नॉन-वेज नहीं खाने वालों के लिए यह स्टार्टअप बना रहा शाकाहारी मीट, धोनी ने लगा रखा है पैसा
जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, जानवरों और धरती के लिए अपने प्यार और ज़िम्मेदारी की वजह से बहुत लोग अपनी जीवन शैली में बदलाव लाते हुए प्लांट बेस्ड मीट अपना रहे है. प्लांट बेस्ड मीट पौधों से मिलने वाली सामाग्रियों से तैयार किया जाता है, लेकिन स्वाद में मीट जैसा होता है. यही वजह है कि पूर्णतः पौधे आधारित सामग्रियों से बना होता है इसलिए इसे guilt-free meat भी कहा जाता है.
इस जीवन शैली को अपनाने की वजह या इस बिजनस में इन्वेस्ट करने के पीछे लोगों का उद्देश्य अपने खान-पान की आदतों और इच्छाओं को ऐसा ढालना है जिससे धरती पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े.
यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों में FMCG (एफएमसीजी) बनाने वाली बड़ी कंपनियां मांसाहारी उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए पौधा-आधारित मांस सेगमेंट में प्रवेश करने लगी हैं और आने वाले समय में इनकी संख्या और बढ़ जाने की संभावना है. दो साल पहले ही खोले गए इस सेगमेंट का कारोबार वर्ष 2030 तक लगभग एक अरब डॉलर होने का अनुमान है. इनकी खपत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि प्लांट-बेस्ड मीट प्रोडक्ट्स ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और बड़े महानगरों में बड़ी खुदरा श्रृंखलाओं में भी मिलने लगे हैं. सिंगापुर साल 2020 में ही पहला देश बन गया जिसने cultured meat की बिक्री को अनुमति दे दी. भारत में डोमिनोज और स्टारबक्स जैसी कई श्रृंखलाओं ने भी अपनी सूची में प्लांट-बेस्ड मीट प्रोडक्ट्स को जगह दी है. टाटा समूह की एक कंपनी ने एक नए ब्रांड ''टाटा सिम्पली बेटर'' के तहत पौधा-आधारित मांस उत्पादों की श्रेणी में कदम रखा है. इस क्षेत्र में अब स्टार्टअप भी कदम रख रहे है. ‘शाका हैरी’ एक ऐसा ही स्टार्टअप है जो प्लांट बेस्ड मीट के भोजन व स्नैक प्रोडक्ट की रिटेल का एक फेमस ब्रांड बन चूका है.
शाका हैरी फिलहाल हर महीने 10 शहरों में 30,000 से ज्यादा ग्राहकों को सर्विस दे रहा है. स्विगी इंस्टामार्ट, बिग बास्केट और जेप्टो जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी उपलब्ध है. इसके अलावा ऑफलाइन प्रोडक्ट बेचने के लिए कंपनी ने मेट्रो और नेचर बास्केट जैसे सुपरमार्ट्स के साथ भी पार्टनरशिप की है.
प्लांट-बेस्ड मीट के मार्केट और 'शाका हैरी' की सफलता को समझने के लिए योरस्टोरी हिंदी ने 'शाका हैरी' के को-फाउंडर आनंद नागराजन से बात की.
योरस्टोरी हिंदी: 'शाका हैरी' से पहले का सफ़र आपका कैसा था?
आनंद: मैं स्टार्टअप इकोसिस्टम में दो दशकों से हूं. पहला स्टार्टअप एजुकेशन सेक्टर में ई-लर्निंग से जुड़ा था. फिर सप्लाई-चेन मैनेजमेंट के बिजनस में रहा. उसके बाद एनर्जी बिजनस की तरफ़ रुख हुआ, सोलर और विंड एनर्जी डेवलपमेंट सेक्टर में. कहीं न कहीं सस्टेनिबिलिटी की तरफ झुकाव इसी दौर में हुआ. हालांकि, फूड सेक्टर का ख्याल कोविड के दौरान ही आया और लिबरेट फूड की शुरुआत तभी हुई.
योरस्टोरी हिंदी: सस्टेनिबिलिटी सेक्टर आज के दौर में बहुत बड़ा मार्केट है, फूड सेगमेंट में ही आना कैसे हुआ?
