Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

ग्रामीण भारत में अब भी कहीं पीछे है 'स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत' का सपना, ऐसे संभव है बदलाव

ग्रामीण भारत में अब भी कहीं पीछे है 'स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत' का सपना, ऐसे संभव है बदलाव

Monday April 29, 2019 , 5 min Read

सांकेतिक तस्वीर

पिछले कुछ दशकों से लगातार वैश्विक समुदायों के बीच भारत की छवि एक ऐसे देश की रही है, जहां पर गंदगी और प्रदूषित वातावरण की समस्या समय के साथ-साथ बढ़ती जा रही है। हम सभी ने ऐसी कई कहानियां सुनी होंगी, जिसमें भारत के लोग विदेशों में जाकर वहां पर चलने वाले स्वच्छता के सख़्त नियमों का पूरी तरह से पालन करते हैं, लेकिन भारत में आकर वे स्वच्छता के प्रति अपनी सभी जिम्मेदारियों को दरकिनार कर देते हैं।


जागरूकता की बदौलत पिछले कुछ सालों में भारत में स्वच्छता के परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है और सरकार द्वारा इस दिशा में कई प्रभावी कदम भी उठाए गए। इतना ही नहीं, स्वच्छता को बनाए रखने के लिए चली इन मुहिमों को आम जनता का भी पूरा साथ मिला। इन सभी में सबसे प्रमुख मिशन है, 'स्वच्छ भारत अभियान या मिशन', जो एक मिसाल के रूप में उभरकर सामने आ रहा है।


एसबीएम (ग्रामीण) वेबसाइट के मुताबिक़, मात्र पिछले चार सालों में भारत के 27 राज्यों में 15,70,13,896 घरों में 9,25,13,906 शौचालयों का निर्माण हुआ और इन्हें 'खुले में शौच से मुक्त' होने का दर्जा भी हासिल हुआ। स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक लक्ष्य निर्धारित किया गया था कि अक्टूबर, 2019 तक संपूर्ण भारत को खुले में शौच से मुक्त कर दिया जाएगा और इसकी बदौलत गंदगी और शौच की उपयुक्त व्यवस्था इत्यादि की कमी के चलते डायरिया और प्रोटीन-ऊर्जा की कमी से होने वाली लगभग 3 लाख मौतों को रोका जा सकेगा। इस मिशन को पूरे देश ने गंभीरता से लिया और अपना सहयोग दिया, जिसकी बदौलत विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी भारत में चल रही इस मुहिम को सराहा गया। वैश्विक संगठनों द्वारा प्रशंसा और सराहना के साथ-साथ इस मिशन की सफलता की मुख्य वजह यह है कि यह आम जनता से सीधे जुड़ने वाली एक मुहिम बनी और सरकारी अधिकारों और राजनेताओं के साथ-साथ बॉलिवुड के सितारों, खिलाड़ियों, बिज़नेस संगठनों और आम जनता सभी ने एक स्तर पर इस मिशन को सफल बनाने के लिए प्रयास किए।

सरकार द्वारा शुरू की गई इस मुहिम ने युद्ध स्तर पर घरों में टॉयलट या शौचालय बनाने की बात को देश की बड़ी आबादी तक सकारात्मक रूप से पहुंचाया, लेकिन इस संबंध में समुदायों का पूरी तरह से बदलाव अभी भी बाक़ी है।


कई वजहें हैं, जैसे कि कन्सट्रक्शन की अधिक लागत, एक प्रभावी टॉयलट टेक्नॉलजी की कमी और कमज़ोर सैनिटेशन इन्फ़्रास्ट्रक्चर, जिनके चलते अभी भी विभिन्न सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में रहने वाले समुदायों के बीच सबसे आधारभूत स्तर पर रहने वाले समुदायों में स्वच्छता के लिए एक उपयुक्त व्यवस्था की स्वीकार्यता में कमी है और साथ ही, उनके व्यवहार में भी कोई ख़ास बदलाव संभव नहीं हो पा रहा है।


ग्रामीण भारत के इतिहास में यह प्रचलन ही रहा है कि घर के आधारभूत ढांचे में टॉयलट के लिए अलग से कोई जगह ही नहीं होती थी। शौच या शौचालय के बारे में खुलकर बात करना लोग ठीक नहीं समझते थे। यही उनके जीने का तरीक़ा हुआ करता था। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 6 लाख गांव हैं और यहां रहने वालों की सोच में शौच और शौचालय के संबंध में सोच में बदलाव लाना एक बड़ी चुनौती है।


इस परिदृश्य को पूरी तरह से बदलने के लिए हमारे समाज को सरकारी नीतियों और योजनाओं के साथ-साथ बिज़नेस संगठनों का भी साथ चाहिए। इन संगठनों को स्थानीय समुदायों के विभिन्न प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए और इस मुहिम में मददगार उत्पादों को लोगों तक पहुंचाना चाहिए और इस प्रकार से सरकार की मुहिम और अधिक बल देना चाहिए।


स्टैनफ़ोर्ड सोशल इनोवेशन रीव्यू के एक लेख के मुताबिक़, परिवर्तन की गती उतनी ही होगी, जितनी तेज़ी के साथ लोग उसे स्वीकार करेंगे। लोगों के बीच परिवर्तन की स्वीकार्यता की गति बढ़ाने के लिए बिज़नेस संगठनों का सहयोग ज़रूरी है, जो समुदाय विशेष के लोगों को उनके अपने इलाके में काम करने के लिए प्रेरित कर सकें।

अगर कोई बिज़नेस संगठन सामुदायिक स्तर पर बदलाव की पहल शुरू करता है तो उसे सबसे पहले ज़मीनी स्तर पर समस्याओं को समझना होगा और उसके बाद संगठन के लोगों को अपनी मुहिम में शामिल करते हुए समस्याओं की जड़ों तक शोध करना होगा।


लोगों का सहयोग हासिल करने के बाद इन संगठनों को अपनी तकनीक, पैसे, रिसर्च और अन्य संसाधनों की मदद से स्थानीय लोगों को मज़बूत बनाना होगा, जो अपने पूरे समुदाय को इस परिवर्तन की मुहिम से जोड़ सकते हों।


हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल के प्रफ़ेसर मिशेल पोर्टर ने 2013 में टेड (टीइईडी) ग्लोबल कॉन्फ़्रेस के मंच से कहा था कि सामाजिक मुद्दों पर काम करने के लिए जो मॉडल अपनाया जा रहा है (जिसमें गैर-सरकारी संगठन-एनजीओ और अन्य लोक कल्याण संस्थाएं आती हैं) वह प्रभावी तो है, लेकिन उसके साथ अभी भी कई समस्याएं हैं। इस वजह से हेल्थकेयर, पानी की उपलब्धता, स्वच्छता और शिक्षा के लिए एक व्यवस्थित ढांचा आदि ऐसे मुद्दे हैं, जहां अभी भी कई समस्याएं हैं। इसका उपाय तब ही संभव है, जब बिज़नेस संगठनों द्वारा सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर सामुदायिक स्तर पर लोगों की प्रतिभागिता सुनिश्चित की जाएगी।


यह भी पढ़ें: इस महिला ने रचा इतिहास, पुरुषों के इंटरनेशनल वनडे मैच में करेंगी अंपायरिंग