क्या आपको पता है आपके लिए कितनी सरकारी योजनाएं चलती हैं? यह स्टार्टअप देता है जानकारी, 30 लाख लोगों को दिला चुका लाभ
अनिकेत डोगर ने साल 2016 में पुणे में हकदर्शक (Haqdarshak) की शुरुआत की थी. आज वह 30 लाख से अधिक लोगों को योजनाओं का लाभ दिला चुके हैं. उनका यह स्टार्टअप एक ऐसी समस्या का समाधान कर रहा है, जिस पर अभी तक किसी की नजर नहीं थी.
देशभर में हर साल केंद्र से लेकर राज्य तक सभी सरकारें नागरिकों की सहूलियत के लिए सैकड़ों सरकारी योजनाएं बनाती हैं. इन योजनाओं का चुनाव करके लोग उनका लाभ ले सकते हैं.
सरकारें ये योजनाएं समाज के विभिन्न वर्गों को ध्यान में रखकर लाती हैं. इन योजनाओं को लाने का उद्देश्य तो देश के नागरिकों की जिंदगी को आसान बनाना होता है, लेकिन सरकारें यह भी चाहती हैं कि इन योजनाओं का लक्षित समूह उन्हें वोट भी दे ताकि वे दोबारा से सत्ता में आ पाएं.
इन योजनाओं का सरकारें बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार करती हैं ताकि लोग उनका लाभ ले सकें. हालांकि, आज भी देश की करीब 23 फीसदी आबादी अशिक्षित है. इसमें भी शहरी क्षेत्रों में 84.11 फीसदी शिक्षित आबादी की तुलना में ग्रामीण इलाकों में शिक्षित आबादी की दर केवल 67.77 फीसदी है.
देश की अशिक्षित आबादी को या तो उनके लिए बनाई गई योजनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती है और अगर जानकारी मिल भी गई तो उन्हें यह नहीं पता चल पाता कि उन योजनाओं का लाभ वे कैसे लें.
इसी समस्या का समाधान मुहैया कराने वाले स्टार्टअप के साथ 33 वर्षीय अनिकेत डोगर (Aniket Doegar) भारतीय बिजनेस रियलिटी शो शार्क टैंक इंडिया (Shark Tank India) के दूसरे सीजन में पहुंचे. यहां उन्होंने अपने फॉर प्रॉफिट सोशल इम्पैक्ट स्टार्टअप हकदर्शक
के लिए लेंसकार्ट के फाउंडर पीयूष बंसल (Peyush Bansal), बोट के फाउंडर अमन गुप्ता (Aman Gupta) और एमक्योर फॉर्मास्यूटिकल्स की फाउंडर नमिता थापर (Namita Thapar) से 1 करोड़ रुपये की फंडिंग जुटाई और इसके बदले में उन्होंने तीनों शार्क को 2 फीसदी की हिस्सेदारी दी.अनिकेत ने साल 2016 में पुणे में हकदर्शक की शुरुआत की थी. आज वह 30 लाख से अधिक लोगों को योजनाओं का लाभ दिला चुके हैं. उनका यह स्टार्टअप एक ऐसी समस्या का समाधान कर रहा है, जिस पर अभी तक किसी की नजर नहीं थी.
कहां से आया आइडिया?
अनिकेत ने हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के सम्पन्न परिवार से आते हैं. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई शिमला से करने के बाद दिल्ली में श्रीराम स्कूल ऑफ कॉलेज (एसआरसीसी) से ग्रेजुएशन किया है.
YourStoryHindi से बात करते हुए अनिकेत ने कहा, 'उस समय लगता था कि पॉलिसी, पॉलिटिक्स और इकॉनमिक्स में काम करना है. ग्रेजुएशन के बाद अगले 3-4 सालों तक मैंने फील्ड में काम किया. मैंने पुणे में सरकारी स्कूल में पढ़ाया, ग्रामीण महाराष्ट्र, दिल्ली और राजस्थान में काम किया. उस समय दिमाग में केवल यही था कि यह सब करके मास्टर्स की डिग्री ले लेंगे क्योंकि डिग्री के बिना तो कोई काम नहीं होगा.'
