कभी शराबी पिता और गरीबी ने किया था परेशान, आज ओलंपियन बन दुनिया भर में छा गई ये लड़की
भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही इस ओलंपिक में पदक जीतने से चूक गई हो, लेकिन टीम की खिलाड़ियों ने अपने जज्बे से सबको प्रभावित जरूर किया है।
आज देश में हॉकी का सितारा बन युवाओं को प्रेरित कर रहीं नेहा के लिए यहाँ तक का सफर बेहद कठिन और असीम संघर्ष से भरा हुआ रहा है। मीडिया के साथ हुई बातचीत में नेहा ने बताया है कि उनके पिता शराब के आदी थे और शराब के नशे में चूर होकर वे घर पर उनकी माँ व उनके साथ मारपीट भी करते थे।
टोक्यो ओलंपिक का समापन हो चुका है और भारत के लिहाज से यह ओलंपिक ऐतिहासिक रहा है। एक स्वर्ण पदक के साथ कुल 7 पदक जीतने के बाद आज देश में लोग जश्न मना रहे हैं,जबकि इसी के साथ तमाम ऐसे खिलाड़ियों को भी लोग पहचान रहे हैं जो इसके पहले शायद 'गुमनाम' ही थे।
भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही इस ओलंपिक में पदक जीतने से चूक गई हो, लेकिन टीम की खिलाड़ियों ने अपने जज्बे से सबको प्रभावित जरूर किया है। इसी टीम की एक खिलाड़ी हैं नेहा गोयल, जिन्होने तमाम मुश्किलें पार करते हुए भारत के खेल क्षेत्र में अपने लिए एक खास जगह हासिल की है। नेहा भारतीय हॉकी टीम के लिए बतौर मिड फील्डर खेलती हैं।
आज देश में हॉकी का सितारा बन युवाओं को प्रेरित कर रहीं नेहा के लिए यहाँ तक का सफर बेहद कठिन और असीम संघर्ष से भरा हुआ रहा है। मीडिया के साथ हुई बातचीत में नेहा ने बताया है कि उनके पिता शराब के आदी थे और शराब के नशे में चूर होकर वे घर पर उनकी माँ व उनके साथ मारपीट भी करते थे।
नेहा के लिए उनके खेल की तैयारी का आलम यह था कि बेहतर डाइट तो दूर, उनके जूते भी फटे हुए ही रहते थे, क्योंकि नेहा के लिए उन परिस्थितियों में यह सब मैनेज करना नामुमकिन था।
लंबाई को लेकर सुनने पड़े ताने
नेहा को उनकी हाइट को लेकर भी लोगों के तंज़ का सामना करना पड़ता था। लोग उनकी लंबाई का मज़ाक बनाया करते थे और यह कई बार नेहा के लिए उनके मनोबल पर चोट पहुंचाने वाला भी साबित होता था। हालांकि नेहा ने इन सब के बीच अपना सारा फोकस अपने खेल पर ही रखने का फैसला किया।
सोनीपत में जन्मी नेहा जब 5वीं कक्षा में थीं तब उन्होने अपनी एक दोस्त के कहने पर हॉकी खेलना शुरू किया था, क्योंकि वहाँ हॉकी खेलने वाले खिलाड़ियों को किट और जूते दिये जा रहे थे।
नेहा की माँ चाहती थीं कि उनकी बेटी हॉकी के खेल में ही आगे बढ़े, हालांकि उनकी आर्थिक स्थिति तब इसका समर्थन नहीं कर रही थी। नेहा की माँ ने तब फैक्ट्रियों में काम करने का निर्णय लिया, ताकि वो अपनी बेटी के सपने को पूरा करने में उसकी मदद कर सकें।
लड़कियों को प्रेरित कर रही हैं नेहा
सोनीपत में ही नेहा अपनी गुरु प्रीतम सिवाच से मिलीं, जो अर्जुन पुरस्कार विजेता होने के साथ ही राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम की सदस्य भी रह चुकी हैं।
नेहा के जज्बे ने तब प्रीतम को काफी को काफी प्रभावित किया था, हालांकि नेहा के सेलेक्शन के दौरान भी प्रीतम को नेहा की लंबाई को लेकर तमाम बातों का सामना करना पड़ा, लेकिन एक गुरु के तौर पर प्रीतम को नेहा के टैलेंट पर पूरा भरोसा था।
हालांकि सेलेक्शन के बाद नेहा ने राष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा और यहीं से हॉकी की राष्ट्रीय टीम में नेहा की जगह बन गई। आज ओलंपियन बन चुकी नेहा देश भर की लड़कियों को खेल को बतौर करियर चुनकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
नेहा कहती हैं कि जब उन्हें जरूरत थी तब लोगों ने उनकी मदद की थी और आज उनकी बारी है कि वो हॉकी के खेल में आगे बढ़ने की चाह रखने वाली लड़कियों की मदद करें।
Edited by Ranjana Tripathi