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जलवायु आपदा पर भारत की बेटी रिद्धिमा ने भी यूएन में आवाज बुलंद की

भारत की रिद्धिमा पांडेय नौ साल की उम्र से ही जलवायु आपदा के लिए संघर्षरत हैं।

जलवायु आपदा पर भारत की बेटी रिद्धिमा ने भी यूएन में आवाज बुलंद की

Monday September 30, 2019 , 3 min Read

भारत की रिद्धिमा पांडेय नौ साल की उम्र से ही जलवायु आपदा के लिए संघर्षरत हैं। दो साल पहले उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में क्लाइमेट चेंज पर पिटीशन दायर किया था। ग्रेटा थनबर्ग की टीम में शामिल हरिद्वार (उत्तराखंड) निवासी 11 वर्षीय रिद्धिका यूएन समिट के बाद इस समय अभी अपने मम्मी-पापा के साथ न्यूयॉर्क में ही रुकी हुई हैं।

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रिद्धिमा पांडेय


पर्यावरण बचाने की जंग से दुनिया भर में सुर्खियां बटोर रहीं ग्रेटा थनबर्ग की टीम में हरिद्वार की बेटी रिद्धिमा पांडेय भी शामिल हैं। वह भी न्यूयॉर्क में यूएन के उस क्लाइमेट एक्शन समिट में शामिल हुई हैं, जो पर्यावरण संरक्षण के नजरिये से बेहद अहम माना जा रहा है। हरिद्वार के बीएम डीएवी पब्लिक स्कूल की महज 11 साल की छात्रा रिद्धिमा दुनिया के उन चुनिंदा 16 बच्चों में शामिल हैं, जिन्होंने ग्रेटा थनबर्ग के साथ ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर संयुक्त राष्ट्र में शिकायत दर्ज कराई है कि कुछ देश बच्चों के अधिकारों से जुड़ी यूएन की संधि के तहत जिम्मेदारियां नहीं निभा रहे हैं।


क्लाइमेट चेंज के खिलाफ दुनिया के इन सोलह  पर्यावरण एक्टिविस्ट बच्चों ने संयुक्त राष्ट्र में दर्ज पिटीशन में लिखा है कि दुनिया के पांच देशों तुर्की, अर्जेंटीना, फ्रांस, जर्मनी और ब्राजील ने जलवायु संकट को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाकर मानवाधिकारों का हनन किया है। 


रिद्धिमा इस समय अपने मम्मी-पापा के साथ न्यूयॉर्क में हैं। छह साल पहले, रिद्धिमा पांडे अपने परिवार के साथ नैनीताल से हरिद्वार की हिमगिरि कॉलोनी में रहने लगीं। वर्ष 2013 का महाविनाश उन्हे अब तक याद है। रिद्धिमा के पिता वन विभाग से जुड़े हैं। रिद्धिमा जब नैनीताल से हरिद्वार आईं थीं, तब यहां लाखों की तादाद में आने वाले कांवड़ियों की भीड़ के मौसम पर पड़ने वाले असर ने उनका ध्यान खींचा। कावड़ का आयोजन गंगा नदी के पास होता है लेकिन हाल के समय में सर्दियों मे भी मौसम गरम रहने लगा है, जिसने सीधे तौर पर गंगा को प्रभावित किया है। बाढ़ों से उसके जल स्‍तर में कमी आ रही है। इस बदलाव की वजह से सालाना धार्मिक कांवड़ यात्रा को चुनौती मिलने लगी है। गंगा बेसिन का बुनियादी ढांचा चौपट होता जा रहा है।

 




अब रिद्धिमा को भारत की ग्रेटा कहा जा रहा है। रिद्धिमा को भारत के जंगलों की रक्षा का शौका है। रिद्धिमा ने अपने अभिभावकों की मदद से नौ साल की उम्र में ही 2017 में केंद्र पर जलवायु परिवर्तन और संकट से उबरने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा था कि भारत प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन से निपटने में सबसे कमजोर देशों में से एक है।


रिद्धिमा ने कोर्ट से मांग की थी कि औद्योगिक परियोजनाओं का आकलन किया जाए। कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन को सीमित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी योजना बनायी जाए, जिसमें जुर्माने का भी प्रावधान हो। सरकार कहती है कि उसने गंगा को साफ किया है, पर यह सच नहीं है। हम गंगा को मां कहते हैं, फिर उसे प्रदूषित करते हैं। गंगा किनारे मूर्तियां, कपड़े और प्लास्टिक की थैलियां मिलती हैं। नहीं लगता कि हमारी सरकार पेरिस समझौते की जिम्मेदारियां निभा रही है। उसे सिर्फ विकास पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए, अगर हमारे पास भविष्य ही नहीं होगा तो फिर इस विकास का क्या करेंगे। इस सब पर बहुत गुस्सा आता है। हम इस मुद्दे को वैश्विक मंचों पर ले जा रहे हैं। विश्व समुदाय इसकी अनदेखी नहीं कर पाएगा।