हालांकि, चार सालों तक फील्ड पर काम करने के दौरान अनिकेत ने अलग-अलग राज्यों में देखा कि लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में पता ही नहीं है.
उन्होंने कहा, 'हमारे जैसे पढ़े-लिखे, कंप्यूटर और मोबाइल चलाने वाले लोगों को भी सरकारी योजनाओं के बारे में पता नहीं चलता है. वहां से दिमाग में आया कि इस समस्या के लिए कम से कम विकिपीडिया के जैसा कोई समाधान होना चाहिए. इसके बाद एक प्लेटफॉर्म बनाने के बारे में सोचा जहां लोग अगर अपनी जानकारी डालें तो उन्हें सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी मिले. हमने जब इस पर काम करना शुरू किया तो हमें पता चला कि इस समस्या के लिए कोई भी काम नहीं कर रहा था.'
अनिकेत ने आगे बताया, 'वहां से हमने पहली बार 2015 में कुछ साथियों के साथ सोचा कि इसे एक ऑर्गेनाइजेशन के रूप में बनाया जाए. हमने सोचा कि अगर सरकारी स्कीम के ऊपर काम करना है तो 'स्टार्टअप इंडिया' का ही फायदा लिया जाए. उससे हमें बहुत फायदा हुआ.'
इसके बाद अनिकेत और उनकी टीम ने आईआईएम अहमदाबाद से लेकर नेस्कॉम सहित कई संस्थानों से ग्रांट जीते. ग्रांट से मिले पैसों से उन्होंने हकदर्शक के लिए रिसर्च शुरू किया. इसके बाद जनवरी, 2016 में उन्होंने हकदर्शक प्राइवेट लिमिटेड को रजिस्टर कराया.
20 हजार योजनाओं की रिसर्च में लग गए 1.5 साल
अनिकेत कहते हैं, 'देश में हर सरकारी स्कीम का एक एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया है. यह क्राइटेरिया कास्ट, इनकम, निवास, डिसएबिलिटी है. या तो आपकी इनकम इतनी होनी, या तो आपकी जाति यह होनी चाहिए, या आप इस जगह के होने चाहिए.'
इसलिए पहले 1 से 1.5 साल अनिकेत ने अपनी टीम के साथ स्कीम रिसर्च और स्कीम प्लेटफॉर्म डेवलपमेंट पर काम किया. स्कीम रिसर्च में सामने आया कि भारत में करीब 20 हजार सरकारी योजनाएं हैं.
अनिकेत बताते हैं, 'अपने पहले फेज में इन सारी चीजों को मिलाकर हमने अपनी टेक्नोलॉजी और लोकल लैंग्वेज डेटा बनाया. इस फेज में हमने ऐसे लोगों पर फोकस किया जो कि पढ़े-लिखे हैं और इन सरकारी योजनाओं के बारे में ऐप के जरिए पता कर सकते हैं. इसके बाद हमने अपना मुख्य टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म तैयार किया, जो कि एक एलिजिबिलिटी इंजन है. इसमें आप अपनी जानकारी डालिए और आपको आपसे जुड़ी हुई सरकारी योजनाओं की जानकारी मिल जाएगी.'
एजेंट मॉडल पर फोकस
वहीं, दूसरे चरण में अनिकेत का फोकस ऐसे 70-80 फीसदी लोगों पर था जो कि यह काम खुद से नहीं कर सकते हैं. क्योंकि उस समय अगर वह सबको ऐप डाउनलोड करवाना चाहते तो पहले कस्टमर असिस्टेंट के नाम पर 100-200 करोड़ रुपये उठाने पड़ते और फिर लोगों से डाउनलोड करवाना पड़ेगा. इसके बजाय उन्होंने हर कम्युनिटी में एजेंट को ट्रेनिंग देने पर फोकस किया.
