ये है भारत का पहला मकबरा जिसकी तर्ज़ पर बना है ताजमहल
भारत में कई मकबरे हैं, पर आपको पता है कि भारतीय उपमहाद्वीप का पहला मकबरा कौन सा है? भारत में पहला मकबरा होने की वजह से इस मकबरे को सात आश्चर्यों में शुमार होने वाले ताजमहल को भी इसी के तर्ज़ पर बनी होने की बात कही जाती है. साथ ही यह मकबरा भारत में पहला महत्त्वपूर्ण और सबसे शक्तिशाली मुग़ल वंश का प्रतीक है जिसने अधिकांश उपमहाद्वीप को एकीकृत किया. बात हो रही है हुमायूं के मकबरे की! इस मकबरे को बनाने में फारसी और भारतीय कारीगरों ने एक साथ काम किया, जो इस्लामी दुनिया में पहले बनाए गए किसी भी मकबरे से कहीं अधिक भव्य था.
14वीं शताब्दी के सूफी संत, हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के केंद्र में स्थित यह मकबरा अत्यंत महत्वपूर्ण पुरातात्विक व्यवस्था में है. चूंकि किसी संत की कब्र के पास दफन होना शुभ माना जाता है, इसलिए सात शताब्दियों के मकबरे के निर्माण के कारण यह क्षेत्र भारत में मध्यकालीन इस्लामी इमारतों का सबसे घना समूह बन गया है.
दिल्ली के प्रसिद्ध पुराने किले के पास स्थित यह मकबरा 30 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. मुगलों का शयनागार' कहे जाने वाले इस मकबरे के परिसर में 150 से अधिक मुगल परिवार के सदस्य दफ़न हैं. इस परिसर में ईसा खान, बू हलीमा, अफसरवाला, नाई का मकबरा, नीला गुम्बद, अरब सराय सहित कई और मकबरे हैं जिसमें हुमायूं का मकबरा मुख्य स्मारक के तौर पर जाना जाता है.
मुग़ल बादशाह बाबर की मौत के बाद उसके सबसे बड़े बेटे हुमायूं का 30 दिसंबर 1530 को राज्याभिषेक किया गया. हुमायूं भले ही बादशाह रहा लेकिन हमेशा दुर्भाग्य का राजकुमार रहा. दिल्ली का तख़्त एक बार हार जाने से लेकर उसका अंत भी करुणा से भरा था. साहित्य के उत्साही संरक्षक हुमायूं ने एक पुस्तकालय का निर्माण करवाया था, जिसमें 150,000 से अधिक कीमती पांडुलिपियां रखी गई थीं. 1556 की एक दोपहर बाद, पुस्तकालय की ऊपरी मंजिल पर अपने अध्ययन कक्ष से अज़ान सुन एक खड़ी पत्थर की सीढ़ी से नीचे उतरते हुए फिसल कर गिरने से हुमायूं की मौत हुई.
हुमायूं की याद में उनकी पत्नी हामिदा बानो बेगम ने उनके बेटे महान सम्राट अकबर के संरक्षण में यह मकबरा बनवाया. मकबरा 1556 में बनना शुरू होकर 1571 में बनकर तैयार हुआ.
हुमायूं का मकबरा भारतीय, फारसी और तुर्की वास्तुकला शैली का मिश्रण है. मुग़ल वास्तुकला की प्रसिद्ध चार-बाग़ शैली, मेहराब, छतरी विभिन्न प्रकार के गुंबद, अष्टमुख कक्ष इस मकबरे की बनावट शैली में देखने को मिलते हैं. इसके साथ स्पष्ट बल्बनुमा गुंबद, कोनों पर पतले बुर्ज, चौड़े प्रवेश द्वार, स्तंभों और दीवारों पर ज्यामितीय पैटर्न और प्रवेश द्वारों पर खुदी हुई अरबी की आयतें इसकी और अन्य मुगलकालीन इमारतों की विशिष्टता रही है.
मकबरा अपने आप में एक ऊंचे, चौड़े सीढ़ीदार मंच पर खड़ा है, जिसके चारों तरफ दो खाड़ी गहरी गुंबददार कोशिकाएं हैं. इंटीरियर में बड़ा अष्टकोणीय कक्ष है जिसमें गलियारों से जुड़े गुंबददार छत के डिब्बे हैं. यह अष्टकोणीय योजना दूसरी मंजिल पर दुहराई गई है. यह संरचना सफेद और काले रंग के संगमरमर की सीमाओं के साथ लाल बलुआ पत्थर पत्थर की है.
मकबरे के परिसर में अन्य विभिन्न प्रकार की इमारतें, जैसे- राजसी द्वार (प्रवेश द्वार), किले, मकबरे, महल, मस्जिद, सराय आदि भी हैं.
1993 में यूनेस्को द्वारा इस मकबरे को विश्व धरोहर घोषित किया जा चूका है.
Edited by Prerna Bhardwaj