चंपावत के जंगलों में ईमानदारी की मिसाल बने हेमचंद्र
चंपावत के जंगलों में हर वक्त चौकन्ने रहने वाले वन अधिकारी हेमचंद्र गहतोड़ी अपने विभाग के ऐसे इकलौते अधिकारी हैं, जो अपने कार्यक्षेत्र में हर वक्त वर्दी में रहता है। गौरतलब है कि चंपावत के वनक्षेत्र में पर्यटकों को सुरक्षित रखने के साथ ही तस्करों से भी यहां वन पुलिस को मोर्चा लेना पड़ता है।
उत्तराखंड का एक खूबसूरत इलाका है चंपावत। वैसे तो यहां के मनोहारी जंगल वन कर्मियों के नहीं, भगवान के भरोसे हैं लेकिन यहां वन अधिकारी हेमचंद्र गहतोड़ी की छवि औरों से अलग है। गहतोड़ी वनों की सुरक्षा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ अपने तल्ख तेवर के लिए मशहूर हैं। जहां तक यहां के वन कर्मियों की बात है, उनका लंबे समय से टोटा है। वर्तमान में विभाग में 280 के सापेक्ष केवल 175 पदों पर ही कर्मचारी तैनात हैं। एक वनरक्षक के जिम्मे तीन से चार बीटों का कार्यभार है।
वन प्रभाग चंपावत में रेंजर से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों तक 105 पद रिक्त पड़े हैं। विभाग के पास वन कर्मचारी नहीं होने से जंगलों की सुरक्षा में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। गर्मियों में जंगलों में आग बुझाने के लिए भी पर्याप्त कर्मी नहीं है। जंगलों की सुरक्षा के साथ जंगली जानवरों को भी खतरा रहता है। ऐसे में वन क्षेत्राधिकारी हेमचंद्र गहतोड़ी की ईमानदारी और जिम्मेदारी मिसाल बन चुकी है।
चंपावत भौगोलिक दृष्टि से तराई, शिवालिक और उच्च पर्वत श्रृंखलाओं में विभाजित है। यहां के सुंदर प्राचीन मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। यहां की भाषा, संस्कृति और परम्परा का मिश्रण भी बाकी देशवासियों को रिझाता रहता है। चंपावत पहले अल्मोड़ा जिले का एक हिस्सा था। सन् 1972 में यह पिथौरागढ़ से जुड़ गया लेकिन 15 सितंबर 1997 को इसको एक स्वतंत्र जिला घोषित कर दिया गया। उत्तराखण्ड में संस्कृति और धर्म की उत्पत्ति की जगह के रूप में चंपावत की ख्याति है। इसे नागा और हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित 'किन्नर का घर' भी माना जाता है।
इस क्षेत्र में खस राजाओं का शासन था। क्षेत्र के ऐतिहासिक स्तंभ, स्मारक, पांडुलिपियां, पुरातत्व संग्रह और लोककथाएं इसके ऐतिहासिक महत्व के प्रमाण हैं। इस क्षेत्र के पूर्व में नेपाल, दक्षिण में ऊधम सिंह नगर, पश्चिम में नैनीताल और उत्तर-पश्चिम में अल्मोड़ा है। प्रकृति की सुंदरता के साथ सबसे खास बात यह है कि यहां के जंगलों का व्यापक घनत्व है, जो लाखों जंगली जानवरों का निवास स्थान है। उनसे पर्यटकों को सुरक्षित रखने के साथ ही तस्करों से भी यहां वन पुलिस को मोर्चा लेना पड़ता है। तस्करों से भिड़ने में आड़े आती है वन पुलिसकर्मियों की मिली-भगत। यहीं से गहतोड़ी की कार्यनिष्ठा और बाकी पुलिसकर्मियों के तौर-तरीकों में फर्क आ जाता है। उनकी छवि एक ईमानदार पुलिसकर्मी की है, जिसके लिए वह सम्मानित भी होते रहते हैं।
वर्ष 2003 से 11 साल तक शिक्षक रहे गहतोड़ी की मई 2016 में वन विभाग में वन क्षेत्राधिकारी के रूप में तैनाती हुई थी। अप्रैल 2017 से चंपावत वन प्रभाग के काली कुमाऊं में तैनात हुए गहतोड़ी ने बारहमासी सड़क निर्माण में मलबा डालने के आरोप में कंपनियों को 1.80 लाख रुपये जुर्माना लगाया था। बापरू आरक्षित देवदार वनी क्षेत्र में अतिक्रमण हटवाया और अतिक्रमणकारियों पर 30 हजार रुपये जुर्माना लगाया। छीड़ा में प्लांटेशन क्षेत्र में मलबा डालने पर लोक निर्माण विभाग पर भी उन्होंने अर्थदंड लगा दिया। चमरौली में 120 बांज के पेड़ काटे जाने पर कार्यवाही करते हुए उन्होंने जुर्माना ठोक दिया। घाट, पनार क्षेत्र में अवैध खनन पर अंकुश लगाने में उनको खासी कामयाबी मिली। वह विभाग के ऐसे इकलौते अधिकारी हैं, जो अपने कार्यक्षेत्र में हर वक्त वर्दी में रहता है।
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