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जानिए कैसे रेजरपे के संस्थापकों ने स्टार्टअप्स और लघु उद्योगों के लिए ऑनलाइन पेमेंट को सरल बनाया

जानिए कैसे रेजरपे के संस्थापकों ने स्टार्टअप्स और लघु उद्योगों के लिए ऑनलाइन पेमेंट को सरल बनाया

Monday August 26, 2019 , 3 min Read

भारत में ईकॉमर्स बाजार तेजी से बढ़ा है। हालांकि कुछ समय पहले तक उपभोक्ताओं को खरीददारी के बाद जो समस्या आती थी वो पेमेंट से जुड़ी होती थी। इसीलिए स्टार्टअप्स और लघु उद्योगों के लिए पेमेंट की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए, हर्षिल माथुर और शशांक कुमार ने 2014 में रेजरपे (Razorpay) की शुरुआत की। हर्षिल माथुर और शशांक कुमार को अहसास हुआ कि मौजूदा ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम लंबे और थकाऊ हैं। जिसके बाद इस जोड़ी ने पेमेंट गेटवे बनाने का फैसला किया। हालांकि दोनों में किसी का फाइनेंस का बैकग्राउंड नहीं था।

 


Shashank Kumar and Harshil Mathur

रेजरपे के फाउंडर शशांक कुमार और हर्षिल माथुर



आइडिया सिंपल था


स्टार्टअप और व्यापारियों के लिए 15 मिनट के भीतर पेमेंट गेटवे इंटीग्रेशन प्रोवाइड कराना। मौजूदा सिस्टम को कागजी कार्रवाई की बहुत आवश्यकता थी और इंटीग्रेशन करने के लिए करीब एक महीने का समय लग जाता था। 


आज तेजी से आगे बढ़ रहे रेजरपे के पास ग्राहकों को पेमेंट करने का एक व्यापक स्पेक्ट्रम है। यह 350,000 से अधिक व्यापारियों को अपनी सर्विस देता है, जिसमें OYO, Zomato, और Swiggy जैसे स्टार्टअप यूनिकॉर्न और एयरटेल जैसे बड़े उद्यम और राज्य द्वारा संचालित IRCTC शामिल हैं।


हर साल इस पेमेंट गेटवे से 5 बिलियन डॉलर का लेनदेन होता है। रोजाना 5 हजार से ज्यादा बिजनेस इसका प्रयोग करते हैं। बाजार में इसकी हिस्सेदारी की बात करें तो ये कंपनी वर्तमान में भारतीय पेमेंट डोमेन के 12 प्रतिशत से अधिक का अपनी कमांड रखती है। जोकि पिछले साल से दो प्रतिशत ज्यादा है। 


हालांकि अपने नए अवतार में रेजरपे कई बदलावों और चुनौतियों से गुजरा है। जयपुर में एक स्कूल-फीस मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म के रूप में इसकी शुरुआत हुई थी। दुर्भाग्य से, उस समय इस प्रोडक्ट को खरीदने के लिए कोई तैयार नहीं था।


हर्षिल कहते हैं,


'हम कई स्कूलों में गए, लेकिन वे डिजिटल पेमेंट के फायदों से वाकिफ नहीं थे।'


यह वो समय था जब उन्होंने स्टार्टअप और लघु उद्योगों से बात की जो ऑनलाइन पेमेंट इंटीग्रेशन की चुनौतियों का एहसास कर रहे थे। हर्षिल कहते हैं कि इस जरूरत को समझने के लिए उन्होंने कुछ पेमेंट गेटवे कंपनियों से संपर्क किया।

 




हर्षिल कहते हैं,


“हमें पिछले ऑपरेशनल रिकॉर्ड, हमारे ऑफिसेस की उपस्थिति, सिक्योरिटी डिपोजिट और हाई सेट-अप फीस के लिए कहा गया। भारत में अधिकांश पेमेंट गेटवे ने अपने ऑनलाइन रिव्यू में इसी तरह के बुरे अनुभवों के बारे में बताया है। इस सभी को ध्यान में रखते हुए रेजरपे के आइडिया को हमने पेश किया।” 


शशांक कहते हैं,


“आमतौर पर, पेमेंट इंटीग्रेशन के लिए कई पेज के डॉक्यूमेंट्स और तमाम पेपरवर्क की आवश्यकता होती है। हमने इसे सिंपल रखा। इसने हमारा काम आसान कर दिया। हमारे इंटीग्रेशन में आधा घंटा लगता है।"


हर्षिल बताते हैं कि डिजिटल पेमेंट गेटवे का आइडिया आने के बाद वे लोग करीब 80 बैंकरों के पास गए तब जाकर उन्हें एक ऐसा व्यक्ति मिला जो उनकी मदद के लिए तैयार हुआ। दरअसल दोनों ने पहले तीन से चार महीने अपने प्रोडक्ट को कंपनी को बेचने के लिए मोटरसाइकिल से जयपुर के चक्कर लगाए। 


हालाँकि, जयपुर बैंक के साथ उनकी एक मीटिंग ने उनके लिए बड़ा मोड़ दिया। हर्षिल याद करते हैं,

“सही व्यक्ति से संपर्क कराने में बैंक को बहुत समय लगा। फाइनली जब मैं उनके टच में आया, तो हमने एक फोन कॉल पर अपने प्रोडक्ट के बारे में उन्हें बताया। हमने उन्हें ये भी बताया कि हम इस प्लेटफॉर्म को अपने लिए इंटीग्रेट नहीं कराना चाहते हैं, बल्कि हमारे व्यापारियों और अन्य बैंकों के गेटवे के लिए कराना चाहते हैं। दिल्ली ब्रांच पहले से ही इसी तरह से पेमेंट कॉन्सेप्ट पर काम कर रही थी और इसलिए उसके लिए यह समझना बहुत आसान था कि हम क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे थे।”