कैसे एम्बुलेंस स्टार्टअप स्टैनप्लस ने दूसरी लहर में किया 10 गुना मांग को पूरा और कर रहा है 'भारत के 911' का निर्माण
हैदराबाद स्थित चिकित्सा परिवहन स्टार्टअप स्टैनप्लस (StanPlus) महानगरों और छोटे शहरों में एम्बुलेंस सेवाओं की बढ़ती मांग को हल करने के लिए अपने ऑन-ग्राउंड और ऑन-एयर बेड़े को बढ़ा रहा है। यह पहले ही दो लाख मरीजों की मदद कर चुका है।
"आंकड़े बताते हैं कि विकसित देशों में एक पूरी तरह से सुसज्जित एम्बुलेंस को एक मरीज तक पहुंचने में सात मिनट से भी कम समय लगता है। लेकिन भारत में औसतन 45+ मिनट लगते हैं। प्रत्येक अतिरिक्त मिनट जीवित रहने की संभावना को 7-10 प्रतिशत तक कम कर देता है।"
COVID-19 की दूसरी लहर ने भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित किया। ऐसे में तकनीक-आधारित एम्बुलेंस एग्रीगेटर्स ने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कदम बढ़ाया। हैदराबाद स्थित एम्बुलेंस स्टार्टअप स्टैनप्लस का दावा है कि महामारी की पहली लहर के दौरान मांग में सिर्फ 3 गुना की वृद्धि की तुलना में उसके नेटवर्क ने मार्च और मई के बीच रोगी परिवहन की मांग में 10 गुना की छलांग देखी।
स्टैनप्लस के संस्थापक और सीईओ प्रभदीप सिंह ने योरस्टोरी को बताया, “हमारी 70 प्रतिशत से अधिक कॉल COVID से जुड़ी थीं। महामारी ने उजागर कर दिया है कि भारत की रोगी परिवहन व्यवस्था कितनी दयनीय है। इसने COVID परिवहन एम्बुलेंस की एक नई कैटेगरी पेश की है।"
भले ही महामारी ने अत्यधिक खंडित चिकित्सा परिवहन क्षेत्र में सुधार और संगठन की आवश्यकता को प्राथमिकता दी हो, लेकिन भारत में हमेशा दुनिया में आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया दर सबसे धीमी रही है। आंकड़े बताते हैं कि विकसित देशों में एक पूरी तरह से सुसज्जित एम्बुलेंस को एक मरीज तक पहुंचने में सात मिनट से भी कम समय लगता है। लेकिन भारत में औसतन 45+ मिनट लगते हैं। प्रत्येक अतिरिक्त मिनट जीवित रहने की संभावना को 7-10 प्रतिशत तक कम कर देता है।
प्रभदीप बताते हैं, “जब नैदानिक समाधान की बात आती है, तो भारत हर साल हृदय संबंधी घटनाओं के कारण होने वाली 20 प्रतिशत जान बचा सकता है। यदि सही समय में सहायता प्रदान की जाती है, तो रोगी के बचने की संभावना बहुत अधिक होती है।”
और यही वह समस्या है जिसे हल करने के लिए स्टैनप्लस की स्थापना की गई है। उन्होंने 2016 में एंटोनी पॉयरसन और जोस लियोन के साथ मिलकर इसे सह-स्थापित किया था। इसका व्यापक लक्ष्य टेक्नोलॉजी, प्रशिक्षित कर्मियों और महत्वपूर्ण और गैर-महत्वपूर्ण देखभाल दोनों के लिए एम्बुलेंस के मल्टी-सिटी बेड़े के इस्तेमाल के साथ भारत की आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया (ईएमआर) को व्यवस्थित करना था।
संस्थापक कहते हैं, “केवल 14 प्रतिशत भारतीय ही एम्बुलेंस लेते हैं। महामारी में, वह संख्या घटकर सिंगल डिजिट में आ गई। हम भारतीय स्वास्थ्य सेवा के क्लासिक 3A - जागरूकता (awareness), सामर्थ्य (affordability) और पहुंच (access) को हल करना चाहते थे। भारतीयों को एम्बुलेंस के लिए रोना न पड़े।”
'एम्बुलेंस की उबर' का निर्माण
