हर साल पूरी दुनिया में होता है 7 करोड़ औरतों का वर्जिनिटी टेस्ट, करने वाले हैं डॉक्टर, अस्पताल, पुलिस और अदालतें
भारत समेत दुनिया के 40 फीसदी देशों में कौमार्य परीक्षण के खिलाफ कोई कठोर कानून नहीं.
लोइस जेनसन कोई फिक्शनल कैरेक्टर नहीं है. वो एक 25 साल की लड़की थी, जो 1975 में अमेरिका के मिनिसोटा में एक लोहे की खदान में काम करने गई थी. वहां उसके जैसी और बहुत सारी महिलाएं काम करती थीं. यह वहां का नियम था कि नौकरी देने से पहले महिलाओं का वर्जिनिटी टेस्ट किया जाता था. कहते थे, यह पता लगाने के लिए कर रहे हैं कि कहीं महिला प्रेग्नेंट तो नहीं.
महिलाओं के हैरेसमेंट का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता था. वर्कप्लेस पर छेड़खानी, यौन हिंसा और मॉलिस्टेशन आम बात थी. यहां लोइस जेनसन की कहानी इतने विस्तार से इसलिए सुनाई क्योंकि अमेरिका के इतिहास में यही वह पहला केस था, जिसने उस देश में वर्कप्लेस सेक्सुअल हैरेसमेंट कानून की बुनियादी रखी थी. इस केस के ऐतिहासिक फैसले के बाद अमेरिका में न सिर्फ जॉब से पहले महिलाओं का वर्जिनिटी टेस्ट प्रतिबंधित किया गया, बल्कि काम की जगह पर सेक्सुअल हैरेसमेंट को लेकर कठोर कानून बने.
स्कॉलरशिप के लिए वर्जिनिटी टेस्ट
दक्षिण अफ्रीका में कॉलेज की लड़कियों को स्कॉलरशिप पाने से पहले अपने चरित्र और पवित्रता के सुबूत की तरह डॉक्टर का सर्टिफिकेट देना पड़ता था कि वो वर्जिन हैं. शहर का मेयर जब उन्हें स्कॉलरशिप बांट रहा होता तो वो अपनी वर्जिनिटी का सर्टिफिकेट हाथों में लिए उसे लेने जातीं.
और यह कोई 100 साल पुरानी बात नहीं है. 2016 तक यह अलिखित बर्बर नियम उस देश में चल रहा था, जब महिलाओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लंबे विरोध और साउथ अफ्रीकन कमीशन फॉर जेंडर इक्वैलिटी की रिपोर्ट के बाद वर्जिनिटी टेस्ट को प्रतिबंधित कर दिया गया.
पुलिस और आर्मी में भर्ती से पहले कौमार्य परीक्षण
इंडोनेशिया की यह खबर तो बस एक साल पुरानी है. इंडोनेशिया में पुलिस और सेना में महिलाओं की भर्ती से पहले उनका वर्जिनिटी टेस्ट किया जाता था. टाइम की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे उदाहरण कम हैं, जहां वर्जिन न पाए जाने पर महिलाओं की भर्ती न की गई हो, लेकिन वर्जिन होना उनकी पवित्रता और उम्दा चरित्र का प्रमाण जरूर था. 2019 में टाइम ने एक लंबी रिपोर्ट में उन महिलाओं के इंटरव्यू किए, जिनका पुलिस में भर्ती से पहले कौमार्य परीक्षण किया गया था. उनके निजी अनुभवों की कहानी और उसकी ग्राफिक डीटेल काफी तकलीफदेह थी.
वर्ष 2021 में इंडोनेशिया में यह कानून पास हुआ, जिसके बाद महिलाओं के वर्जिनिटी टेस्ट को गैरकानूनी बताते हुए पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया. यह सिर्फ एक साल पुरानी बात है.
तालिबान से पहले का अफगानिस्तान
अफगानिस्तान के अलग-अलग प्रांतों में शादी, नौकरी, रेप केसेस के मामले में लड़कियों का कौमार्य परीक्षण किए जाने का चलन रहा है. 2018 में अफगानिस्तान की सरकार ने अफगानी पीनल कोड में वर्जिनिटी टेस्ट को आपराधिक और दंडनीय कृत्य करार दिया.
हालांकि उस कानून में तब यह प्रावधान किया गया था कि यदि कौमार्य परीक्षण महिला की सहमति से किया जा रहा है तो यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा. लेकिन अगले साल 2019 में यह क्लॉज को हटा दिया गया, जहां महिला की सहमति होना पर्याप्त नहीं था और हर स्थिति में वर्जिनिटी टेस्ट दंडनीय ही था.
