पहली बार किन्नरों का हुआ सामूहिक विवाह, सीएम भी पहुंचे आशीर्वाद देने
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों के हक में फैसला सुनाते हुए उन्हें पूरे संवैधानिक अधिकार प्रदान किया था। इससे उनकी जिंदगी को आसान बनाने की एक शुरुआत हो गई थी। हालांकि अभी समाज में ट्रांसजेंडर्स को अपने पूरे अधिकार प्राप्त करने के लिए काफी लड़ाई लड़नी पड़ेगी, लेकिन इसकी शुरुआत हो चुकी है। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में किन्नरों का सामूहिक विवाह संपन्न हुआ। इस शादी में 15 किन्नर जोड़े शामिल हुए। जिन्हें आशीर्वाद देने के लिए खुद प्रदेश के सीएम पहुंचे।
बीते 31 मार्च को रायपुर में यह शादी संपन्न हुईं जिसमें दूल्हों की बारात निकाली गई। यह बारात सिविल लाइन से होते हुए अंबेडकर भवन, घड़ी चौक, कालीबाड़ी से टिकरापारा होते हुए बारात पुजारी पार्क स्थित मंडप में पहुंची। जहां वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पंडित जी ने यहा पर किन्नरों की शादी संपन्न कराई।शादी पूरे सनातन रीति रिवाजों के साथ हुई। हवन पूजन करने के साथ ही पुरूषों ने अपने साथी की मांग भरी, उन्हें मंगलसूत्र पहनाया। इस दौरान पुरुषों के परिवार के लोग भी पहुंचे और अपनी बहू को आशीर्वाद देकर स्वीकार किया।
इस शादी समारोह में छत्तीसगढ़ से 6 जोड़ों के अलावा महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात, बिहार और मध्य प्रदेश से आए जोड़ों की शादियां हुईं। इस शादी का खास आकर्षण बन गई देश की पहली मिस ट्रांस क्वीन वीणा सेंद्रे। वो भी शादी समारोह में शामिल होने के लिए बतौर मेहमान पहुंची थी। उनको देखकर युवा ऐसे आकर्षित हुए कि उनके साथ सेल्फी लेने की होड़ मच गई। बारात में किन्नर समाज के लोगों ने ढोल-ताशों पर जमकर डांस किया।
एक तरह से देखें तो उनके लिए जीवन में ऐसा पहला मौका था, जबकि सार्वजनिक रूप से उनकी स्वीकार्यता को इतना महत्व दिया गया। ऐसे में दूसरों की शादी में नाचकर खुशियां बांटने वाला किन्नर समुदाय पहली बार खुद के लिए जश्न मना रहा था। इस दौरान बारात में शामिल मिस ट्रांस क्वीन वीणा सेंद्रे भी खुद को नहीं रोक सकीं। उनके भी पैर बैंड की धुन पर थिरक उठे और उन्होंने भी जमकर डांस किया। शादी में पहुंचे सभी मेहमानों ने नवविवाहित जोड़ों को आशीर्वाद दिया और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।
इस सामूहिक अनोखी शादी समारोह के पीछे विद्या राजपूत का योगदान था जो कि खुद किन्नर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे बताती हैं कि किन्नरों को परिवार का उपेक्षित हिस्सा माना जाता था और कोई भी उनकी जोड़ी के बारे में नहीं सोचता था। यह हमारे भीतर अकेलेपन और एक तरह के सामाजिक बहिष्कार का गहरा दुःख था। वे कहती हैं कि इस तरह के सामूहिक विवाह आयोजन से समाज की मानसिकता बदलेगी और समाज में एक अच्छा संदेश जाएगा। विद्या कहती हैं कि किन्नरों को भी प्यार करने का अधिकार है।
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