कौन थे सफदरजंग जिनके नाम पर दिल्ली में एयरपोर्ट, स्टेशन और अस्पताल हैं!
सफदरजंग का नाम सुनते ही ज्यादातर लोगों के दिमाग में सबसे पहले दिल्ली स्थित सरकारी अस्पताल आता है. हालांकि, दिल्ली के सबसे पहले हवाई हड्डे का नाम भी सफदर जंग ही था जिसे 1930 के आसपास बनाया गया था. अब यह एयरपोर्ट आम नागरिकों की सेवा में नहीं है, लेकिन अभी भी यह एयरपोर्ट बना हुआ है. लेकिन सफदरजंग कौन था जिनके नाम पर राजधानी दिल्ली में इतनी जगहों के नाम हैं?
अमूमन नाम को लेकर यह भ्रम हो ही जाता है कि सफरदजंग कोई बादशाह था, क्योंकि देश भर में अधिकतर मकबरें तो राजा या किसी बादशाह के ही बने हुए हैं. लेकिन सफदरजंग मकबरे के बारें में यह सोचना गलत है.
सफदरजंग ईरान (फारस) के मूल निवासी थे जो जन्म के कुछ समय बाद भारत आ गए थे. उसकी मृत्यु 1754 में सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुई. सफदरजंग का पूरा नाम अबुल मंसूर मिर्जा मुहम्मद मुकीम अली खान था. मुगल बादशाह मोहम्मद शाह ने उन्हें 'सफदरजंग' की उपाधी दी थी. मोहम्मद शाह के शासन (1719-48) में अवध के सूबेदार बने. मोहम्मद शाह के बाद 1748 में अहमद शाह बहादुर के शासन काल में हिन्दुस्तान का प्रधानमंत्री यानी कि वजीर-उल-हिस्दुस्तान भी बनाए गए.
सफदरजंग का मकबरा
माना जाता है कि एक युद्ध के बाद साल 1753 में सफदरजंग को दिल्ली से बाहर निकाल दिया गया था. जिसके कुछ समय बाद सफदरजंग की मौत हो गई. सफदरजंग की मृत्यु के बाद उनके बेटे शुजा-उद-दौला ने उस समय के मुगल सम्राट से दिल्ली में अपने पिता के लिए एक मकबरा बनाने की अनुमति ली थी. जिसके बाद उन्होंने मुगल शैली में सफदरजंग मकबरा का निर्माण करवाया था.
सफदरजंग आर्किटेक्चर
मुग़ल आर्किटेक्चर की एक प्रसिद्ध शैली- चार बाग शैली- पर निर्मित यह मकबरा पुरे परिसर के बीचों-बीच स्थित है और मकबरे के तीन तरफ एक जैसे दिखने वाले तीन अलग-अलग महल हैं- जंगली महल, बादशाह पसन्द और मोती महल. तीनों महल उत्तर मुगलकालीन वास्तुशैली में बने हैं. मकबरे का निर्माण भूरा, पीला और लाल बलुआ पथ्थरो से किया गया है.
मकबरे में सफदरजंग और उसकी बेगम की कब्र बनी हुई है. ये मकबरा एक सफेद समाधि है जो मुगल वास्तुकला का सुंदर नमूना है. मकबरे का मुख्य द्वार करीब दो मंजिला है. जिस पर अरबी शिलालेख को देखा जा सकता है.
सफदरजंग का मकबरा दिल्ली में एएसआई के 174 संरक्षित स्मारकों में से एक है. एएसआइ (ASI) के दस्तावेजों में यह जानकारी मिलती है कि बनाए जाने के समय इस मकबरे के लिए जब पत्थरों की कमी पड़ी तो निजामुद्दीन स्थित अब्दुर्रहीम खानखाना के मकबरे से पत्थर निकाल कर इस मकबरे में लगा दिए गए.
सफदरजंग मकबरे को मुग़लो का अंतिम स्मारक माना जाता है.