कारगिल विजय दिवस: करगिल से कॉर्पोरेट तक, बेहद दिलचस्प और प्रेरणाप्रद है मेजर (रिटायर्ड) वंदना का सफ़र!
मेजर (रिटायर्ड) वंदना शर्मा का और उनके परिवार का डिफ़ेंस सर्विसेज़ से पुराना नाता रहा है। वह यूनिफ़ॉर्म्स और लड़ाकू विमान जैसी चीज़ों से बेहद कम उम्र से ही परिचित रही हैं और बहुत से प्रेरणादायी व्यक्तियों से रू-ब-रू भी हुईं। बचपन में वह अक्सर अपने पिता की यूनिफ़ॉर्म वाली टोपी पहनकर, शीशे में ख़ुद को देखती थीं और सलाम करती थीं। हमेशा से ही उनके मन में एक दिन डिफ़ेंस सर्विसेज़ की यूनिफ़ॉर्म पहनने की चाह थी।
सौभाग्यवश, जब तक उन्होंने अपना ग्रैजुएशन पूरा किया, तब तक भारत सरकार ने सशस्त्र सेना बलों में महिलाओं के आयोग की घोषणा कर दी। वंदना ने अपने सपने को साकार करने के लिए भारतीय सेना को चुना और उसका हिस्सा बनीं।
एक दशक तक सेना में सेवाएं देने के बाद, वह कॉर्पोरेट दुनिया में आ गईं और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में बड़ी और अहम जिम्मेदारियां निभाईं। अपने स्टार्टअप की शुरुआत करने से पहले वह कई ई-कॉमर्स स्टार्टअप्स के साथ जुड़ी रहीं। आज की तारीख़ में वह 'स्टार्टअप पीपल कन्सल्टिंग' नाम से अपनी कंपनी चला रही हैं और एक सफल ऑन्त्रप्रन्योर हैं।
योरस्टोरी के साथ एक बातचीत में, वंदना ने अपने बचपन से लेकर अभी तक के सफ़र से जुड़ीं कई दिलचस्प बातें बताईं। उन्होंने भारतीय सेना में सेवा के दौरान और ख़ासतौर पर करगिल युद्ध के दौरान के अपने अनुभवों को भी साझा किया। उन्होंने डिफ़ेंस सर्विस के बाद बतौर ऑन्त्रप्रन्योर अपने प्रोफ़ेशनल करियर की नई शुरुआत के बारे में विस्तार से चर्चा की।
पेश है वंदना के साथ योरस्टोरी की बातचीत के कुछ अंशः
योरस्टोरीः आप भारतीय सेना में अपने अनुभवों के बारे में हमें बता सकती हैं?
वंदनाः एक दशक तक भारतीय सेना में सेवाएं देने का मेरा अनुभव बेहद शानदार रहा। मुझे लद्दाख और उत्तर बंगाल समेत देश के विभिन्न हिस्सों में तैनाती मिली। इनमें से ज़्यादातर जगहें ऐसी थीं, जहां पर लोगों ने कभी किसी महिला को शायद ही यूनिफ़ॉर्म में देखा था। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी मैंने कई अहम जिम्मेदारियां निभाई थीं। देश के बेहद ख़ूबसूरत मगर दूरस्थ हिस्सों में रहने के दौरान मुझे संसाधनों के अभाव में जीवन बिताने का अनुभव हुआ। मुझे घूमना बहुत पसंद है और सेना में रहने के दौरान मैं अपने इस शौक़ को भी बख़ूबी पूरा कर पाई।
शुरुआत में लोग मुझे बड़ी ही जिज्ञासा भरी नज़रों से देखते थे, लेकिन कुछ समय बाद जब उन्हें एहसास हुआ कि मैं भी दौड़ने, खेलने और प्रबंधन आदि में उनके बराबर हूं, मेरे लिए माहौल सहज होता चला गया। मैं हमेशा ही अपनी टीम का अहम हिस्सा रही और महिला होने की वजह से किसी ने मुझे और मेरे काम को अलग नज़रिए से नहीं देखा।
योरस्टोरीः करगिल युद्ध का आप पर क्या प्रभाव पड़ा?
वंदनाः जब करगिल युद्ध हुआ, तब मैं काफ़ी युवा थी। करगिल-द्रास क्षेत्र में आर्टिलरी फ़ायरिंग एक आम बात हुआ करती थी; किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि यह इतने भयावह युद्ध में तब्दील हो जाएगी। करगिल युद्ध के दौरान युद्ध की ऐसी विभीषिका देखी कि उसके बाद से जीवन के मोह और मृत्यु के डर से मुझे फ़र्क पड़ना ही बंद हो गया।
जब हम साथियों को खो देते थे, तब बहुत ही तकलीफ़ और दर्द महसूस होता था, लेकिन हालात की मांग थी कि हमें ख़ुद को मज़बूत बनाए रखना था। हमारे ऊपर जारी लड़ाई के दौरान लॉजिस्टिक सपोर्ट मुहैया कराने की जिम्मेदारी थी। हम रात-दिन काम करते थे, लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं था।
योरस्टोरीः आप आर्मी के बाद कॉर्पोरेट दुनिया में कैसे और क्यों आईं?
