मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं तो जानिए प्रोफेशनल से बात करना कैसे हो सकता है मददगार
एक प्रोफेशनल थेरेपिस्ट के साथ मिलकर पेशेंट अपने ट्रॉमा और उसके निगेटिव असर को खत्म करने और आगे के लिए हेल्दी बिहेवियर डिवेलप करने पर काम कर सकता है.
एक इंसान के तौर पर हमें हर दिन अलग-अलग तरह की स्थितियों से निपटना पड़ता है. कुछ से तो हम आसानी से निपट लेते हैं मगर कुछ वाकये हमारे दिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं. ऐसी छाप जो बहुत लंबे समय तक हमारे जहन में रह जाती हैं. यह हादसे बाद में डिप्रेशन, एंजाइटी, एडिक्शन, और स्ट्रैस जैसे मेंटल डिसऑर्डर की तरह निकलकर बाहर आते हैं. अगर इनका समय से ट्रीटमेंट नहीं किया गया तो लंबे समय में आपकी सेहत, आपके रिश्तों, आपके काम और भी कई चीजों पर गहरा असर पड़ सकता है.
मानसिक बीमारियों के मामले में सबसे मुश्किल चीज होती है उसे पहचानना. अगर कोई पहचान भी ले तो जागरुकता के अभाव में नहीं समझ पाता कि क्या करे, कहां जाए, किससे बात करे, जो स्थिति को और बिगाड़ सकता है. अगर आपको भी महसूस होता है कि आप किसी भी तरह की मानसिक बीमारी से परेशान हैं, मगर समझ नहीं आ रहा क्या करना चाहिए तो कोई बात नहीं. आज इस आलेख में हम इसी चीज के बारे में जानेंगे.
कोई भी ट्रीटमेंट आपकी मनोस्थिति पर निर्भर करता है. अगर आप बहुत लंबे समय तक अपनी परेशानी को अनदेखा कर चुके हैं तो मुमकिन है कि आपको साइकिएट्रिस्ट के पास जाना पड़े. अगर परेशानी इतनी गंभीर नहीं हुई है तो आप साइकोलॉजिस्ट के पास भी जा सकते हैं.
अक्सर कई बार लोग साइकिएट्रिस्ट और साइकोलॉजिस्ट के बीच कंफ्यूज हो जाते हैं. दरअसल एक साइकिएट्रिस्ट के ट्रीटमेंट में दवाईयां शामिल होती हैं, जैसे कि एंटीडीप्रेसेंट. साइकोलॉजिस्ट आपको दवाइयां नहीं लिख सकते. वो आपसे बात करते हैं, आपकी परेशानियों को सुनते हैं और एक एक्सपर्ट की तरह आपको सलाह देते हैं. इसे टॉक थेरेपी या बिहेवियरल थेरेपी भी कहते हैं. सवाल उठता है कि कैसे पहचानें की अब आपको थेरेपिस्ट के पास जाना चाहिए. आप नीचे दिए कुछ सिम्पटम्स आपको ये तय करने में मददगार हो सकते हैं:
- अगर आप बहुत लंबे समय से नौकरी या परिवार में किसी तरह की परेशानी से जूझ रहे हैं, या किसी करीबी को खो दिया है या रिलेशनशिप में बहुत लंबे समय से कोई दिक्कत आ रही है जो आपके मन की शांति को बिगाड़ रही है तो आप थेरेपिस्ट के पास जा सकता है.
- इसके अलावा हो सकता है कि आपके सोने की आदतों में बदलाव आया हो, भूख कम लगती हो, शरीर में एनर्जी न रहती हो उन कामों को करने में अब कोई दिलचस्पी न रहती हो जिन्हें कभी आप बहुत एन्जॉय किया करते थे, लगातार मन चिड़चिड़ा से रहे, आपको लगे कि एक अजीब सी उदासी, दुख जो आपके मन में घर चुकी है और लाख कोशिशों के बाद भी नहीं जा रही उस स्थिति में भी साइकोथेरेपिस्ट के पास जाना चाहिए.
- हो सकता है आपको डिप्रेशन, एंजाइटी, बाइपोलर डिसऑर्डर, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसा कोई मेंटल डिसऑर्डर हो, जो आपको एक नॉर्मल लाइफ जीने में परेशान कर रहा हो, एक प्रोफेशनल हेल्थ केयर प्रोवाइडर आपको इन डिसऑर्डर को पहचानने में मदद कर सकता है और उसके हिसाब से आपकी आगे की ट्रीटमेंट तय कर सकता है.
थेरेपी से कैसे मिलती है मदद
मेंटल डिसऑर्डर से ग्रसित कई मरीजों को टॉकथेरेपी थोड़ी अनकफर्टेबल लग सकती है और जायज भी है. हम किसी जान पहचान वाले के सामने भी कभी कभी अपनी परेशानियों को कहने में हिचक जाते हैं और यहां तो किसी अनजान शख्स के सामने खुद को खोलकर रखने की बात हो रही है. इसलिए हिचकना बनता है.
आपको ये समझना होगा कि अगर हम किसी एक्सपर्ट की मदद नहीं लेते हैं तो मानसिक स्थिति और बिगड़ सकती है. ऐसी स्थिति में हम दिमाग शांत करने के लिए नशे का सेवन शुरू कर सकते हैं. अगर आपको फिर भी हिचक है तो आप अपने किसी करीबी दोस्त की मदद ले सकते हैं.
