स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती जागरूकता के दम पर भारत का रिटायरमेंट इंडेक्स 3 अंक बढ़कर 47 पर पहुंचा
अध्ययन में सामने आया कि शहरी भारत का रिटायरमेंट इंडेक्स (0 से 100 के पैमाने पर) बढ़कर 47 पर पहुंच गया है. पिछले दो संस्करणों में यह इंडेक्स 44 रहा था और इसमें उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है.
हाइलाइट्स
- महामारी के बाद स्वास्थ्य पर बढ़े फोकस से शहरी भारत में स्वास्थ्य को लेकर तैयारियों का इंडेक्स 44 पर पहुंचा, जो तीन साल का सर्वोच्च स्तर है
- 10 में से 9 शहरी भारतीयों (50 साल से अधिक उम्र के) ने समय रहते रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी के लिए बचत नहीं करने पर जताया अफसोस
- 3 में से 1 शहरी भारतीय को चिंता है कि उनकी बचत रिटायरमेंट के बाद मात्र 5 साल में ही खत्म हो जाएगी
- पहली बार रिटायरमेंट को लेकर भारतीय शहरी महिलाओं की तैयारी पुरुषों की बराबरी पर नजर आई
- पूर्वी भारत में रिटायरमेंट को लेकर तैयारियां सबसे अच्छी स्थिति में हैं, टियर 2 शहरों में रिटायरमेंट की तैयारियां टियर 1 के स्तर की ही देखने को मिलीं
मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने रिटायरमेंट की तैयारियों को लेकर अपने सर्वे इंडिया रिटायरमेंट इंडेक्स स्टडी (IRIS) के तीसरे संस्करण से मिले निष्कर्ष जारी किए हैं. दुनिया की अग्रणी मार्केटिंग डाटा एवं एनालिटिक्स कंपनी कांतार के साथ साझेदारी में यह सर्वे किया गया है. सर्वे में शहरी भारत में रिटायरमेंट के बाद स्वस्थ, शांतिपूर्ण और वित्तीय रूप से सुरक्षित जीवन सुनिश्चित करने की दिशा में लोगों की तैयारियों का आकलन किया गया. इस डिजिटल स्टडी* के लिए भारत के 28 शहरों में 2,093 लोगों को शामिल किया गया.
अध्ययन में सामने आया कि शहरी भारत का रिटायरमेंट इंडेक्स (0 से 100 के पैमाने पर) बढ़कर 47 पर पहुंच गया है. पिछले दो संस्करणों में यह इंडेक्स 44 रहा था और इसमें उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है. रिटायरमेंट इंडेक्स में तीन सब-इंडेक्स स्वास्थ्य (हेल्थ), वित्त (फाइनेंस) एवं भावनात्मक (इमोशन) हैं. इन तीनों ही मानकों में सुधार देखा गया है. रिटायरमेंट की तैयारियों के इंडेक्स में यह सुधार स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती जागरूकता के दम पर देखने को मिला है. स्वास्थ्य का इंडेक्स आइरिस 2.0 के 41 से 3 अंक बढ़कर आइरिस 3.0 में 44 पर पहुंच गया है.
मैक्स लाइफ के मैनेजिंग डायरेक्टर एवं सीईओ प्रशांत त्रिपाठी ने कहा, "इस संस्करण में भारत में रिटायरमेंट की तैयारियों में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है, जो देश की मजबूत होती आर्थिक स्थिति को भी दर्शाता है. आज की कार्यशील आबादी ही भविष्य की बड़ी और सेवानिवृत्त आबादी बनेगी. यह जरूरी है कि हम अपने रिटायरमेंट के बाद के वर्षों के लिए तैयारी के महत्व को समझें, क्योंकि भारत अपनी बुजुर्ग आबादी को प्रबंधित करने और लंबी जीवन प्रत्याशा की ओर बढ़ रहा है. हमारे अध्ययन से शहरी भारतीयों के बीच रिटायरमेंट की तैयारियों को लेकर आने वाली चुनौतियों की तस्वीर सामने आई है, साथ ही इस दिशा में हुई प्रगति का भी पता चला है."
कांतार की एमडी एवं चीफ क्लाइंट ऑफिसर, साउथ एशिया, इनसाइट्स डिवीजन सौम्या मोहंती ने कहा, "इंडिया रिटायरमेंट इंडेक्स सर्वे से इस बात को लेकर महत्वपूर्ण रुझान सामने आया कि भारत की शहरी आबादी रिटायरमेंट को लेकर कैसे तैयारी करती है. पिछले तीन साल में सर्वे ने इस बात को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि रिटायरमेंट के बाद के जीवन को लेकर वित्तीय, शारीरिक एवं भावनात्मक रूप से भारतीय किस हद तक खुद को सुरक्षित अनुभव करते हैं. मैक्स लाइफ के साथ हमारी साझेदारी ने भारत की शहरी आबादी के लिए उनके जीवन के हर पड़ाव पर वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में हमारी साझा प्रतिबद्धता को और मजबूती दी है."
