75 वर्षों में कहां आगे बढ़ा, कहां पिछड़ा भारत; इन 6 इंडीकेटर्स से जानिये
स्वतंत्रता हमें बहुत कुछ देती है, जैसे कि देश और समाज हमें देते ही रहते हैं. इसीलिए 15 अगस्त पर आज़ादी और उसके बहुत सारे पहलुओं पर सोचने और लिखने के लिए हमारे पास बहुत कुछ होता है. पर 15 अगस्त बीत जाने पर क्या लिखें? जब हम पंद्रह अगस्त को याद कर रहे होते हैं तो हमें अपने मौजूदा समय का ध्यान अक्सर ही रहता है, यह जानने के लिये कि उन परिस्थितियों में क्या आज के लिये कोई सबक है?
इन 75 सालों में देश बहुत बदला है. हम 34 करोड़ से 137 करोड़ हो गए. देश का नागरिक पहले औसत 34 साल जीता था, अब 69 साल जीता है. देश की जीडीपी 2.93 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर आज करीब 147 लाख करोड़ रुपये हो गई. हर साल जारी किये वाले अलग-अलग क्षेर्त्रों से सम्बंधित सूचकांकों को देखें तो भारत ने कुछ जगहों पर प्रगति की है तो कुछ सूचकांक ऐसे हैं जहां अभी भी सुधार की ज़रूरत है.
जनसंख्या
देश की आज़ादी के वक़्त देश की आबादी लगभग 34 करोड़ थी. 1951 में देश की पहली जनगणना हुई, तब देश की आबादी 36 करोड़ से थोड़ी ही ज्यादा थी. आखिरी बार 2011 में जनगणना हुई जिसमें देश की आबादी 121 करोड़ पाई गई थी. हालांकि, UIDAI ने जुलाई 2022 तक देश की आबादी 137.29 करोड़ से ज्यादा होने का अनुमान लगाया है.
GDP (ग्रॉस डेमोस्टिक प्रोडक्ट) पर कैपिटा
26 देशों के अध्ययन में भारत को 24वें स्थान पर रखा गया. ’60 के दशक में इंडोनेशिया और भारत दोनों ही इस इंडेक्स में नीचे थे पर 2020 तक इंडोनेशिया भारत से आगे निकल चुका है.
बाल मृत्यु दर
प्रति 1,000 जन्मों पर होने वाली बच्चों की मौत की संख्या को बाल मृत्यु दर कहते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, 1951 में एक हजार बच्चों पर मृत्यु दर जहां 146 थी, वो 2019 में घटकर 30 हो गई. यानी, 1951 में हर हजार बच्चों में से 146 बच्चे ऐसे थे जो एक साल भी जी नहीं पाते थे वो संख्या आज घटकर 30 हो गयी है. 2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल मृत्यु दर 30 से घटकर 27 हो गयी है. आज़ादी के बाद से इस क्षेत्र में हालात सुधरे हैं.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 ने कुल 116 देशों में भारत को 101वां स्थान दिया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, भारत में भूख का स्तर 'खतरनाक' है.
ग्लोबल हंगर स्कोर की गणना चार मापदंडों के आधार पर की जाती है, जिसमें अल्पपोषण, बच्चे की खराब स्थिति, बाल स्टंटिंग, उनकी आयु, और बाल मृत्यु दर को लेकर तैयार किया जाता है.
प्रवासी समस्या
भारत हमेशा से ही एक ऐसा देश रहा है जिससे बड़ी संख्यां में लोगों ने माइग्रेट किया है. हालांकि, पिछले 5 दशकों में प्रवासियों की संख्यां में बेतहाशा वृद्धि हुई है. 2017 में 31 देशों में किये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत से प्रवासियों की संख्यां सबसे ज्यादा थी. ’60 के दशक में, भारत से माइग्रेशन सिर्फ 11 देशों से कम था.
कार्बन एमिशन और रिन्युएबल एनर्जी से प्राप्त ऊर्जा
पिछले तीन दशकों में भारत का कार्बन एमिशन पर कैपिटा दुसरे देशों से अपेक्षाकृत कम रहा है. रिन्युएबल एनर्जी जैसे हवा, बायोमास और बायोफ्यूल से उत्पन्न की जाने वाली उर्जा का दर बहुत ही कम रहा है. साल 2015 तक, देश में खपत होने वाली कुल उर्जा की मात्र 5.3 प्रतिशत उर्जा ही रिन्युएबल एनर्जी से प्राप्त की गयी है.