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आजादी के इतिहास के स्वर्णिम पन्नों से निकली तिरंगे की ये कहानी नहीं जानते होंगे आप...

यहां आज हम हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज...हमारी आन-बान-शान..हमारा तिरंगा, हमारी पहचान "तिरंगे" की कहानी बताने जा रहे हैं...

आजादी के इतिहास के स्वर्णिम पन्नों से निकली तिरंगे की ये कहानी नहीं जानते होंगे आप...

Tuesday August 15, 2023 , 4 min Read

देशभर में चारों तरफ जश्न का माहौल है. पूरा देश आजादी के जश्न में सराबोर है. हो भी क्यूं न, ये आजादी का अमृत महोत्सव जो है. ये आजादी की 76वीं वर्षगांठ है. पिछले साल स्वतंत्रता दिवस से पहले, केंद्र सरकार द्वारा ”हर घर तिरंगा” अभियान की घोषणा की गई थी. 13 अगस्त से 15 अगस्त तक चलने वाला यह अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित ”अमृत महोत्सव” का हिस्सा है. इस खास अभियान के तहत पीएम मोदी ने न केवल घर की छत पर झंडा फहराने का अनुरोध किया, बल्कि सोशल मीडिया प्रोफाइल पर भी राष्ट्रीय ध्वज की तस्वीर लगाने का आह्वान किया है.

लेकिन ये आजादी हमें यूं ही नहीं मिली. इसे हासिल करने के लिए हमारे देश के कई वीर योद्दाओं ने अपने प्राणों की आहूति दी है. दशकों के आंदोलन के बाद आखिरकार 15 अगस्त 1947 का वो सवेरा आया, जिस दिन देश अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुआ. इस आजादी का अपना इतिहास है. और इस इतिहास के हर एक पन्ने में एक स्वर्णिम कहानी है.

यहां आज हम हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज...हमारी आन-बान-शान..हमारा तिरंगा, हमारी पहचान "तिरंगे" की कहानी बताने जा रहे हैं...

आजादी से पहले हमारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज 'तिरंगा' कई बदलावों से होकर गुजरा है. तिरंगे को बतौर राष्‍ट्रीय ध्‍वज चुनने से पहले, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई अलग-अलग ध्वज का प्रयोग किया गया था.

पहली बार राष्‍ट्रीय ध्‍वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (कोलकाता) में फहराया गया था. इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था. इसमें पीली पट्टी पर कमल बना हुआ था.

साल 1906 में डिजाइन किए गए राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंगों का समावेश था. इसके बीच में वंदे मातरम् लिखा था. इस ध्वज में तारों के साथ ही चांद और सूरज की आकृतियां भी दर्शाई गई थी. बाद में इसमें थोड़ा परिवर्तन कर तारों को कमल के फूल से बदल दिया गया. श्याम जी कृष्ण वर्मा, मैडम भीकाजी कामा, और वीर सावरकर ने वर्ष 1907 में राष्ट्रीय ध्वज का नया डिजाइन तैयार किया. इसमें डिजाइन के साथ-साथ रंगों में भी बदलाव किया गया.

हमारा तीसरा ध्‍वज 1917 में आया जब हमारे राजनीतिक संघर्ष ने एक खास मोड़ लिया. डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया.

बाद में, कांग्रेस के सत्र बेजवाड़ा (वर्तमान विजयवाड़ा) में आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वेंकैया ने एक झंडा बनाया. यह दो रंगों - लाल और हरा रंग से मिलकर बना था. तब इसके पीछे तर्क यह था कि यह दोनों रंग दो प्रमुख समुदायों - हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करते हैं. यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए.

वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में यादगार वर्ष रहा. तिरंगे ध्वज को राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया. यह ध्‍वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में चलते हुए चरखे के साथ था. यह स्पष्ट रूप से बताया गया कि इसका कोई साम्‍प्रदायिक महत्व नहीं था.

फिर 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया. स्वतंत्रता के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा. केवल ध्‍वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया.

अब वर्तमान में भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है, जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है. बीच में सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है. निचली हरी पट्टी हरियाली, उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है.

YourStory की पूरी टीम की तरफ से आपको और आपके पूरे परिवार को आजादी के इस अमृत महोत्सव की ढेर सारी शुभकामनाएं!!!

हमारा तिरंगा, हमारी पहचान... वन्दे मातरम्... जय हिंद, जय भारत!!!

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