हुआ कि इंडिया के पास खुद का ऐमजॉन क्यों नहीं हो सकता? चूंकि 1999 से लेकर 2007 तक इंडिया में ऑनलाइन कंपनियों की बाढ़ लग चुकी थी. इसलिए दोनों ने सोचा क्यों न लोगों को एक और साईट देने की बजाए उन्हें एक ऐसा टूल दिया जाए जहां वो अलग अलग प्लैटफॉर्म के प्रॉडक्ट के दाम की तुलना कर सकें.
किताबों के साथ शुरू किया था बिजनेस
2007 में दोनों ने 4 लाख रुपये लगाकर अपने बिजनेस की शुरुआत की. लेकिन जब उन्होंने काम शुरू किया तो उन्हें समझ आया कि इंडिया जो ईकॉमर्स साइट अभी मौजूद हैं वो बिल्कुल भी यूजर फ्रेंडली नहीं थे. यूजर इंटरफेस, एक्सपीरियंस दोनों ही लो क्वॉलिटी के थे. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि इंडिया को इस समय कंपेरिजन साइट की नहीं बल्कि एक दमदार ईकॉमर्स वेबसाइट की जरूरत है.
फिर शुरुआत हुई ईकॉमर्स वेबसाइट फ्लिपकार्ट की. आज हमें फ्लिपकार्ट की साइट पर इलेक्ट्रॉनिक्स, अप्लायंसेज, और मेन्स एंड वुमन फैशन वियर, स्पोर्ट्स इक्विपमेंट जैसी कैटिगरी आपको दिखाई देती हैं, मगर उनकी साइट नॉन फिक्शन, बायोग्राफी, फिक्शन, हिस्ट्री, धर्म और अध्यात्म जैसी कैटिगरी से भरी थी.
जी, हां फ्लिपकार्ट ने शुरू शुरू में किताबों के साथ अपना बिजनेस शुरू किया था. ऐसा नहीं है कि फ्लिपकार्ट ही अकेले ऑनलाइन बुक सेलिंग का काम कर रही थी और भी कई साईट थीं लेकिन वो सक्सेसफुल नहीं थीं. सचिन और बिन्नी ने इसकी वजह समझने के लिए मार्केट रिसर्च किया. उन्हें समझ आया कि ऑनलाइन बिजनेस में कस्टमर का भरोसा जीतना सबसे बड़ा अहम फैक्टर था, जो अन्य प्लैटफॉर्म नहीं दे पा रहे थे.
अपने पहले इंटरव्यू में बिन्नी बंसल ने लिखा, इंडिया में ईकॉमर्स के स्लो ग्रोथ की एक सबसे बड़ी वजह है कस्टमर सपोर्ट पर न फोकस नहीं करना. कंपनियां कस्टमर्स को जो वादा कर रही थीं, उसे निभा नहीं पा रही थीं. यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी और हम इसे ही अपने यूएसपी बनाना चाहते थे. जिस शख्स ने बिन्नी का पहला इंटरव्यू लिया वो फ्लिपकार्ट के पहले कस्टमर भी थे. वीवीके चंद्रा खुद की वेब कंसल्टेंसी वेबसाइट| चलाने के अलावा टेक और इंटरनेट के ऊपर एक ब्लॉग भी लिखते थे.
सक्सेस स्टोरी के अगले चैप्टर पर चलेंगे लेकिन उससे पहले जरा एक यू टर्न लेते हैं फ्लिपकार्ट के पहले कस्टमर पर की कहानी पर….
चंद्रा, यानी की पहले कस्टमर को किताबें पढ़ने का बहुत शौैक था. वो किताबों के लिए हर दिन हैदराबदा से तेलंगाना चार घंटे आने-जाने में बिताते थे. चंद्रा एक बार एक किताब लेने 4 घंटे ट्रैवल करके जब स्टोर पहुंचे तो मालूम पड़ा कि वहां वो किताब है ही नहीं. अब उनके फ्रस्ट्रेटेशन का लेवल सोच सकते हैं. अपने ब्लॉग पर ही कमेंट्स के जरिए वीवीके को किसी तरह फ्लिपकार्ट के बारे में मालूम पड़ा औरर उन्होंने उस किताब के लिए ऑर्डर दे दिया.
