हेरिटेज फ़ूड्सः जानें, आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू का डेयरी ब्रैंड, कैसे बना किसानों के लिए ख़ुशहाली का सबब
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं और उनके घरेलू ज़िले चित्तूर में डेयरी फ़ार्मिंग एक प्रमुख व्यवसाय है। 90 के दशक के शुरुआती दौर में, तेलगू देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने देखा कि आंध्र प्रदेश में डेयरी फ़ार्मिंग से जुड़े किसान तमाम चुनौतियों का सामना कर रहे थे और उन्हें समस्या थी देशभर में फैले डेयरी को-ऑपरेटिव सिस्टम से। किसानों को समय पर भुगतान न मिलने, दूध और दूध से बने उत्पादों के ट्रांसपोर्टेशन और बाज़ार में उनकी अहमियत कम होने की समस्याएं इस क्षेत्र के डेयरी सेक्टर में तेज़ी से बढ़ रही थीं।
ऐसे हालात में चंद्रबाबू नायडू ने तय किया कि वह किसानों की मदद करने के लिए एक संगठन बनाएंगे, जो डेयरी को-ऑपरेटिव्स की अवधारणा को कॉर्पोरेट या निजी इकाईयों की कार्यक्षमता के साथ मिलाकर एक नई कार्यप्रणाली विकसित करेगा और उसी के माध्यम से हालात को बदलने का प्रयास करेगा। इस तरह से 1992 में हेरिटेज फ़ूड्स की शुरुआत हुई। नायडू ने 80 लाख रुपए के शुरुआती निवेश के साथ इसकी शुरुआत की। उनकी पत्नी नारा भुवनेश्वरी भी इस वेंचर के साथ जुड़ीं। इसके बाद समय के साथ हेरिटेज फ़ूड्स ने लाखों किसानों को अपने साथ जोड़ा और आज की तारीख़ में यह भारत के सबसे बड़े डेयरी ब्रैंड्स में से एक है।
हेरिटेज फ़ूड्स की एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर ब्राह्मणी नारा ने योरस्टोरी के साथ हुई एक बातचीत में बताया,
"वित्तीय वर्ष 2018-19 में हेरिटेज फ़ूड्स ने 2,482 करोड़ रुपयों का रेकॉर्ड टर्नओवर हासिल किया। आज हम देश के 15 राज्यों में मौजूद हैं और हमारी पहुंच देश के तीन लाख से ज़्यादा डेयरी फ़ार्मिंग करने वाले किसानों तक है।"
शुरुआती दौर
हेरिटेज फ़ूड्स के आने से पहले लगभग दो दशकों से भारत में अमूल का डेयरी को-ऑपरेटिव मॉडल ही प्रचलित था। वर्गीज़ कुरियन के प्रयासों की बदौलत ऑपरेशन फ़्लड के माध्यम से भारत, जो कभी दूध की उपलब्धता की कमी से जूझता था, वह दुनिया में सबसे ज़्यादा दूध का उत्पादन करने वाले देश के रूप में उभरकर सामने आया।
हेरिटेज फ़ूड्स ने अमूल मॉडल की अच्छी चीजों को अपनाया जैसे कि बिचौलियों की भूमिका को ख़त्म करना, किसानों से सीधे दूध की ख़रीद, किसानों को उपयुक्त भुगतान करना, दूध की ठीक ढंग से प्रोसेसिंग और फिर ग्राहकों तक अच्छे उत्पाद पहुंचाना आदि।
हेरिटेज फ़ूड्स ने 1993 में पहली प्रोसेसिंग फ़ैसिलिटी लॉन्च की। अपने मॉडल को बढ़ावा देने के लिए हेरिटेज फ़ूड्स 1994 में आईपीओ हो गया। कंपनी का दावा है कि उन्हें 54 बार ओवरसब्सक्राइब किया गया।
हेरिटेज फ़ार्मिंग ने किसानों को पूरी तरह से अपने साथ जोड़ना शुरू किया। ब्राह्मणी विस्तार से बताते हुए कहती हैं,
"किसानों को हमने अच्छे भुगतान देना शुरू किया। कभी भी उनको होने वाले भुगतान में न तो देरी हुई और न ही कोई कटौती की गई। हमने उनको लोन, इंश्योरेन्स, कैटल फ़ीड आदि की सुविधाएं भी देना शुरू किया।"