लेकिन कई बार ऐसा होता है कि आपका दोस्त आपकी तकलीफ सुनने के लिए अवेलेबल न हो, या फिर उस तरह से आपको सपोर्ट न दे पाए जिसकी आपको जरूरत है. ये भी हो सकता है कि हमारी परेशानियों सुनकर उनके मेंटल हेल्थ के लिए ठीक न हो क्योंकि वो भी हैं तो एक इंसान ही. इसलिए अंत में नतीजा यही निकलकर आता है कि जब भी आपको ऊपर बताए गए सिम्पटम नजर आएं तो सीधे किसी प्रोफेशनल थेरेपिस्ट से मदद लें.
कई रिसर्च इस बात को साबित करते हैं कि कई मानसिक बीमारियों के मामले में टॉक थेरेपी काफी कारगर है. दरअसल टॉक थेरेपी आपको उन भावनाओं, विचार, बिहेवियर को पहचानने और बदलने में मदद करता है जो आपको परेशान कर रहे हैं. इसे एक उदाहरण की तरह समझते हैं, मान लेते हैं पैर की कोई हड्डी टूट गई है.
यहां दो चीजें हो सकती हैं; एक तो आप उसे मामूली चोट समझकर इग्नोर कर दें या फिर सीधे डॉक्टर के पास जाएं. अगर आपने इग्नोर कर दिया तो कुछ दिन में दर्द बढ़ता जाएगा, जो आपके शरीर की तरफ से एक वॉर्निंग अलार्म होगा. अगर उसे भी अनदेखा कर दिया तो समझ लीजिए अब आपका ट्रीटमेंट लंबा और महंगा चलने वाला है.
वहीं दूसरी तरफ अगर आपने बिना लापरवाही किए तुरंत डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर पता एक्सरे करेगा. पता चलेगा कि असल में हड्डी टूटी है या बस हेयरलाइन फ्रैक्टर है. उस हिसाब से आपको दवाइयां लिखेगा. इस तरीके से आपके चोट का सही तरीके से एक प्रोफेशनल की निगरानी में इलाज होगा तो आपके जल्द ठीक होने की पूरी संभावना होगी.
ठीक ऐसा ही मानसिक बीमारियों के साथ होता है,जितनी ज्यादा अनदेखी उतना ज्यादा बुरा असर. जितनी जल्दी पहचान कर ट्रीटमेंट लिया उतनी जल्दी ठीक होने की संभावना और एक प्रोफेशनल साइकॉलजिस्ट टॉक थेरेपी से आपकी परेशानी को बड़ी आसानी से पहचान लेता है और उसी हिसाब से आगे का ट्रीटमेंट तय करता है.
थेरेपिस्ट को चुनते समय इन बातों का ध्यान रखें
- थेरेपिस्ट का लाइसेंस और उसका एक्सपीरियंस क्या है? क्या उनकी कोई स्पेशियल्टी है?
- आपके ट्रीटमेंट के लिए थेरेपिस्ट कौन सा अप्रोच अपनाने वाला/वाली है? क्या वो कोई खास तरह की थेरेपी प्रैक्टिस करते हैं?
- क्या जिस शख्स के लिए थेरेपी ढूंढी जा रही है थेरेपिस्ट के पास उस एज ग्रुप का इलाज करने का एक्सपीरियंस है? अगर पेशेंट बच्चा है तो थेरेपी में पैरेंट्स का क्या रोल रहने वाला है?
- थेरेपी का टाइमफ्रेम क्या होगा? यानी कि पेशेंट को कितने सेशन लेने पड़ सकते हैं क्या थेरेपिस्ट कोई अनुमान दे रहा है? क्या प्रोग्रेस रहा इसका कैलकुलेशन कैसे किया जाएगा? अगर आपको लगता है कि आपको कोई फायदा नहीं हो रहा थेरेपी से उस स्थिति में क्या होगा?
- क्या थेरेपिस्ट ट्रीटमेंट के दौरान दवाइयां भी लिख सकता है? अगर हां, तो क्या उसके पास इसका लाइसेंस है?
- मरीज और थेरेपिस्ट की मीटिंग बाहर किसी के साथ शेयर नहीं की जाएगी, इसकी कितनी गारंटी है? क्या प्राइवेसी के मामले में कुछ नियम शर्तें हैं?
इन चीजों के सवाल ढूंढने के बाद आप थेरेपी शुरू कर सकते हैं. अगर आपको चार्जेज ज्यादा लग रहे हैं तो आप ऑनलाइन सेशन भी ले सकते हैं. ऑफलाइन यानी इन क्लिनिक थेरेपी के मुकाबले ऑनलाइऩ सेशन थोड़े सस्ते होते हैं. अगर आप ऑफलाइन सेशन के चार्ज आसानी से दे सकते हैं तो बेहतर होगा कि आप ऑफलाइन ही जाएं. इससे थेरेपिस्ट आपके हावभाव को पूरी तरह देख और समझ सकेगा और बेहतर तरीके से इलाज कर सकेगा.
आप ऑनलाइन थेरेपी लें या ऑफलाइन मायने ये रखता है कि आप अपनी मानसिक परेशानी को दूर करने के लिए तत्परता दिखा रहे हैं. एक बार आपने अपनी तकलीफ पहचान ली तो समझिए आपकी आधी परेशानी तो यूं ही दूर हो गई. इसलिए कुल मिलाकर कोई भी मानसिक तकलीफ हो बिना घबराए, बिना इग्नोर किए उसे पहचानने की कोशिश कीजिए. अगर खुद समझ न आ रहा तो तुरंत किसी भी प्रोफेशनल साइकॉलजिस्ट की मदद लीजिए. यकीन मानिए कई साल बीत जाने के बाद जब आप पूरी तरह खुश और स्वस्थ होंगे तब आप इस फैसले के लिए खुद को शुक्रियाअदा कर रहे होंगे.