यूजर्स के फीडबैक से फाउंडर्स ने मीशो को बना दिया बिलियन डॉलर वाला हिट स्टार्टअप
2015 में शुरू हुए सोशल ईकॉमर्स प्लैटफॉर्म मीशो ने 5 साल के अंदर ही यूनिकॉर्न का टैग हासिल कर लिया. कंपनी फेसबुक से फंडिंग पाने वाली पहली इंडियन स्टार्टअप भी बनी. कंपनी के को फाउंडर्स विदित आत्रे और संजीव बर्नवाल अब कंपनी को प्रॉफिटेबल बनाने के साथ शेयर बाजार में लिस्ट कराने की तैयारी कर रहे हैं.
ईकॉमर्स कंपनियों के आने से कस्टमर्स के लिए तो खरीदारी के कई नए तरीके खुले हैं मगर सेलर्स के लिए भी अपने सामान के कई नए स्कोप खुल गए हैं. पहले दुकानदारों को ऑनलाइन सामान बेचने के लिए बहुत सोचना पड़ता था. वॉट्सऐप आने के बाद थोड़ी सहूलियत लेकिन वो भी काफी थकाऊ काम होता था. एक-एक सामान की फोटो लेकर स्टेटस पर लगाओ फिर ऑर्डर मिलने पर डिलीवरी बॉय का इंतजाम करो तब जाकर सामान पहुंचाओ और कमाई उतनी की उतनी. दिक्कत ये थी कि इस पूरे काम के लिए उनके पास कोई फिक्स सिस्टम नहीं था.
आंत्रप्रेन्योर के लिए हर परेशानी एक मौका होती है और ये परेशानी भी दो आंत्रप्रेन्योर्स के लिए बन गई मिलियन डॉलर आइडिया. . हम बात कर रहे हैं
की. मीशो एक सोशल ईकॉमर्स प्लैटफॉर्म है जिसे मुख्यतः छोटे नॉन ब्रैंडेड रिसेलर्स के लिए बनाया गया था. यह ऐप बिना पूंजी के लिए छोटे दुकानदारों को अपनी ऑनलाइन दुकान खोलने में मदद करती है.IIT दिल्ली से पढ़ाई करने वाले विदित आत्रे और संजीव बर्नवाल ने 2015 में इसकी शुरुआत की. दोनों ने 2008 से 2012 तक बीटेक पूरा करने के बाद नौकरी शुरू कर दी थी. विदित इनमोबी में काम कर रहे थे और संजीव जापान में सोनी के साथ थे.
जून 2015 की बात है एक दिन अचानक विदित के पास संजीव का फोन आया. संजीव ने बताया कि उनका इंडिया वापस लौटने का मन है और वो एक स्टार्टअप जॉइन करने की सोच रहे हैं. क्या वो(विदित) एक बार उस स्टार्टअप के बारे में पता लगा सकते हैं?
उधर विदित खुद एमबीए शुरू करने की तैयारी में थे और तब तक कहीं न कहीं उनके मन में अपना कुछ शुरू करने का आइडिया घर कर चुका था. संजीव के फोन ने जैसे उस आइडिया को और धक्का दे दिया. संजीव की बात सुनकर विदित ने कहा, अगर तुम्हें स्टार्टअप ही जॉइन करना है तो दूसरे की कंपनी में क्यों जाना. अपना कुछ शुरू करते हैं.
चूंकि दोनों बैचमेट होने के साथ हॉस्टल में भी साथ रहे थे. इसलिए एक दूसरे अच्छे से जानते थे. एक दूसरे पर भरोसा था. फिर क्या था संजीव विदित की बात एक झटके में मान गए और दोनों ने अगले ही पल अपनी अपनी नौकरी से रिजाइन कर दिया.
करें तो करें क्या
दोनों ने नौकरी तो छोड़ दी मगर आइडिया का कुछ अता पता नहीं था. बहुत दिमाग लगाने के बाद उन्होंने फैसला किया कि उस आइडिया पर काम करेंगे जिसमें लंबे समय तक बिजनेस बनाने का दम हो साथ ही दोनों उस आइडिया के जुड़ाव महसूस करते हों.
विदित और संजीव दोनों ही मिडिल क्लास बैकग्राउंड से आते थे. उन्होंने भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में ढेरों रिटेल दुकानों से चीजें खरीदी थीं. इसलिए दोनों ने सोचा क्यों न इन छोटे बिजनेसेज को ऑनलाइन लाने का काम किया जाए. उन्होंने पाया कि इंडिया का 80 से 85 पर्सेंट रिटेल बिजनेस अव्यवस्थित ही है.