आनंद: मैं शाकाहारी घर में पैदा हुआ हूं. बिजनस के सिलसिले में देश से बाहर होने के मौके बहुत आते थे और उधर शाकाहारी खाना बहुत आसानी से मिलता नहीं था. लेकिन उससे ज़रूरी बात ये कि वेज खाना जहां मिलता भी था, खासकर थाईलैंड या ऐसे अन्य देशों में, वहां का वेज खाना हाई-ग्लूटन, हाई-सोडियम लेवल का होता था जो लॉग-टर्म में नुकसानदेह साबित हो सकता है. यू.एस. के ट्रिप के दौरान फूड सेक्टर में टेक्नोलोजी और सस्टेनेबिलिटी एंगल की तरफ ध्यान गया और शायद उस ट्रिप के बाद से मैं फूड इंडस्ट्री को एक्सप्लोर करने में काफी इन्टरेस्टेड था.
योरस्टोरी हिंदी: मुझे पूरा यकीन है मेरा अगला सवाल आपसे बहुत बार पूछा जा चूका होगा. फिर भी आप यह बताएं कि मीट नहीं खाना है, पर मीट खाने का आभास चाहिए, इस साइकोलॉजी को आप कैसे देखते-समझते हैं?
आनंद: इसको तीन तरह से देख सकते हैं. पहला: जब इनकम लेवल बढ़ता है तो प्रोटीन की डिमांड ज्यादा हो जाती है, लोग बेटर सोर्सेस ऑफ़ प्रोटीन की तरफ आकर्षित होने लगते हैं. दूसरा: हमारे देश में ही देख लीजिये, मीट खाने के अलग-अलग तरीके होते थे. मीट पहले हम कभी कभार, फेस्टिवल में खाते थे. फलां दिन को खायेंगे, फलां को नहीं; कुछ ख़ास महीने में मीट नहीं ही खाया जाता था. मीट हमेशा से हमारे लिए ‘साइड ऑफ़ प्लेट,’ नॉट ‘सेंटर ऑफ़ प्लेट’ रहा है. कुछ दशकों में ये सब बदला. मीट की खपत बड़ी है. अब देखिये, आज मैं जिस तरह का खाना खाता हूं, मेरे पुरखे नहीं खाते थे. हम आस पास ही देखें तो महानगरों में ‘ऑरेगैनो’ इटली से आ रहा है, ‘मिलेट’ ऑस्ट्रेलिया से आता है. ग्लोबल कंज्यूमर्स की ग्लोबल देमंड्स. अब वो दिन गए जब हम अपने ही खेतों या बैकयार्ड में उगाये हुए खाने पर आश्रित होते थे.
सिंपल मैथ्स है- हम अनाज उगाते हैं. जो जानवर खाते हैं. फिर हम जानवर को खाते हैं.
कहीं न कहीं आप सोचते हैं कि आखिर यह सस्टेनेबल भी है? खासकर बढती हुई जनसंख्या को देखते हुए. क्या हमारे पास इतना नैचुरल रिसोर्सेस है कि सबको खाना मिले? और यहीं पर सस्टेनेबल लाइफ स्टाइल का एंगल आता है. सस्टेनेबल लाइफ स्टाइल यही है कि हमारे खुद के विकल्पों के चुनाव के कारण कोई जीव ना मरे.
योर स्टोरी हिंदी: मैं समझती हूं कि हमारी दुनिया मानव-केन्द्रित है इसलिए इसमें मानव के अलावा और किसी भी तरह के लाइफ-फॉर्म्स की कीमत इंसानों द्वारा ही तय की जायेगी. इस परिपेक्ष्य में, जानवरों का जिंदा रहना हमारे ऊपर निर्भर है, कोई यह कह नहीं सकता है कि पेड़-पौधों की तरफ हमारा ध्यान कब तक जाएगा. हमारे प्लेट पर प्लांट-बेस्ड मीट तो आ सकता है; लेकिन फैशन, कोस्मेटिक्स, मेडिसिन तो जानवरों पर ही टेस्ट किए जाते हैं, और इन इंडसट्रीज में एनिमल के एब्यूज पर कोई बात होती नहीं दिखती; तब लगता है कि सिर्फ खाने पर ही ध्यान देने से बात नहीं बनेगी. आप इस पूरे बिजनस को नैतिकता के सवाल पर कितना फिट पाते हैं?
आनंद: एक कंज्यूमर के तौर पर पर्यावरण या जानवर आपकी पहली प्रायरिटी नहीं होती है. हमें लगता है अगर ‘शाका हैरी’ आज के कंज्यूमर्स को लगातार अलग-अलग तरीके से प्लांट-बेस्ड मीट के टेस्टी वैरिएंट सप्लाई करता रहेगा तो कंज्यूमर्स उन आइटम्स में दिलचस्पी दिखाएंगे और धीरे-धीरे इसे पर्यावरण से जोड़कर भी देखना शुरू कर सकते हैं.