पहले ऑर्डर में ही झेल गए फाउंडर्स
अब आता है क्लाइमैक्स, पहला ऑर्डर पाकर सचिन और बिन्नी बड़े एक्साइटेड थे. मगर पसीने तब छूटे जब 2 दिन बाद भी उन्हें किसी भी बुक स्टोर से पॉजिटिव जवाब नहीं मिला. जब सचिन और बिन्नी को लगा कि किताब नहीं मिलने में मुश्किल आ रही तो उन्होंने चंद्रा को एक माफी भरा मेल लिखकर भेज दिया. चंद्रा के ऊपर इसका काफी पॉजिटिव असर पड़ा.
उधर किताब को ढूंढने की कोशिश जारी थी. आखिर में उन्हें एक बुक स्टोर पर वो किताब मिल गई. डिलीवरी में देरी होने के कारण फ्लिपकार्ट ने चंद्रा को किताब पर कुछ डिस्काउंट दिया और माफी भी मांगी. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान बंसल चंद्रा को लगातार अपडेट भेजते रहे. किताब पाने से ज्यादा चंद्रा फ्लिपकार्ट के कस्टमर सपोर्ट से इंप्रेस थे. खुश होकर उन्होंने फ्लिपकार्ट के लिए एक प्यारा से रिव्यू लिखा.
देखते-देखते फ्लिपकार्ट का बिजनेस काफी तेजी से ग्रो करने लगा. तीन महीने में कंपनी ने 20 शिपमेंट पूरे कर दिए. 6 महीने के अंदर कंपनी पूरी तरह प्रॉफिटेबल बन चुकी थी. सचिन मैक्रो मैटर को देखते थे और बिन्नी माइक्रो. दोनों को फाउंडर की जोड़ी ने फ्लिपकार्ट को उसी तरह हिट बना दिया जैसे जय वीरू की जोड़ी ने शोले को बनाया था.
खुलने के एक साल एक महीने बाद ही कंपनी 4 करोड़ रुपये की बिक्री कर चुकी थी. सचिन और बिन्नी ने फ्लिपकार्ट को अभी तक अपने पैसों से ही बढ़ाया था. लेकिन बिजनेस को ऊपर पहुंचाने के लिए आपको अच्छे खासे फंड की जरूरत पड़ती है. इसी मकसद के साथ अक्टूबर 2009 में कंपनी ने 1 मिलियन डॉलर का पहला फंड जुटाया. 2009 के आखिर तक कंपनी के पास 150 से ज्यादा एंप्लॉयी और तीन ऑफिस हो चुके थे.
फ्लिपकार्ट पहली ऐसी ईकॉमर्स कंपनी थी जो प्रॉफिट कमा रही थी, दूसरी तरफ उससे पहले से बिजनेस शुरू करने वाली ऑनलाइन कंपनियां कुछ खास नहीं कर सकीं. हर कोई इसकी वजह तलाश रहा था. लोग अंदाजा लगा रहे थे कि शायद इंडिया में लोग ऑनलाइन खरीदारी के बजाय दुकानों और स्टोर पर ज्यादा भरोसा करते हैं. मगर फ्लिपकार्ट के सक्सेस ने इस अंदाज को पूरी तरह गलत साबित कर दिया. फ्लिपकार्ट के सक्सेस होने के पीछे सबसे बड़ा क्रेडिट जाता है कस्टमर सेंट्रिक अप्रोच को. यानी बिजनेस से ज्यादा कस्टमर के एक्सपीरियंस के बेहतर बनाने पर, जो उन्होंने ऐमजॉन पर काम करते हुए सीखा था.
फ्लिपकार्ट किताबों के सेगमेंट में नंबर वन ईकॉमर्स साइट भी बन चुकी थी. साल 2010 में टाइगर ग्लोबल से 10 मिलियन डॉलर का निवेश मिलने के बाद कंपनी ने पोर्टफोलियो बढ़ाने का सोचा और फिर एक रिस्की एक्सपेरिमेंट किया. प्लैटफॉर्म पर मोबाइल फोन बेचने का ट्रायल शुरू हुआ. समय बीतता गया किताबों की सेल्स कई गुना होती गई लेकिन मोबाइल फोन की सेल्स फीकी ही रही. सचिन और बिन्नी को समझ में आया कि लोग सामान तो खरीदना चाहते हैं मगर उन्हें ऑनलाइन सर्विस पर भरोसा नहीं है. ईकॉमर्स के नाम पर लोगों के जहन में ऑनलाइन क्रेडिट कार्ड पेमेंट, टूटे फूटे सामान की डिलीवरी, थकाऊ रिफंड की पॉलिसी ही बसी हुई थी.