साल 2017 में अनिकेत ने असिस्टेड हेल्प मॉडल अपनाया. उनका यह पूरा मॉडल एजेंट पर आधारित है. इसमें हकदर्शक का एजेंट अपने इलाके या गांव में जाएगा. इसके बाद एजेंट ऐप में लोगों से उनकी जानकारी डालने के लिए कहेगा और इसके बाद उन्हें बताएगा कि वे किस सरकारी योजना के लिए एलिजिबल हैं और कैसे उनका लाभ ले सकते हैं.
हकदर्शक एजेंट अपने-अपने इलाके में जाकर लोगों से उनकी जानकारी लेते हैं और फिर लोगों को उनके लिए एलिजिबल स्कीम्स की जानकारी देते हैं और उनके लिए अप्लाई करने में भी मदद करते हैं. इस स्कीम्स के लिए डॉक्यूमेंट्स में भी मदद करते हैं. हमारे ये एजेंट्स अपने इस काम के बदले 50 रुपये से लेकर 500 रुपये तक की फीस लेते हैं.
ग्रामीण इलाकों में केवल महिला एजेंट
अनिकेत कहते हैं, 'कुछ महीने तक काम करने के बाद हमें पता चला कि ग्रामीण इलाकों में महिलाएं एजेंट के रूप में बेस्ट रहेंगी. इसलिए ग्रामीण इलाकों के लिए हमने केवल महिलाओं को ट्रेनिंग देने का फैसला किया और इस तरह से ग्रामीण इलाकों में केवल महिलाएं ही हमारी एजेंट हैं. हालांकि, शहरी इलाकों में हमारे पास पुरुष और महिलाएं दोनों एजेंट हैं.'
वह आगे बताते हैं, 'हकदर्शक एजेंट के रूप में काम करने वाली हमारी 50-60 साल की कुछ महिलाएं तो ग्राम पंचायत का चुनाव भी जीत गई हैं.'
गरीबों को भी हाई क्वालिटी सर्विस देने का लक्ष्य
हालांकि, अनिकेत के लिए यह सफर इतना आसान भी नहीं था. उन्होंने जब हकदर्शक का काम काम शुरू किया तो सबसे पहले उन्हें यही पुशबैक मिला कि यह तो सरकार का काम है. हालांकि, अनिकेत इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं.
वह कहते हैं, 'जब एजुकेशन में रिवॉल्यूशन आया था तब भी सभी यही बोल रहा थे कि यह तो सरकार का काम है. हेल्थ केयर भी सरकार का काम है. वैसे गवर्नमेंट स्कीम्स भी सरकार का काम हैं, पर आपके और मेरे लिए जो सबसे अच्छी सरकारी सर्विस है, वो है पासपोर्ट. वो कौन चलाता है? टाटा. जीएसटी प्लैटफॉर्म किसने बनाया है? इन्फोसिस ने.'
अनिकेत आगे कहते हैं, 'इसी तरह से हम भी चाहते हैं कि गरीब आदमी को भी हाई क्वालिटी की सर्विस मिले. इसके लिए हम गोदरेज, टाटा, जिंदल जैसी दिग्गज कंपनियों के साथ 100 से भी अधिक कंपनियों से जुड़े. इन्होंने हमें अपने वर्कर्स को योजनाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी दी और उसके बदले में हम उनसे 500 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक चार्ज करते हैं। इन सभी वर्कर्स को ऑनबोर्ड करने के लिए पिछले साल हमने योजना कार्ड लॉन्च किया है.'
30 लाख लोगों को पहुंचा फायदा
अनिकेत ने कहा, 'हमने पिछले पांच सालों में 100 से ऊपर ऐसी कम्पनियों के साथ काम किया है और करीब मार्च तक हम 30,00,000 लोगों तक पहुंच चुके हैं. हालांकि, जब तक हम करीब 10,00,00,000 लोगों तक नहीं पहुंचते हैं, तब तक तो मैं नहीं कहूंगा की इंडिया में हमने स्केल किया है और वो मुझे लगता है कि इसमें 5 साल लगेंगे.'
