फ्यूचर में फिर आई कोरोना जैसी महामारी तो कैसे निपटेंगे? जानिए हमें क्या करने की जरूरत है
कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी से बहुत सारे लोगों की मौत हुई थी. सरकार को ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय करने पड़े. भविष्य में अगर फिर ऐसा कुछ हो तो उसके लिए कुछ सुधारों की जरूरत है.
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर जब आई, तो भारत मे बहुत सारी मौतें होने लगी थीं. जुलाई 2021 में दूसरी लहर जब अपने चरम पर थी तब भारत में रोजाना औसतन 35,000 लोगों की मौत हो रही थी. जुलाई 2021 के अंत तक मई और जुलाई 2021 के बीच दर्ज की गई मौतों में उस समय देश की कुल मृत्यु का 56% मौत कोविड की वजह से हुई थी. इतनी सारी मौतें इसलिए हुईं क्योंकि उस दौरान देश में मेडिकल ऑक्सीजन की भारी किल्लत हो गई थी. ऑक्सीजन न मिलने से कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.
कोविड की दूसरी लहर की भयावहता को देखते हुए सरकार ने ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए तमाम कदम उठाए. मेडिकल ऑक्सीजन की मांग उस समय 10 गुना से ज्यादा हो गई थी और सरकार को मेडिकल ऑक्सीजन की कमी से जूझना पड़ा. दूसरे देशों से भारत में ऑक्सीजन के टैंकरों को एयरलिफ्ट किया गया. जिन टैंकर में पहले लिक्विड नाइट्रोजन और ऑर्गन भरे जाते थे, उनका उपयोग ऑक्सीजन को पहुंचाने के लिए किया गया. ऑक्सीजन की आपूर्ति बहाल करने के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं. इन ऑक्सीजन टैंकरों पर नज़र रखने के लिए ऑनलाइन ट्रैकिंग सिस्टम लांच किया गया, ताकि रियल टाइम में कम से कम 550 शहरों और जिलों में जीवन रक्षक चीजों की आवाजाही की निगरानी की जा सके.
इसके अलावा मात्र कुछ ही अस्पतालों में ऑक्सीजन को बनाने के लिए इन-हाउस सुविधाएं स्थापित करने की क्षमता थी. सरकार के हस्तक्षेप और चिकित्सकों के संकल्प से देश भर में हजारों प्रेशर स्विंग अब्जोर्बेशन (पीएसए) प्लांट स्थापित किए गए. ये प्लांट अप्रैल 2022 तक 4,000 से भी ज्यादा हो गए हैं. स्टील प्लांट में बनने वाली इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को अस्पतालों में बदल दिया गया. इसके अलावा ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए कई नए अविष्कार किए गए. लेकिन अब सामान्य स्थिति में लौटने और मेडिकल ऑक्सीजन की मांग में भारी गिरावट आने से भविष्य में ऐसी किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए भारत कोविड़ की दूसरी लहर को एक सबक की तरह ले सकता है.
बढ़ी हुई उत्पादन क्षमता के लिए सहयोग का लाभ उठाना
महामारी की वजह से यह बात साबित हुई कि सरकार मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता अकेले नहीं कर सकती है. अक्टूबर 2021 तक भारत सरकार ने 1,750 मीट्रिक टन की दैनिक उत्पादन क्षमता के साथ पीएम केयर्स कार्यक्रम के तहत 1,224 पीएसए प्लांट को स्थपित करने के लिए फंड दिया था. यह एक काबिले तारीफ उपलब्धि है, ऐसे में प्राइवेट सेक्टर और डेवलपमेंट पार्टनर्स का सहयोग ऑक्सीजन उत्पादन को और भी ज्यादा बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हो गया है. इसके अलावा यह भी महत्त्वपूर्ण हो गया है कि देश के कोने-कोने में मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए इसके स्टोरेज और आवाजाही के साथ ज्यादा से ज्यादा प्लांट स्थापित किए जाएं.