सचिन और बिन्नी ने इस छवि को बदलने के लिए दो इनोवेशन पेश किए, जो उसके लिए हुकुम का इक्का साबित हुए. पहला था कैश ऑन डिलीवरी और दूसरा था नो क्वेश्चन रिटर्न पॉलिसी. इसका इतना दमदार रेस्पॉन्स मिला की कंपनी की टोटल सेल्स 2 साल में ही 20 गुना बढ़कर 75 करोड़ डॉलर पर पहुंच गई. इस सेल्स में किताबों की हिस्सेदारी तो थी मगर फोन, कम्प्यूटर एक्सेसरी, कैमरा एक्सेसरी जैसी चीजों का भी हिस्सा बढ़ने लगा.
दूसरी यूनिकॉर्न कंपनी का टैग
फ्लिपकार्ट के दिन बड़ी तेजी से बदल रहे थे. अगस्त 2012 में 15 करोड़ डॉलर Iconic कैपिटल और MIH से जुटाने के बाद फ्लिपकार्ट यूनिकॉर्न कंपनी बन गई. लेकिन खुद यूनिकॉर्न टर्म ही पहली बार 2013 में आया था. इसलिए फ्लिपकार्ट के वैल्यूएशन 1 अरब डॉलर पार पहुंचने वाली खबर को ज्यादा भाव नहीं मिला. फ्लिपकार्ट इनमोबी के बाद यूनिकॉर्न बनने वाली दूसरी यूनिकॉर्न कंपनी है. इसी के साथ फ्लिपकार्ट की छवि एक ईकॉमर्स कंपनी से बदलकर सबसे बड़ी, सबसे ज्यादा फंडेड, सबसे ज्यादा वैल्यू वाली 'दी ईकॉमर्स कंपनी' हो गई.
मगर दूसरी तरफ कॉम्पिटीशन का मार्केट भी तैयार हो रहा था, फरवरी 2010 में स्नैपडील, और जून 2013 में ऐमजॉन इंडिया भी लॉन्च हो गई. सचिन और बिन्नी इस वॉर को पहचान चुके थे, उन्हें मालूम था जिस हिसाब से कॉम्पिटीशन बढ़ रहा है अगर उसमें 50 करोड़ डॉलर के फंड से कुछ नहीं होगा. इसके बाद तो उन्होंने गजब ही कर दिया दोगुने की जगह चार गुना मतलब करीबन 2 अरब डॉलर का फंड जुटाया, उनके इनवेस्टर्स में DST ग्लोबल, टाइगर ग्लोबल, नैस्पर्स, आईकॉनिक, एक्सेल, मॉर्गन स्टैनली, GIC, स्टेडव्यू कैपिटल जैसे बड़े नाम शामिल थे.
एक्विजिशन
फ्लिपकार्ट इस पूरे गेम को शतरंज की तरह खेल रही थी, एक दम अलर्ट दिमाग के साथ. एक तरफ धमाकेदार तरीके से फंडिंग जुटाई जा रही थी तो दूसरी तरफ कंपनी धड़ाधड़ एक्विजिशन कर रही थी. 2014 में कंपनी ने मिंत्रा को 2 हजार करोड़ रुपये में खरीद लिया. 2016 में एक अन्य फैशन प्लैटफॉर्म जबांग को 7 करोड़ डॉलर में खरीद लिया, जिसे फरवरी 2020 में बंद भी कर दियागया या यूं कहें कि मिंत्रा के साथ मिला दिया गया. इन दोनों एक्विजिशन की बदौलत आज उसके पास फैशन सेगमेंट में 60 पर्सेंट मार्केट शेयर है. फ्लिपकार्ट यहीं नहीं रुकी, उसने 2016 में फोनपे और फिर 2017 में ईबेडॉटइन को भी खरीद लिया.