उन्होंने आगे बताया, 'इस तरह से हकदर्शक का 95 फीसदी बिजनेस B2B (बिजनेस-टू-बिजनेस) है. और हम 90 करोड़ में से केवल 30 लाख वर्कर्स तक पहुंचे हैं. हम अपना B2B ग्रो करते रहेंगे ताकि छोटी से छोटी कंपनी या बड़ी से बड़ी कंपनी हमारे साथ जुड़ सकें और अपने वर्कर्स और आस-पास के लोगों को स्कीम्स का लाभ दिला सकें. क्योंकि आप अगर इन वर्कर या किसानों पर 1 रुपया खर्च करेंगे तो सरकार से आप 100-200 रुपये और कई बार 1000 रुपये तक ले सकते हैं.'
सोशल सिक्योरिटी पर फोकस, नहीं बनेंगे फिनटेक
वहीं, अनिकेत न तो हकदर्शक को सोशल इम्पैक्ट स्टार्टअप से किसी फिनटेक स्टार्टअप में बदलना चाहते हैं और न ही किसी लेंडिंग ऐप्स या फिनटेक कंपनियों के साथ पार्टनरशिप के बारे में नहीं सोच रहे हैं. उनका मानना है कि उन्हें हकदर्शक का फोकस सोशल सेक्योरिटी पर ही रखना है.
अनिकेत ने कहा, 'हम फिनटेक कंपनियों के साथ पार्टनरशिप में काम नहीं करेंगे और न ही हमारे एजेंट कभी भी किसी को लोन या बीमा बेचेंगे. हालांकि, हम अपनी सर्विसेज के लाभार्थियों को अगर जरूरत होगी तो उनका संपर्क लेंडिंग ऐप्स या फिनटेक कंपनियों के साथ करा देंगे और उनकी सुविधा के लिए जो भी हो सकेगा करेंगे.'
इसके साथ उन्होंने कहा कि हमने शहरी 20 फीसदी आबादी को शामिल नहीं करने की गलती की है, जिसमें इम्प्लॉयर और सोसायटी के लोग शामिल हैं. हालांकि, अब हमें उसका एहसास हुआ है और अब हम उन्हें जोड़ने पर काम करेंगे. हालांकि, 10 करोड़ लोगों तक पहुंचने के लिए हमारे पास एक रोडमैप है.
फ्रेन्चाइजी मॉडल की दिशा में बढ़ेंगे
फ्रेन्चाइजी मॉडल पर जाने के बारे में पूछे जाने पर अनिकेत ने कहा कि अभी बहुत लोगों की रिक्वेस्ट आती है की हमें करना है पर हम अभी तैयार नहीं हैं. अभी हम फ्रेंचाइज देकर किसी को फंसाना नहीं चाहते हैं. क्योंकि जो भी किसी भी चीज की फ्रैन्चाइज़ लेता है, वह कमाना चाहता है. आप हकदर्शक की फ्रेंचाइज इसलिए ले रहे हैं क्योंकि आप अपनी कम्यूनिटी के लिए कुछ करना चाहते हैं. फिर भी आपको पैसा तो कमाना है. अभी हम उसमें सक्षम नहीं है. लेकिन आगे 6000 लाख जिलों-कस्बों तक पहुंचने के लिए हमें फ्रेन्चाइज की दिशा में बढ़ना पड़ेगा.
उन्होंने कहा, 'हमने 2021 से योजना केंद्र का कॉन्सेप्ट शुरू किया है. हम नेस्कॉम और नीति आयोग जैसे अपने कुछ बड़े पार्टनरों के साथ मार्च तक 50 से अधिक केंद्र खोल देंगे. योजना केंद्र का मॉडल यही है की अभी तो हम 50 से 100 सेंटर खुद कर रहे हैं. इससे हम सीखेंगे कि यह क्या मॉडल है, क्या यूनिट इकोनॉमिक्स है, क्या प्रॉसेस रहता है. अगले कुछ सालों में योजना केंद्र के मॉडल को हम फ्रेन्चाइज कर सकते हैं की आप अपने ब्लॉक में केंद्र खोलिए, स्कीम्स को करवाइए, स्कीम्स की आफ्टर सेल सर्विस करिए. इसके साथ ही, अपने केंद्र पर 50 से 100 महिलाओं को जोड़िए.'