गौरतलब है कि कुछ अस्पतालों में प्लांट स्थापित करने के लिए पैसे नहीं हैं. सरकार उन्हें अपने प्लांट स्थापित करने के लिए विशेष रूप से सीड फंडिंग करके मदद कर सकती है. दूसरी ओर, कई अस्पतालों और हेल्थकेयर सेन्टर की सेवा के लिए सरकार की तरफ से खास स्थानों पर केंद्रीय प्लांट बनाए जा सकते हैं. बिहार राज्य सरकार की नीति को अन्य राज्यों और यहां तक कि केंद्र सरकार की तरफ से भी अपनाया जा सकता है. ऑक्सीजन प्लांट और फैसिलिटी की स्थापना के लिए 30% या उससे भी ज्यादा की कैपिटल सब्सिडी सरकार दे सकती है.
रख-रखाव और तकनीकी क्षमता को बढ़ाना
फिलहाल भारत को अभी उतनी मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है, जितनी वह पैदा कर सकता है, लेकिन भविष्य के लिए उत्पादन क्षमता को बनाए रखना जरूरी है. उपलब्ध ऑक्सीजन प्लांट को चालू रखने के लिए उनका रख-रखाव बहुत ज़रूरी है. अच्छी बात यह है कि पीएम केयर्स फंड के माध्यम से स्थापित 1,224 पीएसए प्लांट में पांच साल का मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट है. इस कॉन्ट्रैक्ट से प्लांट का उचित रख-रखाव और स्थिरता सुनिश्चित होगी. देश भर में स्थापित अन्य 2,500 से ज्यादा प्लांट को बेहतर तरीके से चलाए रखने के लिए वार्षिक मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट को और ज्यादा समय के लिए बढ़ाने की ज़रूरत है.
इसके अलावा क्रायोजेनिक टैंकरों और सिलेंडरों को दूर दराज के स्थानों पर लिक्विड मेडीकल ऑक्सीजन (एलएमओ) के स्टोरेज और डिलीवरी सहित अन्य चीजों को बेहतर तरीके से बनाए रखा जाना चाहिए. महामारी के दौरान ऑक्सीजन की किल्लत तो हुई ही साथ ही भारत को उन ट्रेंड कर्मचारियों की भी कमी खली जो पीएसए प्लांट्स, ऑक्सीजन कंसेंट्रेशन और यहां तक कि वेंटिलेटर को चला सकते थे. भविष्य में कोई अगर कोविड की तरह महामारी आती है तो हमें उसके लिए तैयार रहना चाहिए. भारत को ऑक्सीजन मशीनों को संभालने और चलाने के लिए डॉक्टरों और तकनीशियनों को ट्रेनिंग देने के लिए कार्यक्रम शुरू करने चाहिए.
एक व्यापक और व्यवस्थित मेडिकल ऑक्सीजन ईको सिस्टम बनाना
जीवन रक्षक उपकरणों को प्रदान करने की दिशा में अगर सही तरीके से पहल चलाई जाए तो भारत पूरी दुनिया के लिए एक मॉडल बन सकता है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी कि इस दौरान ऑक्सीजन की किल्लत गैस की कमी से नहीं हुई थी, बल्कि शहरों और औद्योगिक केंद्रों में इसकी कंसेट्रेशन से किल्लत हुई थी. हालांकि, ट्रकों और हवाई जहाजों को इन्हें ले जाने के लिए प्रभावी ढंग से तैनात किया गया था, लेकिन इनकी लागत महंगी पड़ रही थी. सरकार का अगला कदम यह होना चाहिए कि देश के विभिन्न हिस्सों में उपलब्धता बढ़ाने के लिए रणनीतिक स्थानों पर बफर स्टोरेज का निर्माण हो. जरूरत पड़ने पर प्रभावी और तेजी से डिलीवरी के लिए पाइपलाइन जैसी अन्य मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट सिस्टम को भी लाने की कोशिश की जाए.
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(लेखक अब्स्टीम टेक्नोलॉजी के को-फाउंडर हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by Anuj Maurya