सरकार ने वकीलों की फीस पर खर्च किए 52.9 करोड़ रुपये, जानिए किस वकील को मिली सबसे अधिक फीस
सरकार ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसीटर जनरल को साल 2018 से चुकाई गई फीस का हिसाब-किताब भी दिया है.
केंद्र सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में वकीलों को फीस के तौर पर 52.9 करोड़ रुपये का भुगतान किया. मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड जस्टिस ने लोकसभा में यह जानकारी दी. हालांकि पिछले तीन वित्त वर्षों में इसमें लगातार गिरावट आई है. 2019-20 में यह राशि 64.4 करोड़ थी जो वित्त वर्ष 2020-21 में 54.1 करोड़ रुपये रह गई. 2022-23 में दो अगस्त तक सरकार ने वकीलों की फीस के रूप में 14 करोड़ रुपये का भुगतान किया है.
साथ ही, सरकार ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसीटर जनरल को साल 2018 से चुकाई गई फीस का हिसाब-किताब भी दिया है.
लॉ मिनिस्टर किरेन रिजिजू के लोकसभा में दिए गए जवाब के मुताबिक, एजी केके वेणुगोपाल ने इस दौरान करीब 1.668 करोड़ रुपये का बिल दिया था. इसमें से उन्हें 1.599 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया है.
इसी तरह एसजी तुषार मेहता ने करीब 8.609 करोड़ रुपये का बिल दिया थी, जिसमें से सरकार ने 7.674 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है. मेहता को अक्टूबर 2018 में सॉलिसीटर जनरल बनाया गया था. उससे पहले वह एडिशनल सॉलीसिटर जनरल थे.
मंत्रालय का कहना है कि मुकदमे लड़ने के लिए वकीलों को 2015 के दिशानिर्देशों के मुताबिक फीस का भुगतान किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने वाले पैनल वकीलों को हरेक पेशी पर 4,500 रुपये से 13,500 रुपये दिए जाते हैं. यह राशि इस बात कर निर्भर करती है कि मामला किस टाइप का है. ड्राफ्टिंग केस के लिए पैनल वकील को प्रति केस 3,000 रुपये का भुगतान किया जाता है.
विभिन्न हाईकोर्ट्स के असिस्टेंट सॉलिसीटर जनरल, केंद्र सरकार के स्टैंडिंग काउंसल और सीनियर स्टैंडिंग काउंसल और सीनियर पैनल लॉयर्स को हर महीने 9,000 रुपये की फीस मिलती है.
साथ ही उन्हें एप्लिकेशंस के लिए हर पेशी पर 3,000 रुपये और सूट्स, रिट पीटिशंस और अपील के लिए 9,000 रुपये दिए जाते हैं.
कानूनी मामलों के विभाग द्वारा जारी किए गए विभिन्न ज्ञापन और निर्देश विभिन्न प्रकार के वकील को सरकार द्वारा भुगतान किए जाने वाले शुल्क और भत्ते को निर्धारित करते हैं जो सभी प्रकार के विवाद समाधान के लिए विभिन्न अदालतों में सरकार की ओर से पेश होते हैं.
लोकसभा में विष्णु दयाल राम के सवाल का जवाब देते हुए सरकार ने यह भी कहा कि वकीलों की फीस में बदलाव के लिए फिलहाल को प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है.
कुछ सप्ताह पहले ही जयपुर में हुए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के राष्ट्रीय सम्मेलन में रिजिजू और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वकीलों की बढ़ती फीस पर चिंता जताई थी.
गहलोत ने कहा था कि कई जज फेस वैल्यू देखकर फैसला देते हैं. वकीलों की फीस इतनी ज्यादा है कि गरीब आदमी सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकता.
इस पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने भी गहलोत का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि जो लोग अमीर होते हैं, वे लोग अच्छा वकील कर लेते हैं. पैसे देते हैं. आज दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में कई वकील ऐसे हैं, जिन्हें आम आदमी अफोर्ड ही नहीं कर सकता है.