शार्क टैंक से देशभर में मिली पहचान
शार्क टैंक में जाने के असर के बारे में पूछे जाने पर अनिकेत ने कहा कि वहां जाने का बहुत फर्क पड़ा है, क्योंकि लोगों को हमारे काम के बारे में पता लगा है. भारत में लोग आप पर तभी विश्वास करते हैं जब आपके पास विजिबिलिटी हो या आपके पास स्केल हो या आप पुराने फाउंडर हों लेकिन मैं तो पहली बार का फाउंडर था. मैं शार्क टैंक पर विजिबिलिटी लेने गया था, अपना काम बताने गया था और मैं कुछ साबित करना चाहता था.
उन्होंने कहा, 'एंड्रॉयड प्लेस्टोर पर हमारा एक ऐप, जो कि बेसिक है और हमने उसे बनाकर छोड़ दिया था. शार्क टैंक में जाने से पहले उसके 20-22000 डाउनलोड थे. हालांकि, शार्क टैंक आने के 10 दिन के अंदर वो 3.5 लाख से 4 लाख तक पहुंच गया है. हमारी वेबसाइट तीन बार क्रैश हो गई. हमें रिक्वेस्ट आनी शुरू हो गई. हम उसे पूरी तरह से डिलीवर नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि, यह एक हैप्पी प्रॉब्लम है. अगले कुछ महीनों में हम इसका सॉल्यूशन भी निकालने वाले हैं.'
हालांकि, शार्क टैंक में जाने के बारे में जब उन्होंने इम्पैक्ट टेक के लोगों को बताया था तब उन्होंने वहां जाने को लेकर सवाल उठाया. हालांकि, आज उसमें से 90 फीसदी लोगों की प्रतिक्रिया आती है कि उन्होंने वहां जाकर बहुत अच्छा किया, अब वे भी जाएंगे.
अनिकेत कहते हैं कि पिछला साल हमारे लिए बहुत मुश्किल था. कुछ लोगों की सैलरी हम दो-तीन महीने नहीं दे पाए. 40 हजार रुपये महीने के कमाने वाले कर्मचारी की सैलरी 50 दिन देर से आई. लेकिन उन्हें हम पर और हमारे काम पर भरोसा था. हमने किसी को नौकरी से निकाला नहीं, बल्कि कहा कि हम आपको देर से देंगे लेकिन सैलरी देंगे जरूर. हमने अपने उस वादे को पूरा किया.
जातिगत जनगणना जरूरी
देश में तमाम तरह की योजनाओं को लाभ लेने के लिए लोगों को कई प्रमाणपत्र लगाने की जरूरत होती है. इसमें लोगों की जाति बेहद महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसी आधार पर अलग-अलग योजनाओं के लिए उनकी योग्यता तय होती है.
यही कारण है कि पिछले कई दशकों से देश में जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग हो रही है. हाल के सालों में यह मांग और भी तेज होती जा रही है. इसी को देखते हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार राज्य में जातिगत जनगणना करा रही है.
जातिगत जनगणना के बारे में पूछे जाने पर अनिकेत ने कहा, 'जातिगत जनगणना कराया जाना बेहद जरूरी है. हमारी सारी योजनाओं में जाति है. जाति सबसे महत्वपूर्ण फैक्टरों में से एक है. आधार, पैन और बाकी चीजों से अलग देश में सबसे पावरफुल चीज जाति प्रमाणपत्र है और उसके बाद आय और निवास प्रमाणपत्र है. मुझे ऐसा लगता है कि अगर हमारे पास जातिगत जनगणना के आंकड़े हों तो हम हजारों और सॉल्यूशन निकाल सकते हैं.'