घरेलू डेयरी से हर माह लाखों कमा रहीं गुजरात की कानुबेन चौधरी
बनासकांठा (गुजरात) के गांव चारड़ा की निरक्षर महिला उद्यमी कानुबेन चौधरी मात्र दस दुधारू पशुओं से घरेलू डेयरी का कारोबार शुरू कर आज अपनी मेहनत के बूते उसे इतनी ऊंचाई पर पहुंचा चुकी हैं कि हर महीने पांच से साढ़े छह लाख रुपए की उनकी शुद्ध कमाई हो रही है। इस कामयाबी के लिए उन्हे कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।
परंपरागत व्यवसाय के साथ नए उद्यमों में गुजरात की महिलाएं जिस तरह कामयाब हो रही हैं, उनमें बनासकांठा (गुजरात) के गांव चारड़ा की निरक्षर महिला उद्यमी कानुबेन चौधरी ने अपने घरेलू डेयरी कारोबार से हर महीने पांच-छह लाख रुपए कमाकर साबित कर दिया है कि असंगठित स्तर पर भी खुद दूध कारोबार खड़ा किया जा सकता है। मिल्क मंत्रा डेयरी प्रोडक्ट के संस्थापक सीईओ श्रीकुमार मिश्रा बताते हैं कि शुरुआती दिनो में दूध व्यवसाय में ग्राहकों का भरोसा पाना सबसे जटिल होता है लेकिन धीरे-धीरे यह कारोबार स्थायी रूप से अपनी जड़ें जमा लेता है। उन्होंने सिर्फ 36 लीट दूध से अपना काम जब शुरू किया था, केवल सात पशुपालक किसान टर्नअप हुए थे। आज 60 हजार से अधिक पशुपालक किसान उनसे जुड़े हैं और उनका करोड़ों का टर्नओवर है।
इसी तरह के दूसरे उद्यमी ग्रीन एग्रीवोल्यूशन देहात के संस्थापक शशांक कुमार आइआइटी दिल्ली से इंजीनियरिग करके कई मल्टीनेशनल कंपनियों से जुड़े लेकिन 2012 में अपना यह स्टार्टअप शुरू कर आज डेढ़ करोड़ किसानों को अपने साथ जोड़ चुके हैं। ऐसे उच्च शिक्षा प्राप्त नए उद्यमियों के बीच अशिक्षित कानुबेन तो सफलता की नई कहानी लिख रही हैं। वह साबित कर रही हैं कि श्रीकुमार और शशांक की तरह मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर रोहतक (हरियाणा) के प्रदीप श्योराण भी भले लोगों को अपनी डेयरी के प्रति लीटर सौ रुपए का गर्मा-गर्म दूध पिलाकर खूब कमाई कर रहे हों लेकिन अगर संघर्ष का माद्दा है तो दुग्ध व्यवसाय में अशिक्षा भी आड़े नहीं आ सकती है।
आज धानेरा तालुका के अपने छोटे से गांव में कानुबेन चौधरी सालाना अस्सी लाख रुपये कमा रही हैं। उनकी महीने की कमाई लगभग साढ़े छह लाख रुपये है। केवल खेतीबाड़ी और दूध बेचकर अगर कोई किसान महिला हर महीने इतनी ऊंची कमाई कर रही हो तो आज के समय में वह निश्चित ही पूरे देश के लिए एक मिसाल है। वह गुजरात की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।
अभी कुछ साल पहले ही पशुपालन और दूध का कारोबार घरेलू स्तर पर शुरू कर कानुबेन सिर्फ अपनी मेहनत से नाम और दाम दोनों कमा रही हैं। इस काम के साथ ये भी सच है कि डेयरी कारोबार बाकी दूसरे कारोबारों की तरह नहीं होता है। ये कारोबार सुनने में जितना सरल लगता है, उतना तो बिल्कुल नहीं। तभी तो कानुबेन चौधरी ने 10 दुधारू पशुओं से अपना कारोबार शुरू किया तो उनके चारे, उनके दाना-पानी से लेकर दूध बेचने तक के काम में सारी कड़ी मेहनत उन्हे खुद ही करनी पड़ी। इसी मेहनत के चलते भारत में दुग्ध व्यवसाय कर रहे किसानों की आय में पिछले कुछ वर्षों में 23.77 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
डेयरी का काम करने के लिए शुरुआत में ही आठ से दस लाख रुपए की जरूरत होती है। कानुबेन की दस गाय-भैसें जब दूध देने लगीं, उन्हे बेचने के लिए रोजाना दस-दस किलो मीटर पैदल जाना-आना पड़ा। धीरे-धीरे उनके दूध की खपत बढ़ती चली गई। इसके साथ ही उनके बाड़े में दुधारू पशुओं की तादाद में भी इजाफा होता गया। आज वह लगभग सौ दुधारू पशुओं की मालकिन हैं।
पशुओं की संख्या बढ़ जाने से निर्धारित समय के भीतर लगभग एक हजार लीटर दूध दुहना और अपने सैकड़ों ग्राहकों तक पहुंचाना, जब कानुबेन के अकेले के वश की बात नहीं रह गई, तो उनके यहां सहयोगियों की नियुक्ति कर दूध मशीन से निकाला जाने लगा। इस तरह कानुबेन की जिंदगी में दो साल पहले एक दिन ऐसा भी आया, जब सबसे बड़ी दुग्ध उत्पादक उद्यमी के रूप में उनको बनासडेरी की ओर से पचीस हजार रुपए के 'बनास लक्ष्मी सम्मान' से विभूषित किया गया। इसके अलावा उनको गुजरात सरकार और राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड ने भी सम्मानित किया।
कानुबेन बताती हैं कि कोई भी काम न आसान होता है, न असंभव। मेहनत एक न एक दिन जरूर रंग लाती है। उनकी सफलता का मूलमंत्र यही रहा है। वह खुद अपने पशुओं का पूरा ख्याल रखती हैं, खेतों से चारा लाती हैं, उन्हे खिलाती-पिलाती हैं, अपनी पशुशाला की साफ-सफाई करती हैं। अपने दुधारू पशुओं के आराम के लिए उन्होंने वेंटिलेशन शुदा कमरों में पंखे लगवा रखे हैं। उनका दूध निकालने और उन्हे नहलाने-धुलाने के लिए मशीनों के इंतजाम कर रखे हैं। वह रोजाना सुबह उठते ही उनकी देखभाल में जुट जाती हैं। वह स्वयं दूध दुह लिए जाने के बाद उन्हें केन में भरवाकर सप्लाई पर निकल जाती हैं। दूध के पैसे जमा करने के लिए उन्होंने कलेक्शन सेंटर बना रखे हैं।