खट्टे अनुभव भी रहे
हालांकि फ्लिपकार्ट की सक्सेस जर्नी जितने मीठे एक्सपीरियंस से भरी है इसमें उतने ही खट्टे एक्सपीरियंस भी हैं. एक बार वापस फिर यू टर्न लेते हैं औऱ चलते हैं 2011 में, उस समय फ्लिपकार्ट का इलेक्ट्रॉनिक सेगमेंट अच्छा खासा चलने लगा था. कंपनी ने अक्टूबर 2011 में मुंबई की डिजिटल कंटेंट फर्म माइम360 को खरीदा. ये कंपनी कई म्यूजिक लेबल्स के लिए म्यूजिक स्ट्रीमिंग की सर्विस देती थी. फ्लिपकार्ट ने इसे खरीदकर फ्लाइट नाम से अपना म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म बनाया, हालांकि यह वेंचर ज्यादा दिन चला नहीं और बंद करना पड़ा. मगर इसने 1 लाख के करीबन यूजर बना लिए थे जो फ्लिपकार्ट के हिसाब से कम थे.
कंपनी के लिए फ्लाइट को रखना फाइनैंशली काफी भारी पड़ रहा था, इसलिए उसे 2013 में बंद कर दिया गया. उसी साल पेजिपी नाम से पेमेंट गेटवे भी चालू किया लेकिन इससे भी फ्लिपकार्ट को कुछ खास फायदा नहीं हुआ. इसलिए 9 महीने के अंदर उसे भी बंद कर दिया. उन्होंने पेमेंट स्पेस में खुद का वेंचर शुरू करने की बजाय एनजीपे में और एफएक्स मार्केट में मेजॉरिटी स्टेक लेकर इस स्पेस में एंटर किया, और फिर 2016 में फोनपे को भी खरीद लिया. अपनी एग्रेसिव अप्रोच की वजह से फ्लिपकार्ट के पास इस समय इंडिया का 32 पर्सेंट मार्केट शेयर है. 31 पर्सेंट ऐमजॉन के पास है और बाकी अन्य साइट्स के पास.
फ्लिपकार्ट की पूरी कहानी असल मायने में एक आंत्रप्रेन्योरियल स्पिरिट को दिखाती है. कोई फरक नहीं पड़ता आप दो लोगों की टीम हैं या 100 लोगों की. आप एक पूरी बिल्डिंग में कारोबार शुरू कर रहे हैं या एक 2 बीएचके के फ्लैट में अगर आपने में जज्बा है तो आप सफल जरूर होंगे. आप गलतियां भी करेंगे लेकिन इसके बाद भी अगर आप दुनिया की 50 इकॉनमी की जीडीपी से ज्यादा का फँड जुटा ले रहे हैं तो इन गलतियों में कोई हर्ज भी नहीं है.
वॉलमार्ट ने खरीद लिया
लेकिन कहानी अभी बाकी मेरे दोस्त. एक दशक में एक कस्टमर से लेकर 20 अरब डॉलर की कंपनी, कई सब्सिडियरी कंपनी और 30000 से ज्यादा एंप्लॉयीज तक बढ़ने के बाद कोई और था जिसने फ्लिपकार्ट को ही खरीद लिया. वो कंपनी थी वॉलमार्ट, उसने 16 अरब डॉलर देकर फ्लिपकार्ट में 77 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीद ली. मगर कंपनी ने शर्त रखी कि उन्हें फ्लिपकार्ट में एक ही सीईओ चाहिए. बिन्नी को सीईओ चुना गया और सचिन ने 1 अरब डॉलर लेकर कंपनी को अलविदा कह दिया. मगर 6 महीने बाद ही बिन्नी ने भी कंपनी को अलविदा कह दिया.
बिन्नी पर अपने निजी फायदे के लिए गलत फैसले लेने का आरोप था, उन पर जांच भी बैठी मगर इस बारे में कुछ ठोस सबूत नहीं मिले. जनवरी 2017 में टाइगर ग्लोबल में एक्जिक्यूटिव कल्याण कृष्णमूर्ति को फ्लिपकार्ट का सीईओ बना दिया गया. आज वॉलमार्ट की हिस्सेदारी फ्लिपकार्ट में बढ़कर 82 पर्सेंट हो चुकी है. सचिन बंसल ने फाइनैंशल सेक्टर के स्टार्टअप नावी को जॉइन कर लिया है. बिन्नी एक्स10एक्स टेक्नॉलजी फर्म के जरिए स्टार्टअप्स को अपने बिजनेस को स्केल करने में मदद कर रहे हैं.