जहां तक और इंडसट्रीज की बात है तो फैशन में मशरूम-बेस्ड लेदर का चलन बढ़ा है. कॉसमेटिक्स की दुनिया में भी एनिमल पर टेस्ट करने के चलन पर भी बात-चीत शुरू हो चुकी है. मुझे लगता है धीरे-धीरे ये परिस्थिति और बेहतर होगी.
योरस्टोरी हिंदी: ‘शाका हैरी’ नाम के साथ कैसे आए, ये बताइए.
आनंद: बेसिकली, ‘शाका हैरी’ में ‘शाका’ हमारे इंडियन रूट्स की तरफ इशारा करता है और ‘हैरी’ हमारे ग्लोबल ऐसपीरेशंस कैप्चर करता है.
योरस्टोरी: ‘शाका हैरी’ की यूएसपी क्या है?
आनंद: पहला तो यह कि हम खाने को लेकर ह्युमन विहेवियर अच्छी तरह से समझते हैं और साथ ही साथ फूड टेकनॉलजी पर भी हमारी अच्छी पकड़ है. दूसरा ये कि ‘शाका हैरी’ देश के कुछ चुनिंदा कंपनियों में है जो उत्पाद की पूरी टेक प्रक्रिया को खुद से करती है. फूड बेस को सेलेक्ट करने से लेकर रेसिपी और रेसिपी का फ्लेवर हम खुद तैयार करते हैं.
इसके अलावा, हमारे ब्रांड एसोसिएशन भी कमाल के रहे हैं.
प्लांट प्रोटीन के स्पेस में काम कर रहे दो ग्लोबल कंपनियों ने शाका हैरी में निवेश किया है. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने हमारे स्टार्टअप में निवेश किया है. माही के आने से इस सेक्टर को भी बूस्ट मिलने की उम्मीद है. धोनी और हमारी समझदारी इस बात पर भी मेल खाती है कि हम दोनों यह मानते हैं कि संतुलित आहार हम सबके लिए ज़रूरी है. जैसा कि धोनी ने कहा भी कि हालांकि चिकन उन्हें बहुत पसंद है लेकिन अब वह संतुलित आहार लेना पसंद करते हैं, और प्लांट बेस्ड मीट पारंपरिक मीट आइटम्स की तुलना में एक स्वस्थ अनुभव प्रदान करते हैं. इसके साथ ही हम यह भी समझते हैं कि ऐसे कितने मरीज़ हैं जिन्हें मीट ऐह्तेयातन मना है पर प्रोटीन की ज़रूरत है. लोगों का अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक होना इस मार्केट के बढ़ने का संकेत है.
योर स्टोरी हिंदी: ‘प्लांट’ से ‘मीट’ तैयार करना- सुनने में विरोधाभाषी लगते हैं. प्लांट से टेबल पर प्लांट बेस्ड कीमा लाए जाने की प्रक्रिया हमें समझाएं.
आनंद: प्रक्रिया मल्टिपल स्टेप्स की होती है. सबसे पहला स्टेप ‘बेस’ तैयार करने का होता है, फिर ‘सबस्ट्रेट’ तैयार किया जाता है. सोया, बीन्स, मुश्रूम प्रोटीन का सोर्स होते हैं. बेसिकली इनसे ही मीट का ‘फाइबर’ तैयार होता है जिसकी ‘व्हाइट’ या ‘रेड’ मीट की ‘मास्किंग’ की जाती है, फिर इन्हें फ्राई या प्लेन मीट की तरह तैयार किया जाता है. फिर ‘फ्लेवरिंग’ और उसके बाद ‘सीजनिंग.’ मनु चंद्रा इस स्टेप पर अपने हाथों का कमाल दिखाते हैं- कीमा तैयार करना हो या समोसा- मीट के टेस्ट प्रोफाइल से यह तय किया जाता है.
योर स्टोरी हिंदी: अभी ‘शाका हैरी’ किन शहरों में है? और भविष्य को लेकर क्या प्लान्स हैं?
आनंद: प्लांट-बेस्ड मीट का मार्केट आज के दौर में बहुत दिलचस्प है. अभी हम भारत के 10 शहरों में हैं. पूने, कोयम्बटूर, अहमदाबाद में इसकी बहुत डिमांड है. आने वाले महीनों में हम अपने 10 शहरों पर ही फोकस रखना चाहते हैं क्योंकि यहीं से हमें लगभग 80 फीसदी रेवेन्यु प्राप्त हो जाता है.