IIT मंडी के शोधकर्ताओं ने बताए खराब हो चुके सोलर सेल को रीसाइकल करने के फायदे
आईआईटी मंडी के इस अध्ययन में सी-एसी और सीडीटी पीवी मॉड्यूल से कांच, धातु, और सेमीकंडक्टर सामग्री के खनन और शुद्धिकरण की प्रक्रिया को पारंपरिक खनन और उत्पादन विधियों से तुलना की गयी है.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी (IIT Mandi) के शोधकर्ताओं ने अनुपयोगी हो चुके सोलर सेल्स की रीसाइक्लिंग के लाभों का विश्लेषण किया है. इस अनुसन्धान में रीसाइक्लिंग और उत्पादन में प्रयोग की जाने वाले विभिन्न सामग्रियों और प्रक्रियाओं की तुलना भी की गई है. डॉ. सत्वशील रमेश पोवार, सहायक प्रोफेसर, मैकेनिकल और मैटेरियल्स इंजीनियरिंग स्कूल, आईआईटी मंडी के नेतृत्व में इस शोध को पूर्ण किया गया है. इसके अतिरिक्त शोधकर्ताओं ने सौर सेल के घटकों और सामग्री के प्रभावी रीसाइक्लिंग के लिए नीति और औद्योगिक समाधानों की सिफारिश भी की है.
डॉ. सत्वशील रमेश पोवार और मैकेनिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग स्कूल के सहायक प्रोफेसर डॉ. अतुल धर एवं उनकी शोध छात्रा श्वेता सिंह के सहयोग से इस शोध के विश्लेषण को जर्नल "रिसोर्सेस, कंसर्वेशन एंड रीसाइक्लिंग" में प्रकाशित किया गया है. इस पेपर में क्रिस्टलीन सिलिकॉन (सी-एसी) और कैडमियम टेलुराइड (सीडीटी) पीवी मॉड्यूल के जीवन चक्र का मूल्यांकन किया गया है और उनके पर्यावरणीय प्रभाव और रीसाइक्लिंग के लाभ का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है.
डॉ. सत्वशील रमेश पोवार ने इस विश्लेषण की आवश्यकता को समझाते हुए कहा, "भारत के सौर ऊर्जा का बुनियादी ढांचा तेजी से विकसित हो रहा है, जिसकी 30 नवंबर 2022 तक क्षमता लगभग 62 गीगाबाइट है. सौर सेल मॉड्यूलों का जीवनकाल लगभग 30 वर्ष होता है, इसके कारण देश में 2050 तक 4.4 से 7.5 मिलियन टन तक सौर सेल कचरा उत्पन्न होगा. 2030 तक ही सौर पैनल कचरे की पहचान सबसे अधिक प्रसारित कचरे के रूप में हो सकती है. इस पर्यावरणीय चुनौती का सामना करने के लिए सौर सेल कचरे का पुन: उपयोग, रीसाइक्लिंग, और उस कचरे से मूल्यवान संसाधनों को पुनः प्राप्त करने के विभिन्न पहलुओं को पर ध्यान देना और उनको समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है."
सौर सेल मॉड्यूलों की रीसाइक्लिंग से कैडमियम, टेलुरियम, इंडियम, गैलियम, और जर्मेनियम जैसे मूल्यवान संसाधनों को पुनः प्राप्त किया जा सकता है. यह संसाधनों अल्प मात्रा में उपलध होते हैं जबकि उद्योगों के अन्दर इसको बहुत अधिक मांग होती है. आईआईटी मंडी के इस अध्ययन में सी-एसी और सीडीटी पीवी मॉड्यूल से कांच, धातु, और सेमीकंडक्टर सामग्री के खनन और शुद्धिकरण की प्रक्रिया को पारंपरिक खनन और उत्पादन विधियों से तुलना की गयी है.
इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि सरकारों और उद्योगों को अपने स्तर हितधारकों को हरित प्रमाणपत्र लागू करने और इसके लिए प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है. इस तरह के कार्य महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं जिससे पीवी उद्योग की रीसाइक्लिंग और खनिजों की पुनः प्राप्ति को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.
शोधकर्ताओं ने इसके अलावा सौर सेल मॉड्यूल के डिस्पोजल के दौरान कचरे को कम करने के लिए पीवी मॉड्यूल के डिज़ाइन को अनुकूलित करने की सिफारिश की है. यह टिकाऊ सामग्रियों का उपयोग करके और "डिज़ाइन टू डिस्मैंटल" के सिद्धांत का पालन करके संभव हो सकेगा. इसके अतिरिक्त पीवी अपशिष्टों के डिस्पोजल का प्रबंधन और वित्तपोषण के लिए नये व्यावसायिक मॉडलों की सिफारिश की गई है. साथ ही घटिया मॉड्यूलों को पुनः उपयोग करने के लिए निवेश करने की सलाह भी दी गई है. यह उपाय सौर सेल के अपशिष्टों के बेहतर प्रबंधन और संसाधनों के साथ सम्बंधित पर्यावरणीय लाभों को प्रोत्साहित करने में मदद करेंगे.
डॉ. अतुल धर ने अपने शोध के बारे में कहा, "हमारे अध्ययन से प्राप्त नतीजे समाप्त हो चुके सोलर सेल्स के पीवी मॉड्यूल की बढ़ती मात्रा से होने वाली समस्या को हल करने के लिए एक स्थायी समाधान की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं. प्रभावी रीसाइक्लिंग प्रक्रिया को प्रोत्साहित करते हुए और उचित नीतियों को अमल में लाते हुए पर्यावरण के अनुकूल स्थायी पीवी उद्योग को प्रोत्साहित किया जा सकता है."
अपने प्रकाशित कार्य के आधार पर, आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक व्यापक रीसाइक्लिंग विधि को विकसित किया है जिसमें रिड्यूस, रीयूज, रीपर्पज, रिपेयर, रीफर्बिश, रीडिजाइन, रीमैन्युफैक्चर और रीसायकल विधियों को शामिल किया गया है. इस समग्र दृष्टिकोण का उद्देश्य सौर पीवी मॉड्यूलों के पूरे जीवन काल में कचरे और ऊर्जा खपत को कम करना है.
Edited by रविकांत पारीक