लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले शरीफ चाचा को सरकार ने दिया पद्मश्री पुरस्कार
उत्तर प्रदेश के शरीफ चाचा कई सालों से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। उनके इस सराहनीय कार्य का नतीजा है कि सरकार ने उन्हे पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया है।
पद्म पुरस्कारों की घोषणा में इस वर्ष कई ऐसे लोगों को शामिल किया है जो समाज और दलितों के उत्थान के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। इस सूची में पद्म श्री पुरस्कार पाने वालों में 82 वर्षीय मोहम्मद शरीफ भी हैं, जिन्हें शरीफ चाचा के नाम से भी जाना जाता है, जो पिछले 27 वर्षों से मृतकों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं।
मोहम्मद ने उत्तर प्रदेश में अब तक 25,000 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है। वह एक साइकिल मैकेनिक है और जाति, पंथ या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करते हैं। जब मृतकों को सम्मानित करने की बात आती है, वह मृतकों के धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार की व्यवस्था करते हैं।
द वीक से बात करते हुए उन्होने कहा,
“क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, सबसे पहले इंसान।”
मोहम्मद का मिशन तब शुरू हुआ जब उन्होंने कई साल पहले अपने ही बेटे को खो दिया था। बेटे का शव एक रेलवे ट्रैक पर पाया गया था, जो आंशिक रूप से जानवरों द्वारा खाया जा चुका था। इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि लावारिस मृतकों को एक सभ्य दफन/ दाह संस्कार किया जाना चाहिए, जब ऐसा करने वाला कोई और न हो।
तब से वह शवों को अंतिम संस्कार के लिए पास के श्मशान या दफन भूमि पर ले जा रहे उन्हे यह करते हुए देखने वाले लोग उन्हे पागल कह कर बुलाते थे, लेकिन उन्होने अपना काम नहीं रोका।
लॉजिकल इंडियन की रिपोर्ट के अनुसार, लावारिस शवों की तलाश के लिए मोहम्मद नियमित रूप से आसपास के अस्पतालों, पुलिस स्टेशनों, रेलवे स्टेशनों और मठों का दौरा करते हैं। यदि 72 घंटों के भीतर शव का दावा नहीं किया जाता है, तो सरकारी अधिकारी शव को अंतिम संस्कार के लिए मोहम्मद को सौंप देते हैं।
द वीक के अनुसार, पद्मश्री के बारे में पूछे जाने पर, मोहम्मद ने कहा,
"एक पुलिस अधिकारी ने आकर कहा, एक बार मेरे साथ जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय चलो। मैंने पूछा कि मैंने क्या किया है? लेकिन उन्होने जवाब नहीं दिया और मुझे मेरी साइकल भी नहीं लेने दी। डीएम के कार्यालय में, मुझे गुलाब दिए गए और डीएम ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे पुरस्कार के बारे में बताया।"