UNHCR की मदद से रिफ्यूजी स्टूडेंट्स की विदेश में पढ़ाई का सपना साकार कर रहा यह एडटेक प्लेटफॉर्म
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHCR) के आंकड़ों के अनुसार, 31 जनवरी 2022 तक करीब 46 हजार शरणार्थी संकटग्रस्त देशों से आकर भारत में बसे हैं. इसमें अधिकतर म्यांमार और अफगानिस्तान से हैं. ये 46,000 से अधिक शरणार्थी और शरण चाहने वाले यूएनएचसीआर भारत के साथ पंजीकृत हैं.
''संघर्ष की स्थिति के कारण हमें अपना देश, म्यांमार छोड़ना पड़ा. म्यांमार में सरकार हमें स्वीकार नहीं कर रही थी, इसलिए हमें जबरदस्ती अपना देश छोड़ना पड़ा.''
यह कहानी केवल मूल रूप से म्यांमार की रहने वाली 19 साल की फरहाना की ही नहीं है, बल्कि भारत में फरहाना जैसे सैकड़ों रिफ्यूजी स्टूडेंट्स हैं, जिन्हें अपना संघर्ष और हिंसा के कारण अपना देश छोड़ना पड़ा है और वे भारत में आकर रह रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHCR) के आंकड़ों के अनुसार, 31 जनवरी 2022 तक करीब 46 हजार शरणार्थी संकटग्रस्त देशों से आकर भारत में बसे हैं. इसमें अधिकतर म्यांमार और अफगानिस्तान से हैं. ये 46,000 से अधिक शरणार्थी और शरण चाहने वाले यूएनएचसीआर भारत के साथ पंजीकृत हैं.
अफगानिस्तान में जहां तालिबान के कहर के कारण लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा तो वहीं म्यांमार में जातीय हिंसा के कारण लोगों को ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. ऐसे में भारत हमेशा से ही शरणार्थियों के लिए पनाहगार रहा है. हालांकि, भारत में आकर शरणार्थी के रूप में रहने वाले लोगों को भी तमाम तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. इसमें एक बड़ा मुद्दा युवाओं के लिए उच्च शिक्षा हासिल करना रहा है.
इन्हीं समस्याओं को देखते हुए गैर-अग्रेंजी भाषी लोगों की अंग्रेजी भाषा में पकड़ के लिए टेस्ट आयोजित करने वाले Duolingo English Test ने UNHCR के साथ मिलकर शरणार्थी स्टूडेंट्स के लिए एक सामाजिक पहल की शुरुआत की है. इसके माध्यम से रिफ्यूजी स्टूडेंट्स दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज में आवेदन कर सकते हैं.
ताइक्वांडो मास्टर की बेटी फरहाना के परिवार में 13 सदस्य हैं. उनकी छोटी बहनें और भाई हैदराबाद में पढ़ाई करते हैं. फरहाना कहती हैं, मेरे समुदाय के लोग सोचते थे कि लड़कियों को पढ़ना नहीं चाहिए, बाहर नहीं जाना चाहिए, लेकिन मेरे पिता ने हमें बहुत आज़ादी दी और उसकी वजह से हम भारत में पढ़ रहे हैं, और मैंने अपनी दूसरे वर्ष तक की पढ़ाई पूरी कर ली है.
UNCHR की पहल की जानकारी मिलने के बाद फरहाना ने अपने अन्य दोस्तों के साथ इस स्कॉलर कार्यक्रम के लिए आवेदन किया. दो राउंड के इंटरव्यू के बाद फरहाना को इस स्कॉलर प्रोग्राम के लिए चुना गया था.
फरहाना का दाखिला अब तक ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय और यॉर्क विश्वविद्यालय में हो चूका है. वह अपनी आगे की पढ़ाई कनाडा के कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस में करना चाहती हैं.
फरहाना का सपना वैसे तो आईपीएस अधिकारी बनने का था, लेकिन रिफ्यूजी स्टेट के कारण वह ऐसा नहीं कर सकती हैं. वह कहती हैं कि मैं आगे चलकर रोहिंग्या समुदाय के लिए लीडर बनना चाहती हूं.
म्यांमार की तरह से अफगानिस्तान से आए शरणार्थी भी इस प्रोग्राम के जरिए अपनी उच्च शिक्षा के सपने को साकार करने में लगे हैं. 21 साल के असदुल्ला अफगानिस्तान से हैं और फिलहाल भारत में रह रहे हैं. असदुल्ला अपनी मां के साथ यहां रहते हैं जबकि उनके पिता फिनलैंड में शरणार्थी हैं. उनकी बड़ी बहन अपने पति और छोटे बेटे के साथ अफगानिस्तान में रहती हैं.
असदुल्ला कहते हैं कि कई अन्य अफ़गानों की तरह, हमें भी सुरक्षा चिंताओं के कारण ऐसा करना पड़ा. मैंने चुनौतियों, बाधाओं और समस्याओं से भरा बचपन अनुभव किया है. लेकिन उन चुनौतियों के बावजूद, मुझे लगता है कि मेरे जीवन में बचपन का समय मेरे जीवन के सबसे अच्छे समयों में से एक था, और बचपन की उन यादों को, मेरे दोस्त और मेरा घर को पीछे छोड़ना आसान नहीं था.
असदुल्ला को इस स्कॉलर प्रोग्राम के बारे में UNHCR के फेसबुक पेज से पता चला था. अब उनका एडमिशन वाशिंगटन डी.सी. में जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय में हो गया है. वह कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करेंगे. उन्हें इसके लिए फानेंशियल सपोर्ट भी मिल गया है.
असदुल्ला कहते हैं, मेरा अंतिम लक्ष्य एक सफल कंप्यूटर वैज्ञानिक और सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना है, ताकि मैं ताकि में अपने देश के विकास में योगदान दे पाऊं.