Income Tax: नई और पुरानी आयकर व्यवस्था के बीच कितनी बार कर सकते हैं स्विच?
Budget घोषणाओं के साथ यह भी कहा गया कि पुरानी टैक्स व्यवस्था और नई व्यवस्था में से चुनाव का विकल्प खुला रहेगा.
बजट 2023 (Union Budget 2023) में व्यक्तिगत आयकर (Personal Income Tax) को लेकर कुछ बड़ी घोषणाएं हुईं. लेकिन इन सभी का फायदा नई वैकल्पिक टैक्स व्यवस्था (New Optional Tax Regime ) तक ही सीमित है. देश में नई टैक्स व्यवस्था 1 अप्रैल 2020 से प्रभावी है. बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने व्यक्तिगत आयकर को लेकर 5 अहम घोषणाएं कीं...
1. नई आयकर व्यवस्था के तहत रिबेट के साथ 7 लाख रुपये तक की टैक्सेबल इनकम पर कोई टैक्स नहीं देना होगा.
2. नई आयकर व्यवस्था में टैक्स से एग्जेंप्ट इनकम की लिमिट को बढ़ाकर 0-3 लाख रुपये कर दिया. नई टैक्स व्यवस्था में आय के आधार पर स्लैब्स में बदलाव हुआ, जिसके बाद अब वे इस तरह होंगे...
0 से 3 लाख रुपये- निल
3 से 6 लाख रुपये- 5%
6 से 9 लाख रुपये- 10%
9 से 12 लाख रुपये- 15%
12 से 15 लाख रुपये- 20%
15 लाख से ऊपर- 30%
3. नई टैक्स व्यवस्था के तहत अब हाइएस्ट सरचार्ज रेट को 37 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत किया गया है.
4. अब सैलरीड क्लास करदाता नई वैकल्पिक टैक्स व्यवस्था में भी 50000 रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा ले सकेंगे.
5. गैर-सरकारी सैलरीड इंप्लॉइज के रिटायरमेंट के मामले में लीव इनकैशमेंट पर टैक्स एग्जेंप्शन की लिमिट को बढ़ाकर 25 लाख रुपये किया जाएगा.
करदाता कितनी बार स्विच कर सकते हैं टैक्स व्यवस्था?
अब यहां सवाल यह है कि एक करदाता अपनी जिंदगी में कितनी बार पुरानी और नई आयकर व्यवस्था के बीच स्विच कर सकता है. तो बता दें कि हर टाइप का करदाता हर वित्त वर्ष की शुरुआत में यह चुनाव नहीं कर सकता. करदाताओं की एक श्रेणी ऐसी भी है, जिसे हर वित्त वर्ष में यह चुनाव करने का मौका नहीं है.
आयकर कानूनों के मुताबिक, अगर करदाता सैलरीड क्लास है, यानी वेतनभोगी है या फिर पेंशनर है तो वह हर वित्त वर्ष की शुरुआत में यह चुन सकता है कि वह उस पूरे वित्त वर्ष के लिए कौन सी आयकर व्यवस्था के साथ जाना चाहता है- नई आयकर व्यवस्था या पुरानी आयकर व्यवस्था. वेतनभोगी करदाता से हर वित्त वर्ष की शुरुआत में उसके एंप्लॉयर की ओर से यह पूछा जाता है कि वह कौन सी टैक्स व्यवस्था के साथ संबंधित वित्त वर्ष के लिए जाना चाहता है. लेकिन अगर करदाता को आय बिजनेस से हो रही है तो वह हर वित्त वर्ष यह चुनाव नहीं कर सकता.
तो बिजनेस से इनकम वालों के लिए क्या प्रावधान
बिजनेस से इनकम वालों के लिए प्रावधान है कि अगर उसने किसी वित्त वर्ष में नई टैक्स व्यवस्था को चुन लिया है तो उसे आगे के वित्त वर्षों में भी उसी व्यवस्था के अनुरूप टैक्स का भुगतान करना होगा. हालांकि उसके पास भविष्य में जीवन में केवल एक मौका रहेगा अपने इस फैसले को बदलने का, यानी फिर से पुरानी टैक्स व्यवस्था में लौटने का. अगर इस मौके का फायदा उठाकर बिजनेस से इनकम वाला करदाता फिर से पुरानी आयकर व्यवस्था को चुनता है तो उसे दोबारा नई टैक्स व्यवस्था में जाने का मौका नहीं मिलेगा.
याद रहे कि कंसल्टेंट की आय को बिजनेस इनकम माना जाता है, न कि सैलरी इनकम. इसी तरह फ्रीलांसिंग एक्टिविटीज भी बिजनेस इनकम में काउंट होती है.
अब नई इनकम टैक्स व्यवस्था, डिफॉल्टेड टैक्स व्यवस्था
Budget घोषणाओं के साथ यह भी कहा गया कि पुरानी टैक्स व्यवस्था और नई व्यवस्था में से चुनाव का विकल्प खुला रहेगा. साथ ही अब नई इनकम टैक्स व्यवस्था, डिफॉल्टेड टैक्स व्यवस्था होगी. अभी तक पुरानी आयकर व्यवस्था, डिफॉल्टेड टैक्स व्यवस्था थी. इसका अर्थ है कि अगर करदाता वित्त वर्ष की शुरुआत में यह चुनाव नहीं करता है कि उसे वित्त वर्ष के लिए कौन सी आयकर व्यवस्था के साथ जाना है, तो यह मान लिया जाता था कि करदाता पुरानी आयकर व्यवस्था के साथ जाना चाहता है. लेकिन अब चूंकि नई इनकम टैक्स व्यवस्था को डिफॉल्टेड टैक्स व्यवस्था बना दिया गया है, तो करदाता की ओर से चुनाव न किए जाने पर यह मान लिया जाएगा कि वह नई आयकर व्यवस्था के साथ जाना चाहता है.