जो बिजनेस ऑनलाइन थे वो या तो ब्रैंडेड स्मार्टफोन थे या फिर फैशन, इलेक्ट्रॉनिक्स या वाइट गुड्स के थे. आसपास गली मुहल्ले की दुकानों के लिए ऑनलाइन आना एक पहाड़ जैसा काम था और इस तरह दोनों ने इसी आइडिया के साथ काम करने का फैसला किया.
ग्रांउड वर्क से शुरुआत
दोनों बेंगलौर में कोरमंगला और HSR में छोटे दुकानदारों के पास जाते और उनसे पूछते कि उनके बिजनेस में सबसे बड़ी परेशानी क्या है. उन्होंने दुकानदारों से कहा कि अगर हम आपकी दुकान को ऑनलाइन ले आएं तो क्या आप अपने ऑडियंस को ऑनलाइन ले आएंगे?
पॉजिटिव रेस्पॉन्स पाकर विदित और संजीव ने फैशनीयर की शुरुआत की यानी फैशन नियर बाई. इस ऐप पर सभी नॉन ब्रैंडेड यानी छोटे फैशन शॉप मौजूद थे. यूजर ऐप से कोई भी 3 प्रॉडक्ट चुन सकते थे और घर पर ट्राई करके जो प्रॉडक्ट पसंद आए उसे रखकर बाकी प्रॉडक्ट वापस कर सकते थे.
तीन चार महीने काम करने के बाद उन्हें समझ आया कि लोग कपड़े खरीदते समय क्वॉलिटी देखते हैं और लोकल दुकानों के साथ ये चीज सुनिश्चित करना काफी मुश्किल है. इसके अलावा रीसेलर भी अपना दायरा तेजी से बढ़ाना चाहते थे. वो सिर्फ स्थानीय दायरे में अपना सामान नहीं बेचना चाहते थे.
अंत में दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि ये बिजनेस तो नहीं चलने वाला. मगर इससे दोनों को एक बड़ी सीख मिली. उन्होंने शुरुआत तो छोटे बिजनेसेज को नजर में रखते हुए कि मगर कस्टमर्स पर ध्यान देना बिल्कुल भूल गए.
एक और कोशिश
दोनों ने एक बार फिर दुकानदारों से बातचीत करने जमीन पर उतरे. दोनों दुकान-दुकान जाते और शॉपकीपर्स से बात करते. कई दिनों तक उन लोगों के बीच रहते हुए उन्होंने एक चीज नोटिस की. लगभग हर दुकानदार अपने कस्टमर से उसका वॉट्सऐप नंबर मांग रहा था. ताकि उसे वॉट्सऐप ग्रुप में ऐड करके उन्हें प्रॉडक्ट सीधा घर बैठे दिखा सके. कस्टमर बिना दुकान पर आए सीधे वहीं से ऑर्डर कर सकते थे.
विदित और संजीव इस नतीजे पर पहुंच के कि ये मॉडल कई दुकानदार इस्तेमाल जरूर कर रहे हैं मगर अभी भी कई छोटे दुकानदार इससे काफी दूर हैं और इसे लागू करने के लिए जूझ रहे हैं. जो इस्तेमाल कर रहे हैं उनके सामने भी कई दिक्कते हैं जैसे- एक साथ कई कस्टमर्स की डिमांड को पूरा नहीं कर पाना, पेमेंट कलेक्शन, सारे ऑर्डर्स की डिटेल रजिस्टर में नोट रखना ये सारा काम बहुत टाइम खपाउ होता था.
मीशो की शुरुआत
और यहीं से दोनों को एक नया बिजनेस आइडिया सूझा. दोनों ने सोचा कि अगर ऐसा ऐप बनाया जाए जो इन सभी परेशानियों का वन स्टॉप सलूशन हो तो काम बन सकता है. इस तरह 2015 के आखिर में फैशनीयर का नाम बदलकर कर उन्होंने मीशो कर दिया. यानी मेरी शॉप. मीशो ने ऑनलाइन रीसेलिंग बिजनेस को बेहद किफायती और आसान बना दिया.