रिटायरमेंट को लेकर शहरी भारत का परिदृश्य
IRIS 3.0 में सामने आया कि शहरी भारतीयों में रिटायरमेंट को तनावमुक्त जीवन से जोड़कर देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है. रिटायरमेंट को जीवन में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत के रूप में देखते हुए शहरी भारत में रिटायरमेंट सेंटिमेंट बढ़कर 73 (IRIS 2.0 से 3 अधिक) हो गया है. आज, 10 में से 7 लोग रिटायरमेंट को 'परिवार के लिए समय', 'तनाव-मुक्त जीवन', 'अधिक आजादी' और 'लक्जरी/ट्रैवल की अधिक संभावनाओं' वाले जीवन के रूप में देखते हुए सकारात्मक सोच रखते हैं, जबकि शेष लोग जीवन के इस चरण को 'अस्वास्थ्यकर जीवनशैली (अनहेल्दी लाइफस्टाइल)', 'जीवन का अरुचिकर चरण (अनइंटरेस्टिंग लाइफ फेज)', 'कम बचत' और 'उद्देश्यविहीन जीवन' जैसी नकारात्मक भावनाओं से जोड़कर देखते हैं.
सकारात्मक परिदृश्य दर्शाते हुए 59 प्रतिशत भारतीयों ने रिटायरमेंट की प्लानिंग करते हुए स्वास्थ्य को प्राथमिकता में रखा, जबकि मात्र 33 प्रतिशत ने फाइनेंस को महत्वपूर्ण माना. भावनात्मक सहयोग को मात्र 8 प्रतिशत ने ही अपनी प्लानिंग की प्राथमिकता में रखा.
रिटायरमेंट के बाद स्वस्थ जीवन के लिए फिटनेस एवं वेलनेस को लेकर भारत में दिख रहा नया रुझान
IRIS 3.0 में शहरी भारतीयों के बीच स्वास्थ्य को लेकर विशेष जागरूकता देखने को मिली. 80 प्रतिशत का मानना है कि रिटायरमेंट के बाद के वर्षों में उनकी सेहत अच्छी होगी, 58 प्रतिशत ने पिछले तीन साल में प्रिवेंटिव हेल्थ चेकअप कराया है और 40 प्रतिशत नियमित तौर पर सालाना हेल्थ चेकअप कराते हैं. वर्तमान समय में बीमारी के बाद इलाज के बजाय क्यूरेटिव एवं वेलनेस के विकल्प अपनाने वालों की संख्या बढ़ी है. 10 में से 3 से ज्यादा भारतीय अपनी सेहत को सही रखने के लिए सेल्फ-केयर को अपना रहे हैं. 10 में से 2 भारतीय एप, वियरेबल्स और ऑनलाइन कंसल्टेशन समेत विभिन्न टेक्नोलॉजी के माध्यम से वेलनेस पर जोर दे रहे हैं.
क्या भारत रिटायरमेंट के लिए वित्तीय रूप से तैयार है?
IRIS 3.0 में सामने आया कि करीब 3 में से 1 शहरी भारतीय इस बात को लेकर चिंतित है कि उनकी जमापूंजी रिटायरमेंट के पहले पांच साल में ही खत्म हो जाएगी. इतनी ही चिंताजनक बात यह है कि 5 में से 2 लोगों ने अपने रिटायरमेंट के लिए निवेश की शुरुआत ही नहीं की है. बड़ी संख्या में लोगों का मानना है कि उनके पास पर्याप्त पारिवारिक संपत्ति है और/या उनके बच्चे उनका ध्यान रखेंगे. यह सोच लोगों को रिटायरमेंट की प्लानिंग से रोकती है. असल में 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के 10 में से 9 प्रतिभागियों ने इस बात पर अफसोस जताया कि उन्होंने रिटायरमेंट के बाद के जीवन के लिए सही समय पर बचत करने की शुरुआत नहीं की. हालांकि अच्छी बात यह है कि 2 में से 1 शहरी भारतीय ने अपने करियर के शुरुआत में ही लॉन्ग-टर्म सेविंग्स प्लान को प्राथमिकता में रखने की बात का समर्थन किया. साथ ही, बड़ी संख्या में (38 प्रतिशत) प्रतिभागियों का मानना है कि लोगों को 35 साल की उम्र से पहले ही रिटायरमेंट की प्लानिंग शुरू कर देनी चाहिए.