स्टैनप्लस एक यूनिफाइड टेक प्लेटफॉर्म के माध्यम से हॉस्पिटल एम्बुलेंस, निजी ऑपरेटरों, सरकार द्वारा संचालित सेवाओं और मॉम-एंड-पॉप एम्बुलेंस को एकत्रित और मानकीकृत करता है। यह एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) एम्बुलेंस का अपना बेड़ा भी चलाता है। स्टार्टअप ने हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, कोयम्बटूर और कोच्चि के 40+ अस्पतालों के साथ अपनी चिकित्सा प्रतिक्रिया प्रणाली और रोगी परिवहन आवश्यकताओं का प्रबंधन करने के लिए भागीदारी की है।
स्टार्टअप वर्तमान में 10 शहरों में 3,000 एम्बुलेंस के अपने बेड़े के माध्यम से रोगियों की सेवा करता है, जिसमें अत्याधुनिक उपकरण और प्रशिक्षित पैरामेडिक्स हैं। इसके डॉक्टरों और ड्राइवरों को एक्सीडेंट/जलने के शिकार से लेकर हृदय संबंधी आपात स्थिति और सर्जरी के रोगियों आदि तक विभिन्न प्रकार की रोगी की जरूरतों को संभालने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
प्रभदीप बताते हैं, “हम एक फुल-स्टैक चिकित्सा सहायता कंपनी हैं। हम अपने नेटवर्क को पूरी तरह से निर्बाध बनाने के लिए सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर से लेकर टेलीफोनी सिस्टम, ड्राइवर और पैरामेडिक्स तक हर चीज का ध्यान रखते हैं। हम नैदानिक और गैर-नैदानिक कर्मचारियों के लिए अपने स्वयं के प्रशिक्षण मॉड्यूल भी बना रहे हैं।”
स्टैनप्लस का दावा है कि इसका औसत प्रतिक्रिया समय 15 मिनट से कम है। इसका तकनीकी स्टैक StanFleet, सही प्रकार के वाहन के साथ रोगी की आवश्यकता से मेल बिठाता है, वहीं इसका जियोस्पेशियल डेटा सिस्टम यात्रा को पूरा करने के लिए निकटतम एम्बुलेंस भेजता है।
स्टार्टअप ने कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, सकरा वर्ल्ड हॉस्पिटल, रमैया मेमोरियल हॉस्पिटल, KIMS हॉस्पिटल और फोर्टिस हॉस्पिटल सहित अन्य कंपनियों के साथ साझेदारी की है। इसका फुल-स्टैक सल्यूशन अस्पतालों की मौजूदा चिकित्सा प्रतिक्रिया प्रणाली को बढ़ाता है और उन्हें कम से कम 70 प्रतिशत तेजी से प्रतिक्रिया करने में सक्षम बनाता है।
संस्थापक बताते हैं, “हम स्थानीय ऑपरेटरों की तुलना में 10 गुना बेहतर हैं। हम छह सेकंड से भी कम समय में कॉल उठाते हैं, और चार मिनट के भीतर सड़क पर एम्बुलेंस दौड़ा देते हैं। दूसरी लहर के चरम के दौरान, जब अधिकांश अस्पताल और छोटे-छोटे ऑपरेटर अपनी दरें बढ़ा रहे थे, हम बाजार की कीमतों से 40-50 प्रतिशत कम पर काम कर रहे थे।”
ग्रोथ मेट्रिक्स और विस्तार योजनाएं
स्टैनप्लस ने 2018 में अपने बेड़े का साइज 350 से बढ़ाकर मई 2021 के अंत तक 3,000 कर दिया है। इसके बेड़े का लगभग 10 प्रतिशत स्व-स्वामित्व वाले वाहन हैं, जो छह शहरों में प्रीमियम रेड एम्बुलेंस कैटेगरी के तहत संचालित होते हैं, और अधिक आने वाले हैं।
स्टार्टअप की योजना अगले तीन वर्षों में एएलएस सिस्टम के साथ 3,000 रेड एम्बुलेंस जोड़ने की है, जिसमें वेंटिलेटर, बिपैप मशीन, ऑक्सीजन सिलेंडर आदि शामिल हैं। इसने इस उद्देश्य के लिए 900 करोड़ रुपये (प्रत्येक एम्बुलेंस की कीमत 30 लाख रुपये) निर्धारित की है।
प्रभदीप ने विस्तार से बताया, “जो चीज हमें सबसे अलग रखती है वह यह कि हमारे पास विशाल इन्वेंट्री मौजूद है। हमने महसूस किया है कि आप केवल छोटे-छोटे ऑपरेटरों पर भरोसा नहीं कर सकते। पूरे नेटवर्क पर नियंत्रण रखने के लिए आपको अपनी खुद की सप्लाई बनानी होगी। जब मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर इतनी कम गुणवत्ता का है तो हेल्थकेयर एसेट-लाइट मॉडल पर काम नहीं कर सकता है।"