इस प्रॉडक्ट को फैशनियर के मुकाबले अच्छा रेस्पॉन्स मिला जिससे इतना तो तय हो गया कि इसमें कुछ दम है. विदित और संजीव ने अपने यूजर्स से मिलकर उनके इनसाइट जानने का फैसला किया. ताकि आगे का रोडमैप डिसाइड कर सकें.
जब उन्होंने अपने कस्टमर्स की प्रोफाइल तैयार की तो उन्हें मालूम पड़ा कि उनकी ज्यादातर यूजर औरतें हैं. ऐसी औरतें जो अपना कुछ करना चाहती थीं, मगर पूंजी नहीं होने की वजह से बिजनेस शुरू नहीं कर पा रही थीं. ये औरतें मुख्यतः रिसेलिंग का काम करती थीं. मगर मीशो के आने से उनके लिए बिना पूंजी के भी बिजनेस चलाना मुमकिन हो गया था, जिससे विदित और संजीव को काफी प्रोत्साहन मिला.
कमिशन वाला बिजनेस मॉडल
फाउंडर्स ने अपने कंज्यूमर्स की शिकायतों, उनके सुझावों पर करते हुए ही मीशो का बिजनेस मॉडल डिवेलप किया है. आज की तारीख में कोई भी बिना कैपिटल लगाए मीशो पर अपना रिसेलिंग बिजनेस शुरू कर सकता है. मीशो छोटे दुकानदारों और मैन्युफैक्चरर्स को देश भर में ऑर्डर डिलीवर करने, कैश ऑन डिलीवरी ऑप्शन से लेकर रिटर्न की सर्विस भी देता है.
कुल मिलाकर यह सप्लायर, रीसेलर और कस्टमर्स के बीच ब्रिज का काम करता है. मीशो सप्लायर्स को उनकी इनवेंटरी मैनेज करने में भी मदद करता है. इस सर्विस के बदले वो मैन्युफैक्चरर्स या रिसेलर्स से हर बिक्री पर कुछ हिस्सा कमिशन और फीस चार्ज करता है.
ठीक वैसे ही जैसे ऐमजॉन या फ्लिपकार्ट या अन्य ईकॉमर्स साइट कमिशन लेती हैं उसी तरह. कंपनी कुछ चुनिंदा कैटिगरी में सप्लायर्स से 0 पर्सेंट कमिशन लेती हैं. उन कैटिगरी में रिसेलर से भी कोई चार्ज नहीं लिया जाता. इनके अलावा मीशो लॉजिस्टिकी सर्विस, ऐडवर्टाइजमेंट और कस्टमर्स डेटा के जरिए भी कमाई करती है.
कस्टमर फर्स्ट
अगर फैशनीयर से लेकर मीशो के इस सफर को देखें तो दोनों फाउंडर्स ने कस्टमर के फीडबैक, उनकी इनसाइट को बहुत प्रॉयरिटी दी और आज भी ये कंपनी के कोर वैल्यूज में शामिल है. कंपनी को जॉइन करने वाला हर शख्स सीनियर से लेकर जूनियर लेवल तक उसे अपने कुछ कस्टमर से बात करना कंपल्सरी है. कंपनी इसे लिसन ऑर डाई कहती है.
विदित ने शुरू के 5 सालों तक अपने टॉप कस्टमर्स के साथ खुद इंटरैक्ट करते थे. उनका एक वॉट्सऐप ग्रुप था जहां वो अपनी हर तरह की शिकायत सीधा विदित से करते थे. इस तरह उन्हें लगातार अपने टॉप यूजर्स से सीधे इनसाइट मिलती और वो उसी हिसाब से ऐप को डिवेलप करते जाते.
फंडिंग और निवेश
कंपनी के लिए फंडिंग के रास्ते शुरू से खुले रहे. शुरू होने के अगले ही साल 1 मार्च, 2016 को सीड राउंड में Y कॉम्बिनेटर जैसे बड़े इनवेस्टर से 120 हजार डॉलर की फंडिंग मिली. दो साल बाद 2018 में सिकोया ने 11.5 मिलियन डॉलर का निवेश किया. इसी क्रम में वह 2019 में मेटा से यानी फेसबुक से निवेश पाने वाली पहली इंडिया की पहली स्टार्टअप बन गई. मेटा ने मीशो में 25 मिलियन डॉलर का निवेश किया है.