वंदनाः मैं डिफ़ेंस सर्विस के बाहर भी दुनिया को देखना और महसूस करना चाहती थी। मेरे बच्चे बड़े हो रहे थे और मुझे जीवन में स्थायित्व की ज़रूरत थी। दूसरी मुख्य वजह यह थी कि मुझे एक अलग तरह की ज़िंदगी के अनुभवों से रू-ब-रू होना था। एक दशक तक सेना में सेवाएं देने के बाद मेरे पास कार्यकाल में 4 साल के इज़ाफ़े या सेवानिवृत्त हो जाने, दोनों ही विकल्प थे। मैंने सेना छोड़ने, ख़ुद को एक नए कौशल से जोड़ने और अपने करियर को एक नई दिशा देने का फ़ैसला लिया।
एक आर्मी ऑफ़िसर के तौर पर आपकी ज़िंदगी एक बंधे हुए ढर्रे और निर्धारित दायरे में चलती है। वहां पर हर प्रक्रिया, नीति और भूमिका पूर्व-निर्धारित होती है। सशस्त्र सेना बल बिना किसी मुनाफ़े या रिटर्न जैसे कारकों को देखे, निःस्वार्थ भाव से देश की सेवा करते हैं। सेना के बाद बिज़नेस की मोल-भाव की दुनिया में आना मेरे लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण था।
योरस्टोरीः कॉर्पोरेट दुनिया में आने के बाद आपका जीवन कैसा हो गया?
वंदनाः जब मैं कॉर्पोरेट दुनिया में आई तो मुझे सभी चीज़ों की शुरुआत फिर से करनी पड़ी। मुझे नए स्किल्स सीखने पड़े, बिज़नेस को समझना पड़ा, टेक्नॉलजी को जानना पड़ा और बड़े शहरों की जीवनशैली से परिचित होना पड़ा। नई चीज़ें सीखने की इच्छा के बल पर मैं आगे बढ़ती रही।
योरस्टोरीः आपने ऑन्त्रप्रन्योर बनने का फ़ैसला क्यों लिया?
वंदनाः जब मैं पलटकर सोचती हूं, विभिन्न कंपनियों में अपने प्रोजेक्ट्स के बारे में, तब मुझे एहसास होता है कि उनमें से ज़्यादातर में मैंने एक ऑन्त्रप्रन्योर की तरह ही काम किया। उनमें से ज़्यादातर प्रोजेक्ट्स अपने आप में अनोखे थे और पहली बार हो रहे थे।
मैंने अगस्त, 2017 स्टार्टअप पीपल कनसल्टिंग की शुरुआत की थी। बहुत से ऑन्त्रप्रन्योर्स शुरुआत में ग़लतियां करके ही सीखते हैं। मेरे प्रोजेक्ट के अंतर्गत बतौर ऑन्त्रप्रन्योर अपना सफ़र शुरू करने वाले लोगों की मदद की जाती है।
योरस्टोरीः आप महिला सशक्तिकरण से जुड़ीं किन मुहिमों का हिस्सा हैं?
वंदनाः मैं विभिन्न सेक्टरों में कई कार्यक्रमों के तहत काम किया और हर जगह मैंने इस बात की वक़ालत की संगठनों में महिलाओं की बात को औपचारिक और अनौपचारिक दोनों ही रूप से सुना जाना चाहिए। मैंने महिलाओं को प्रेरित करने के लिए कई क्रिटिकल लर्निंग और डिवेलपमेंट प्रोग्राम्स चलाए ताकि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र बन सकें।
योरस्टोरीः क्या आर्मी में आपके अनुभवों ने कॉर्पोरेट दुनिया में आपकी मदद की? अगर हां तो कैसे?
वंदनाः आर्म्ड फ़ोर्सेज़ और कॉर्पोरेट वर्ल्ड, दोनों ही में कई समानताएं भी हैं। एक सैनिक के तौर पर हम बेहद सीमित संसाधनों के साथ, तय समय-सीमा के अंदर और प्रभावशाली नेतृत्व के साथ काम करते हैं। ऐसे हालात में काम करने के अभ्यास ने कॉर्पोरेट जीवन में मेरी बहुत मदद की।
योरस्टोरीः आप जीवन के किस मूल मंत्र या उद्देश्य के साथ जीती हैं?
वंदनाः अगर आप मन में कुछ करने की ठान लेते हैं और मेहनत करते हैं तो लक्ष्य को हासिल करने से आपको कोई नहीं रोक सकता।
योरस्टोरीः भविष्य के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?
वंदनाः मैं स्टार्टअप्स के लिए ईको-सिस्टम को बेहतर बनाना चाहती हूं। नए दौर के संगठनों में तेज़ी है, मार्केट तक उनकी पहुंच बेहतर है, काम करने का शानदार जज़्बा है और ऐसे में अगर उन्हें सही शुरुआत मिल जाए तो वे लंबी छलांग मारने में सक्षम हैं।
मैं युवाओं के लिए प्रेरणा बनना चाहतीं हूं। मैं एक ऐसी दुनिया बनाने की दिशा में काम करना चाहती हूं, जहां पर पुरुषों और महिलाओं में कोई अंतर न हो, फिर चाहे वह बिज़नेस हो, आर्ट हो, संगीत हो या फिर कला।