स्टैनप्लस ने दावा किया है कि उसने पिछले तीन वर्षों में दस लाख आपातकालीन कॉलों का जवाब दिया है और दो लाख रोगी स्थानांतरण में सहायता की है। अगले 36 महीनों में, यह अपनी पेशेंट ट्रिप को 3 गुना तक बढ़ाने की योजना बना रहा है।
और, 2026 तक, यह अपने बेड़े के आकार को एक लाख एम्बुलेंस तक विस्तारित करना चाहता है, जिसमें भारत के शीर्ष 30 शहरों में से प्रत्येक में 100 एम्बुलेंस तैनात करना शामिल है।
अपने ऑन-ग्राउंड नेटवर्क को मजबूत करने के अलावा, स्टैनप्लस एक कुशल एयर एम्बुलेंस सिस्टम (स्टैनएयर) भी बना रहा है, जो सीमा पार से रोगी के ट्रांसफर को भी संभाल सकता है।
वह कहते हैं, “भारत में कोई एयर एम्बुलेंस रूट नहीं हैं। हमारे पास [मरीजों को लाने-ले जाने के लिए] हेलीकॉप्टर भी नहीं हैं। इस दशक में, हम उन रोगियों के लिए एक स्थिर आपातकालीन एयर एम्बुलेंस प्रणाली का निर्माण करने जा रहे हैं, जिन्हें तत्काल देखभाल की आवश्यकता है।”
नए बाजारों में विस्तार पर सवार होकर, स्टैनप्लस 2021 के अंत तक 100 करोड़ रुपये और अगले पांच वर्षों में 2,000 करोड़ रुपये के ARR (वार्षिक आवर्ती राजस्व) का लक्ष्य बना रहा है। प्रभदीप कहते हैं, "हमने 3 गुना टॉपलाइन ग्रोथ देखी है और पिछले 18 महीनों से मुनाफे में हैं।"
फंडिंग और बाजार का अवसर
मार्च 2020 में महामारी की शुरुआत में, स्टैनप्लस ने पेगासस फिनइन्वेस्ट और हैदराबाद एंजल्स के नेतृत्व में प्री-सीरीज ए राउंड में 1.5 मिलियन डॉलर जुटाए। यह टियर II और III बाजारों सहित भारत के शीर्ष 30 शहरों में अपनी एम्बुलेंस सेवाओं का विस्तार करने के लिए फंड का उपयोग करने की योजना बना रहा है। इन शहरों में मांग अधिक है, लेकिन चिकित्सकीय रूप से व्यवहार्य वाहन सीमित हैं।
इससे पहले, 2017 में, स्टैनप्लस ने के-स्टार्ट (कलारी कैपिटल का सीड फंड) के नेतृत्व में सीड राउंड में 1.1 मिलियन डॉलर जुटाए थे, जिसमें सीएम डायमंत (कनाडा और अफ्रीका में चिकित्सा केंद्रों और अस्पतालों की एक श्रृंखला) और इनसीड एंजेल्स (एशिया) की भागीदारी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 3-4 महीनों में 12 मिलियन डॉलर जुटाने के लिए भी बातचीत जारी रही है।
स्टार्टअप बेहद अव्यवस्थित मेडिकल ट्रांसपोर्टेशन और EMR सेक्टर में Medulance, HelpNow, AppBulance, Ambee, eSahai, VMedo, Dial4242, और Ambulancee के साथ प्रतिस्पर्धा करता है, जो हर साल 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इसका तात्कालिक लक्ष्य एम्बुलेंस ईटीए को 15 मिनट से घटाकर 8 मिनट करना है।
प्रभदीप कहते हैं, “हम सबसे बड़ी एकीकृत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली का निर्माण कर रहे हैं। आपको हजारों आपातकालीन नंबरों की जरूरत नहीं है। आइए हम सभी कॉलों का उत्तर दें और आपके लिए अनुभव को समेकित करें। अगर अमेरिका के पास सभी आपात स्थितियों के लिए एक ही हेल्पलाइन नंबर (911) हो सकता है, तो हमारा देश भी ऐसा कर सकता है।"
COVID-19 की तीसरी लहर हमारे दरवाजे पर दस्तक देने के साथ, स्टैनप्लस ने इस टफ टास्क के लिए कमर कस ली है।
Edited by Ranjana Tripathi