अप्रैल, 2021 में सॉफ्टबैंक विजन फंड से 300 मिलियन डॉलर की फंडिंग पाकर कंपनी का वैल्यूएशन 2.1 अरब डॉलर के पार हो गया और कंपनी यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो गई. मीशो ने लैटिन अमेरिका के टॉप सोशल कॉमर्स प्लैटफॉर्म एलीनास में दो बार में कुल 8 मिलियन डॉलर का निवेश किया है.
कोविड ने बदला गेम
मीशो के रिसेलर्स की कैटिगरी में ज्यादा हिस्सा फैशन सेगमेंट से ही आ रहा था. मगर जैसे ही लॉकडाउन लगा मीशो की दिक्कत बढ़ गई क्योंकि कपड़े एसेंशियल कैटिगरी में शामिल नहीं थे. मगर इस मुश्किल समय में भी मीशो रिसेलर्स के लिए जो बन पड़ता था वो किया. मीशो ने रिसेलर्स को मास्क, सैनिटाइजर और ग्रोसरी तक बेचने की सलाह दी. जिनके पास कैपिटल नहीं थी उन्हें बिना स्क्रिनिंग 5000 तक का लोन दिया गया. मीशो का दावा है कि इस दौर ने कस्टमर के साथ उनके रिश्ते और मजबूत बना दिए हैं.
फार्मिसो की शुरुआत
ग्रोसरी बेचने के लिए तो मीशो ने लॉकडाउन लगने के कुछ ही दिनों बाद 2020 में फार्मिसो की शुरुआत की . इसका इकलौता मकसद ये था कि सेलर्स खाली हाथ न बैठें. कोविड खत्म होने के बाद रिब्रैंडिंग प्रोग्राम के तहत कंपनी ने अप्रैल 2022 में इसका नाम बदलकर मीशो सुपरस्टोर कर दिया और इसे मीशो प्लैटफॉर्म के साथ ही मर्ज करने का भी ऐलान किया.
लेकिन मीशो के सामने अकेले महामारी ही चुनौतियां नहीं लाई थी. मीशो पहले से ही हाई कैश बर्न, नो प्रॉफिट और ऐमजॉन फ्लिपकार्ट जैसे बड़े प्लेयर से कॉम्पिटीशन जैसी तीन बड़ी परेशानी से जूझ रही है.
चुनौतियों का पहाड़
मीशो का रेवेन्यू कोविड के बाद FY21 में सुधरा मगर घाटा और ज्यादा बढ़ा है. FY20 करीबन 307 करोड़ का और FY 21 में 498 करोड़ से ऊपर का घाटा हुआ है. मीशो के सामने इस समय कॉम्पिटीशन भी बड़ी तेजी से उभर रहे हैं. जिस वक्त इसकी शुरुआत हुई थी तब ये सोशल ईकॉमर्स फील्ड में अकेली थी. मगर आज इसे मैजेंटो, सिमसिम, शॉप101, ग्लोरोड, डीलशेयर, वॉल्यूजन जैसे कई स्टार्टअप्स से चुनौती मिल रही है.
इसके अलावा एक और नई परेशानी जो मीशो के सामने उभरी है वो है नकली प्रॉडक्ट्स की शिकायत. प्लैटफॉर्म्स पर कंज्यूमर्स की तरफ से लगातार नकली प्रॉडक्ट मिलने की शिकायत आ रही है. मीशो के नाम पर ही कई फर्जी वेबसाइट बनाकर सामान बेचने की भी खबरें आई हैं जिससे कंपनी को नुकसान हो रहा है. ये मामले तो हाई कोर्ट तक जा चुका है मगर राहत की बात ये है कि फैसला कंपनी के हित में रहा है.
आगे की क्या है रणनीति
मीशो ने दिसंबर 2022 तक 100 मिलियन मंथली एक्टिव यूजर्स हासिल करने का टारगेट रखा है जो जून 2022 तक उसके पास पहले से थे. हालिया फंडिंग से मिले पैसों का वह टेक्निकल और प्रॉडक्ट स्किल, सामान की कैटिगरी बढ़ाने का प्लान है. इसके अलावा कंपनी अगले एक दो सालों में शेयर बाजार में लिस्ट होने की भी प्लानिंग कर रही है.
हालांकि कंपनी के सीईओ विदित आत्रे ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी मीशो इंडियन बाजार में लिस्ट होगी या अमेरिकी बाजार में हां मगर उन्होंने ये जरूर कहा है कि कंपनी उस समय तक प्रॉफिटेबल हासिल करने के टारगेट से काम करेगी.