किसानों को सिर्फ़ दूध के लिए उतना अच्छा भुगतान नहीं मिलता था, जितना की दूध से तैयार होने वाले अन्य उत्पादों जैसे कि पनीर, दही, लस्सी, आइसक्रीम आदि के लिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हेरिटेज फ़ूड्स का ध्यान हमेसा से ही इन वैल्यू-ऐडेड डेयरी प्रोडक्ट्स की ओर अधिक रहा क्योंकि इन पर मिलने वाला मुनाफ़ा दूध की अपेक्षा अधिक होता है।
डेयरी मॉडल
हेरिटेज फ़ूड्स मिल्क कलेक्शन सेंटर्स के माध्यम से दिन में दो बार किसानों से दूध इकट्ठा करता है। इसमें गाय और भैंस दोनों का ही दूध होता है। दोनों की मात्रा और अनुपात मौसम और क्षेत्र के हिसाब से बदलता रहता है। हेरिटेज फ़ूड्स के 16 प्रोसेसिंग सेंटर्स हैं और कलेक्शन सेंटर्स के बाद प्रोसेसिंग के लिए दूध को इन सेंटर्स तक पहुंचाया जाता है। इसके बाद दूध को डिस्ट्रीब्यूटर्स और रीटेलर्स तक पहुंचाया जाता है।
हेरिटेज फ़ूड्स प्लान्ट
ब्राह्मणी का दावा है,
"पूरी वैल्यू चेन को स्थानीय स्तर पर ही स्थापित किया गया है और सारा दूध स्थानीय किसानों से ही लिया जाता है, इसलिए दूध के संग्रहण से लेकर डिस्ट्रीब्यूटर्स और रीटेलर्स तक पहुंचने में अधिक से अधिक 24 घंटों का समय लगता है और साथ ही, इससे अधिक शेल्फ़-लाइफ़ भी सुनिश्चित होती है।"
हेरिटेज फ़ूड्स की वेबसाइट दावा करती है कि उनके प्रोडक्ट्स की शेल्फ-लाइफ़ 48 घंटे की है और यह समय पैकेजिंग की तारीख़ से शुरू होता है, जब दूध को 4 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर किया जाता है।
दूध और अन्य उत्पादों को 1.2 लाख रीटेलर्स, 500 स्टोर्स और बिग-बास्केट जैसे ई-कॉमर्स प्लैटफ़ॉर्म्स के माध्यम से बेचा जाता है। ब्राह्मणी कहती हैं,
"हमने 1,400 हेरिटेज पार्लर्स भी शुरू किए हैं, जो हमारी एक्सक्लूसिव फ्ऱैंचाइजी हैं।"
चुनौतियां
चुनौतियों पर चर्चा करते हुए ब्राह्मणी बताती हैं,
"दूध के दाम और उपलब्धता मौसम पर निर्भर होते हैं। इससे हमारा काम मुश्क़िल होता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम अधिक मात्रा में दूध की बिक्री करते हैं, लेकिन उपलब्धता कम होती है, जैसे कि गर्मियों के मौसम में। सर्दियों में इसकी विपरीत स्थिति होती है। ऐसे में हमारे लिए रॉ-मटीरियल की व्यवस्था करना काफ़ी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। हमें रोज़ाना इसका ध्यान रखना पड़ता है।"
ब्राह्मणी बताती हैं कि कंपनी मार्केटिंग कैंपेन्स के ज़रिए ग्राहकों से जुड़ने का प्रयास करती रहती है। उन्होंने बताया,
"हमने वाइट लाइज़ नाम से एक कैंपेन शुरू किया था। हमने आईसीसी वर्ल्ड कप 2019 के दौरान एक क्विज़ कैंपेन भी चलाया था, जहां हम विजेताओं को उपहार देते थे।"
अब चंद्रबाबू नायडू के इस डेयरी ब्रैंड का लक्ष्य है, 6 लाख किसानों तक पहुंचना। ब्राह्मणी बताती हैं कि इस लक्ष्य को पाने के लिए कंपनी ने 2024 तक की समय-सीमा तय की है। उन्होंने आगे बताया कि इस दौरान कंपनी लगातार नए वैल्यू-ऐडेड उत्पाद लॉन्च करती रहेगी।