रिटायरमेंट की जरूरतों के लिए निवेश प्राथमिकता के मामले में लाइफ इंश्योरेंस के प्रोडक्ट सबसे आगे हैं. 95 प्रतिशत लोग इनके बारे में जागरूक हैं और 75 प्रतिशत ने इन्हें अपनाया हुआ है. साथ ही, IRIS 3.0 से सामने आया कि 64 प्रतिशत शहरी भारतीय राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के बारे में जानते हैं, लेकिन मात्र 16 प्रतिशत ने ही इसमें निवेश किया है.
रिटायरमेंट के लिए भावनात्मक रूप से कितना तैयार है भारत?
भले ही एकल परिवार का चलन (53 प्रतिशत) बना हुआ है, लेकिन बात रिटायरमेंट प्लानिंग की हो, तो परिवार पर निर्भरता बहुत ज्यादा है. सर्वे के मुताबिक, ज्यादातर प्रतिभागियों ने रिटायरमेंट के बाद बच्चों के साथ रहने की उम्मीद जताई, जो उस दौरान भावनात्मक निर्भरता के महत्व को दिखाता है.
अन्य निष्कर्ष
- सर्वे में पहली बार शामिल हुए, मिलेनियल्स अन्य आयु वर्ग के लोगों की तुलना में रिटायरमेंट के लिए ज्यादा तैयार दिखे- 48 अंक के रिटायरमेंट इंडेक्स के साथ रिटायरमेंट के बाद की तैयारी को लेकर मिलेनियल्स सबसे आगे हैं. वित्तीय उत्पादों को लेकर जागरूकता के मामले में भी उन्हें 54 अंक मिले. इनमें दो तिहाई से ज्यादा प्रतिभागी अपनी वर्तमान बचत/निवेश से संतुष्ट दिखे, जो अन्य आयु वर्ग के लोगों की तुलना में बहुत ज्यादा है.
- रिटायरमेंट के बाद की तैयारी के मामले में महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर कम हुआ- IRIS 3.0 में सामने आया कि रिटायरमेंट के बाद की तैयारियों को लेकर शहरी महिलाएं अब पुरुषों के बराबर ही हैं. उल्लेखनीय रूप से 52 प्रतिशत महिलाएं रिटायरमेंट प्लानिंग को सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय प्राथमिकता मानती हैं, जबकि 48 प्रतिशत पुरुष ऐसा मानते हैं. इसी तरह 66 प्रतिशत महिलाओं को उम्मीद है कि रिटायरमेंट के बाद का उनका जीवन पूरी तरह सुरक्षित है, जबकि 60 प्रतिशत पुरुष ऐसा मानते हैं. महिलाओं में यह सकारात्मक परिदृश्य रिटायरमेंट प्लानिंग के महत्व को लेकर बढ़ती जागरूकता को दिखाता है.
- पूर्वी भारत में रिटायरमेंट को लेकर ज्यादा तैयार हैं लोग- 53 के फाइनेंशियल प्रिपेयर्डनेस इंडेक्स के साथ पूर्वी भारत अन्य सभी क्षेत्रों की तुलना में रिटायरमेंट के लिए ज्यादा तैयार है. इस मजबूत वित्तीय तैयारी की झलक पूर्वी भारत के हेल्थ इंडेक्स में भी दिखती है, जिसमें इस क्षेत्र को 50 अंक मिले हैं. इस आधार पर पूर्वी भारत 52 के रिटायरमेंट इंडेक्स के साथ अन्य सभी जोन की तुलना में रिटायरमेंट के लिए ज्यादा तैयार है. इसके ठीक विपरीत, उत्तर भारत का हेल्थ इंडेक्स मात्र 40 है, जो अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम है और इस क्षेत्र में दृढ़ प्रयासों की जरूरत है. दक्षिण भारत का इमोशनल इंडेक्स सबसे ज्यादा 61 है, जो इस क्षेत्र में परिवार एवं समाज से मिलने वाले मजबूत भावनात्मक सहयोग को दिखाता है.
- रिटायरमेंट की वित्तीय तैयारी के मामले में टियर 1 कस्बों से आगे निकले टियर 2 कस्बे- रिटायरमेंट की तैयारियों पर बढ़ते फोकस के दम पर टियर 2 कस्बों का फाइनेंशियल प्रिपेयर्डनेस इंडेक्स 50 अंक है, जो टियर 1 कस्बों के 49 अंक से ज्यादा है. रिटायरमेंट इंडेक्स के मामले में जहां मेट्रो शहर 48 अंक के साथ सबसे आगे हैं, वहीं 45 अंक के साथ टियर 1 और 2 कस्बे भी उनसे ज्यादा दूर नहीं हैं.