इंटरनेट, मोबाइल, ह्वाट्सएप के दौर में आदमी के रोबोट बन जाने की आज़ादी
आधुनिक नागरिक स्वंतत्रताओं के इस प्रयोगवादी दौर में साइंस की हैरतअंगेज तरक्की के बीच अब आजादी की बात, किसी एक दिन तक सीमित नहीं, बल्कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम, मीटू, टिकटॉक, कुटू, हिरून, डिजिटल घुमक्कड़ी से लेकर आदमी के रोबोट बन जाने तक पहुंच गई है।
राजनीति के अलावा टेक्नोलॉजी, परिवहन, विज्ञान, पर्यावरण, सोशल मीडिया, इंटरनेट, मोबाइल, वाट्सएप, विश्व बाजार ने जीवन के तमाम मोरचों पर भारत की 'नागरिक स्वतंत्रता' के मायने बदल दिए हैं। इस आधुनिकतम किस्म की नागरिक स्वतंत्रताओं के दौर में मोबाइल इंटरनेट कनेक्टिविटी का अगला चरण 5जी वायरलेस नेटवर्क के ऐसे पड़ाव की ओर है, जब चालक विहीन कार, रोबोट, स्मार्ट सिटी के लिए आइक्यू से अधिक एक्यू की अहमियत हो गई है। साइंस की तरक्की के साथ अब ध्यान भटकने से बचाने वाला ऐप, वक़्त बचाने वाली संचार तकनीक, नौकरी पर रखने और निकालने में मददगार स्वचालित मशीन, शारीरिक क्षमता पर नज़र रखने वाली बायोमेट्रिक सीवी, सेहत और उत्पादकता दोनों में सुधार लाने वाली दफ़्तर की बिल्डिंग, सह-आवासीय साझा घर, कार-मुक्त शहर, दंपति की ग़ैर-बराबरी, सोशल मीडिया पर रसूखदार लोगों के लिए क्राउडफ़ंडिंग और जॉय बुओलैम्विनी जैसे लोगों के एल्गोरिद्म न्याय के लिए मशीनें, नस्ल और लिंग तक का भेदभाव करने वाली हैं। अपने-अपने रोजमर्रा के दबावों में हमारा ध्यान आने वाले वक़्त की इस अजीबोगरीब नागरिक स्वतंत्रताओं की ओर नहीं है।
तेज, तरक्कीशुदा जमाने में पूरी दुनिया में सरहदें लांघती नागरिक स्वतंत्रताओं के मायने दिन दूनी, रात चौगुनी रफ्तार से बदल रहे हैं। दबे पांव अब आने वाले कुछ ही दशकों में पूरे ग्लोबल विश्व को बदल डालने पर आमादा यह दौर हमारे इर्द-गिर्द नागरिक स्वतंत्रताओं की ऐसी-ऐसी लक्ष्मण रेखाएं खींच रहा है, जिसमें सौ साल जीने की संभावनाओं के साथ नए लोकप्रिय पर्यटन ठिकानों पर केंद्रित लग्ज़री, वाई-फ़ाई लैस डिजिटल घुमक्कड़ी, अर्थव्यवस्थाओं के सिकुड़ने के फ़ायदे गिनाती डिग्रोथिंग, डिजिटल डिटॉक्सिंग, एस्टोनिया की तरह ई-रेजिडेंसी, आरामतलबी के नाम पर सूट-टाई की जगह कैजुअल टी-शर्ट, जींस-जैकेट जैसे बदलाव भी नई तरह की नागरिक स्वतंत्रताओं में अपना स्थान सुरक्षित करते जा रहे हैं। इन्ही स्थितियों में वित्तीय आज़ादी हासिल करने, जल्दी रिटायर होने की जीवनशैली के साथ सप्ताह में सिर्फ चार दिन काम करने की उम्मीदें, लैटिन अमरीका की फ्रेडी वेगा और घाना के फ्रेड स्वानिकर मॉडल वाली शिक्षा प्रणाली, गिग इकॉनमी, रिश्ता ख़त्म करने की ऑनलाइन डेटिंग की तरह नौकरी बाज़ार में भी जगह बनाने की प्रतिस्पर्धाएं हमारी नागरिक स्वतंत्रताओं में चिह्नित हो चुकी हैं।
सफ़ेद पोश नौकरियां घटने और अपना बॉस ख़ुद होने की आजादी मांग रहे इस दौर में कंपनियां बिना किसी कानूनी दबाव के तनाव-चिंता-अवसाद से घिरे अपने कर्मचारियों को खुश रखने की नई-नई कलाएं विकसित करने लगी हैं। नए किस्म की इस आजादी को पा लेने की जिद और 70 करोड़ लोगों के डिस्लेक्सिया पीड़ित होने के बावजूद वेबसाइट डिज़ाइनिंग, स्मार्ट पेन आदि ने दफ़्तरी दबावों को तो शिथिल किया ही है। सोचिए, कि ये किस तरह की नागरिक स्वतंत्रताओं का वक़्त है, जब जपान की कंपनियां काम से थके अपने कर्मचारियों को हिरून (लंच के समय की नींद) लेने की मोहलत देने लगी हैं, जबकि इसके ठीक उलट कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों की निगरानी के लिए हाई-टेक तकनीक अपना रही हैं, जो उनकी मानवीय स्वतंत्रताओं पर अटैक है।
गौर से यह भी देख-जान लीजिए कि इस दौर में महिलाएं अब किस तरह की नागरिक स्वतंत्रताओं की मांग करने लगी हैं! मसलन, जापानी यूमी इशिकावा दफ़्तर में ऊंची एड़ी की जूतियों का दर्द ट्विटर पर बयान कर दुनिया की नज़रों में सेलिब्रिटी 'एक्टिविस्ट फिगर' बन जाती हैं। इसी उथल-पुथल में मीटू, टिकटॉक, कुटू की स्वतंत्रता, घर पर रहकर काम करने की स्वतंत्रता, साथ ही बुज़ुर्ग श्रमिकों की नियुक्ति की भी आजादी सुर्खियों में है। नागरिक स्वतंत्रताओं का यह बड़ा अजीब सा घालमेल दिख रहा है कि एक ओर लैटिन अमरीकी कंपनियों को लैंगिक समानता के आधार पर रैंकिंग देने वाली एजेंसी एक्वालेस की संस्थापक समानता की राह बदल रही हैं तो दूसरी तरफ ब्रिटिश कारोबारी मैरीमे जम्मे दस लाख महिलाओं को कोड सिखाने की प्रतिबद्धताएं निभा रही हैं।
इस वक्त में यह भी कितना सुखद है कि दफ्तरों में तीसरे जेंडर की स्वीकार्यता ने आधुनिक जीवन में स्त्री-पुरुष से अलग एक तीसरी तरह की नागरिक स्वतंत्रता का स्वर ऊंचा किया है। नए-नए तरह के पोर्टफोलियो पर टिके करियर में काम करते हुए संगीत सुनने, सप्ताह के सातों दिन रोज सवेरे उठकर काम करने, सैटेलाइट इंटरनेट के सहारे दूर बैठे श्रमिकों को काम से जोड़े रखने, एक साथ कई तरह के काम वाले सुपरजॉब की आजादी के बीच अब ऐप्स लोगों के जीने, कारोबार करने के तरीके तक बदलने लगा है। इस प्रयोगवादी दौर में नागरिक स्वाधीनता यूनिवर्सल बेसिक इनकम, सिर्फ महिलाओं के लिए कार्यस्थल की मांग, यहां तक कि आदमी के रोबोट बन जाने के स्वचेता खुलेपन तक पहुंच चुकी है।