यहां यह कहना जरूरी है कि यह कानून तालिबान के सत्ता में आने से पहले का था. वहां के मौजूदा हालात की हमें कोई जानकारी नहीं है. जाहिरन तस्वीर सुखद तो नहीं है.
तुर्की में स्कूल की बच्चियों का वर्जिनिटी टेस्ट
तुर्की में वर्ष 2002 में यह कानून पास किया गया, जिसके तहत स्कूली बच्चियों के वर्जिनिटी टेस्ट को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया. इसके पहले देश के बहुत से प्रांतों और समुदायों में स्कूली बच्चियों का जबरन हाइमन टेस्ट किया जाता था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह अभी तक वर्जिन और पवित्र हैं. मिस्र में 2011 और बांग्लादेश में 2018 में वर्जिनिटी टेस्ट को कानूनन प्रतिबंधित किया गया.
19वीं सदी में नौकरी के लिए, शादी के लिए महिलाओं का कौमार्य परीक्षण किया जाना किसी भी देश के लिखित कानून का हिस्सा नहीं था. यह एक ऐसी अलिखित कल्चरल प्रैक्टिस थी, जो कई सौ सालों से चली आ रही थी. दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं है, जो इस मामले में अपवाद हो. आज जो संसार के सबसे आधुनिक देश हैं, वह भी नहीं. ये बात दीगर है कि कौमार्य परीक्षण को सबसे पहले उन देशों में कानूनन असंवैधानिक और दंडनीय अपराध घोषित किया गया.
42 फीसदी देशों में कौमार्य परीक्षण को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं
यूएन विमेन की रिपोर्ट के मुताबिक आज भी दुनिया के 42 फीसदी देशों में कौमार्य परीक्षण को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है. वहां अलिखित रूप से अलग-अलग समुदायों में यह प्रैक्टिस आज भी चल रही है. यूएन विमेन की ही साल 2018 की एक रिपोर्ट है, जो कहती ह कि दुनिया भर में हर साल 7 करोड़ से ज्यादा औरतें कौमार्य परीक्षण की कठिन और तकलीफदेह परीक्षा से गुजरती हैं. इस कौमार्य परीक्षण का आदेश और अनुमति डॉक्टर, हॉस्पिटल, न्यायालय और सरकारें देती हैं.
अक्तूबर, 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएन ह्यूमन राइट्स और यूएन विमेन ने एक ग्लोबल अपील जारी करते हुए कहा कि कौमार्य परीक्षण महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. इस संगठनों ने पूरी दुनिया की सरकारों से यह मांग की कि हर देश में कानून बनाकर कौमार्य परीक्षण को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए.
क्या कहता है भारत का कानून
भारतीय दंड संहिता में ऐसी कोई धारा नहीं है, जो कौमार्य परीक्षण को असंवैधानिक और दंडनीय अवराध घोषित करती हो. हालांकि न्यायालय समय-समय पर अलग-अलग मुकदमों के दौरान यह बात कह चुके हैं कि यह एक अवैज्ञानिक और बर्बर प्रैक्टिस है. साथ ही इसे बंद किए जाने का निर्देश भी दे चुके हैं. फिर भी हमारे देश में अभी यह कानून नहीं है.
भारत में सबसे ताजा केस तो केरल की सिस्टर सेफी का है. एक साथी सिस्टर की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा काट रही सिस्टर सेफी का सीबीआई ने न सिर्फ कौमार्य परीक्षण करवाया, बल्कि उसके परिणाम को मीडिया में लीक भी कर दिया. जब उन्होंने इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया तो अदालत ने इसे असंवैधानिक, अमानवीय और अवैज्ञानिक कहा. इस बार मुजरिम के कटघरे में सीबीआई खड़ी थी, जो अपनी सफाई में पुलिस की धाराओं के हवाले से महिला अपराधी के कौमार्य परीक्षण को जस्टीफाई करने की कोशिश कर रही थी.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अक्तूबर में ही रेप और मॉलिस्टेशन के केसेज में महिलाओं पर किए जाने वाले टू फिंगर टेस्ट के खिलाफ पुलिस और संबंधित एजेंसियों को खरीखोटी सुनाई थी और इसे तत्काल बंद किए जाने की बात कही थी.
पिछले एक दशक में भारत की अदालतें एक दर्जन से ज्यादा बार यह बोल चुकी हैं कि वर्जिनिटी टेस्ट असंवैधानिक है, गलत है, लेकिन यह प्रैक्टिस आज भी पूरी तरह बंद नहीं हुई है. हमारे देश को इस संबंध में एक कठोर कानून की जरूरत है, जैसाकि पॉश कानून (Prevention of Sexual Harassment (PoSH) at Workplace Act) के साथ हुआ. इस संबंध में सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का दिशा-निर्देश (विशाखा गाइडलाइंस) काफी नहीं था.
Edited by Manisha Pandey