मेघालय में स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए इस 32 वर्षीय आईएएस ऑफिसर ने दान कर दी अपनी सैलरी
स्कूलों में सुधार के लिए अपनी सैलरी दान कर रहा है ये आईएएस अधिकारी
गणित शिक्षक के घर पैदा हुए स्वप्निल ने आईआईटी से पढ़ाई करने के बाद आईएएस की परीक्षा पास की। अपने क्षेत्र में बेहाल शिक्षा व्यवस्था को देखकर स्वप्निल ने खुद ही इसे बेहतर करने का बीणा उठाया, उनकी यह पहल आज खासा रंग ला रही है।
स्वप्निल तांबे का शुरुआती जीवन किसी आम युवक की तरह ही था। मध्यप्रदेश के जबलपुर में पले-बढ़े स्वप्निल शुरुआत से ही महत्वाकांक्षी और मेहनती थे, जिसके चलते स्वप्निल ने कई मुश्किल मुकाम हासिल किए।
इंजीनियर फिर आईएएस और मेघालय के ईस्ट गारो हिल्स जैसे देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक में डिस्ट्रिक कलेक्टर के पद पर तैनाती, 32 वर्षीय स्वप्निल का जीवन कुछ इस प्रगति पर आगे बढ़ा।
अपनी किशोरावस्था के दौरान कठिन समय से गुजरने वाले स्वप्निल ने कभी हार नहीं मानी। यूपीएससी परीक्षा के तैयारी वाले दिनों में भी अपनी मामूली जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वप्निल ने कोचिंग सेंटर में पढ़ाया।
आज एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर स्वप्निल अपने जिले में स्कूलों के नवीनीकरण को लेकर पहल कर रहे हैं, जिसके चलते हजारों की संख्या में छात्र सकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। अपनी पहल STAR (स्कूल ट्रांसफॉर्मेशन बाई औगमेंटिंग रिसोर्सेस) के तहत स्वप्निल अब तक 60 से अधिक स्कूलों का नवीनीकारण कर चुके हैं।
इस पहल के बारे में बात करते हुए स्वप्निल ने योरस्टोरी को बताया,
“मैंने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रशासनिक सेवा को चुना। मुझे लगता है कि बेहतर शिक्षा ही समाज से बुराइयों को मिटा सकती है। मैं इस पहल को लेकर सीधा योगदान देना का इच्छुक था, इसलिए मैंने गारो हिल्स के स्कूलों की आधारिक संरचना में बदलब करने के लिए अपनी दो महीने की तंख्वाह दी।”
कैसी रही यात्रा?
जबलपुर में पैदा होने वाले स्वप्निल कटनी टाउन में बड़े हुए। स्वप्निल के पिता गणित के शिक्षक थे। केन्द्रीय विद्यालय से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद स्वप्निल ने आईआईटी खड़गपुर से मकैनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया।
स्वप्निल ने साल 2008 में बीटेक के तीसरे साल में ही प्रशासनिक सेवाओं में जाने का मन बनाया। यूपीएससी की परीक्षा में बैठने से पहले स्वप्निल ने इग्नू से पब्लिक पॉलिसी में डिस्टेन्स लर्निंग के तहत मास्टर्स भी किया।
स्वप्निल प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी कर ही रहे थे, तभी गंभीर बीमारी के चलते उनके पिता का देहांत हो गया। उस दौर को
याद करते हुए स्वप्निल बताते हैं कि,
“जब मेरे पिता उस दौर से गुज़र रहे थे, वे दो साल मेरे और मेरे परिवार के लिए काफी कठिन थे। मुझे लग रहा था कि मेरे आस-पास की दुनिया ख़त्म हो रही है। मेरे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के चलते मैंने हैदराबाद स्थित डेलोइट कंपनी में बिजनेस एनालिस्ट के तौर पर नौकरी की। फिर दो साल बचत करने के बाद मैंने अपने सपने को पूरा करने की तरफ बढ़ गया।"
समाज के लिए कुछ बेहतर करने की चाह को लेकर स्वप्निल दिल्ली आ गए। प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी के साथ ही स्वप्निल ने कोचिंग सेंटर में पढ़ाना भी शुरू कर दिया। स्वप्निल ने साल 2015 में अपने सिविल सेवा के अपने तीसरे प्रयास में देश भर में 84वां स्थान हासिल किया।
तैयारी के समय की बात करते हुए स्वप्निल बताते हैं,
“मेरे परिवार के सदस्यों और दोस्तों ने इस दौरान मुझे प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी छोडने का सुझाव दिया। इससे मुझे निराशा जरूर हुई, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैंने समझा कि जब तक किसी व्यक्ति में सीखने की चाह है, वो प्रशासनिक सेवा में अपनी जगह बना सकता है।”
प्रशासनिक सेवाओं में जुडने के बाद स्वप्निल ने कई जगह अपनी सेवाएँ दीं, इसमें मानव संसाधन मंत्रालय और आईटीबीपी भी शामिल हैं।
शुरुआत ऐसे हुई
मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय प्रशासन अकादमी में प्रशिक्षण पाने के बाद स्वप्निल को मेघालय के वेस्ट गारो हिल्स में एसडीएम के पद पर तैनाती मिली। आज स्वप्निल उसी क्षेत्र में डिस्ट्रिक कलेक्टर के पद पर तैनात हैं।
अपने क्षेत्र के बारे में बात करते हुए स्वप्निल बताते हैं कि,
“ईस्ट गारो हिल्स में अधिकतर जनसंख्या जनजतियों की है। क्षेत्र में चलने लायक सड़कें नहीं हैं, मोबाइल नेटवर्क ख़राब है, ऐसे में इस क्षेत्र के कई इलाके तो बाहरी दुनिया से बिल्कुल कटे हुए हैं। इन सब के बीच अधिक चिंता का विषय यहाँ की ख़राब साक्षारता दर है। इन सबको लेकर मैंने कुछ पहल करने की ठानी।”
स्वप्निल ने इस दौरान क्षेत्र के स्कूलों का निरीक्षण किया और उन्होने पाया कि आमतौर पर स्कूलों में दो ही कमरे हैं, वहीं स्कूल में स्टाफ की उपस्थिती भी खाफी ख़राब है।
स्वप्निल आगे बताते हैं,
“इसे सुलझाने के लिए हमने STAR पहले की शुरूआत की, जिसके तहत हमने लोगों के बीच जाकर उन्हे शिक्षा के महत्व को समझाया और छात्रों को करियर के अवसरों को लेकर भी जागरूक किया। इसके लिए हमने स्कूल के आस-पास बैनर लगाए और शिक्षकों को भी प्रशिक्षित किया।”
साथ ही स्वप्निल ने स्कूलों को गोद लेने की पहल की भी शुरुआत की। इसके तहत स्वप्निल सक्षम लोगों को स्कूलों को गोद लेने के लिए प्रेरित करते हैं, इसके तहत स्कूलों स्थिति में सुधार लाया जा रहा है। स्वप्निल ने खुद भी अपनी दो महीने की सैलरी इसके लिए दान की है।
इस पहल के बारे में बात करते हुए स्वप्निल बताते हैं कि,
“इस पहल के तहत आज 60 से अधिक स्कूलों में सुधार लाया जा चुका है, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना है। जब लोगों के चेहरे में मैं मुस्कान देखता हूँ, तो मुझे उससे प्रेरणा मिलती है।”
(Edited by प्रियांशु द्विवेदी )