Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

हादसे में हाथ खोए हौसला नहीं: ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ्त में पढ़ाकर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं अहमदाबाद के बाबू भाई परमार

महज नौ वर्ष की उम्र में बाबू भाई ने अपने दोनों हाथ खो दिए थे, लेकिन पढ़ने और पढ़ाने के जुनून ने पहले स्वयं को शिक्षित किया और अब गरीब और ज़रूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का काम कर रहे हैं।

हादसे में हाथ खोए हौसला नहीं: ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ्त में पढ़ाकर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं अहमदाबाद के बाबू भाई परमार

Tuesday March 15, 2022 , 4 min Read

आपने तो सुना ही होगा, "मंजिल उन्हीं को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों में उड़ान होती है।" तो कुछ ऐसे ही बुलंद हौसले हैं अहमदाबाद की गलियों में गरीब बच्चों को शिक्षित करने के काम में लगे बाबू भाई परमार के।

आपको बता दें कि महज 9 वर्ष की उम्र में बाबू भाई की ने अपने दोनों हाथ खो दिए थे, लेकिन पढ़ने और पढ़ाने के जुनून के चलते पहले उन्होंने स्वयं को शिक्षित किया और अब आज की तारीख में गरीब तबके के ज़रूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का काम कर रहे हैं।

मुंह में पेंसिल दबाकर लिखने का करते रहे अभ्यास

गुजरात राज्य में अहमदाबाद शहर के किनारे बसे एक गांव में बाबू भाई का जन्म हुआ। उनके पिता खेतों में काम करके परिवार का गुजरा करते थे, जिस कारण बाबू भाई ने बचपन से ही गरीबी को बेहद नजदीक से देखा था। एक दिन खेतों में पिता के साथ काम करते वक्त बिजली के नंगे तार छू जाने के बाद उन्होंने अपने दोनों हाथ खो दिए।

बाबू भाई परमार

बाबू भाई परमार

इस हादसे के बाद वह गांव के सरकारी स्कूल में जाने तो लगे थे लेकिन कुछ लिख पढ़ नहीं पाते थे। बाबू भाई ने अपने जीवन की बहुत सारे साल ऐसे ही गुजारे। धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था और यह बात उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। अब तक बाबू भाई को अहसास हो चुका था कि अगर यूं ही बैठा रहा तो जिंदगी काफी कठिन हो जाएगी।

मीडिया से बात करते हुए बाबू भाई कहते हैं, "दोनों हाथ गंवाने के बाद, मैंने जान लिया था कि अगर पढूंगा नहीं तो एक इज्जत भरी जिंदगी नहीं जी पाऊंगा। इसलिए मैंने मुँह में पेन्सिल रखकर लिखना शुरू किया और धीरे धीरे मुझे इसी तरह लिखने की आदत हो गई।"

पढ़ाई के प्रति बाबू भाई की दिलचस्पी देखकर, पिता ने बाबू भाई का दाखिला शहर के एक दिव्यांग स्कूल में करवा दिया।

कड़ी मेहनत कर पूरा किया टीचर ट्रेनिंग का कोर्स

बाबू भाई ने कड़ी मेहनत व लगन के दम पर पहले दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की और फिर बाद में दो साल का टीचर ट्रेनिंग कोर्स भी किया। वह हमेशा से एक शिक्षक बनना चाहते थे।

टीचर की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद, उन्होंने अहमदाबाद में रहकर ही कुछ बच्चों को ट्यूशन देना शुरु किया। साल 2003 में उनकी शादी हुई और वह अहमदाबाद में ही रहने लगे। घर पर कुछ बच्चों को पढ़ाकर आमदनी नहीं हो रही थी, जिस कारण उनकी पत्नी ने भी काम करना शुरु कर दिया।

लगन देख लोगों का मिला साथ

बाबू भाई अपने घर से निकलकर बाहर कोचिंग खोलना चाहते थे, लेकिन पैसे की कमी के कारण वह कोचिंग नहीं खोल पा रहे थे। तभी एक दिन उनकी मुलाकात समाजसेवी अमरीश ओझा से हुई। उन्होंने अमरीश से अपनी इच्छा बताई।

वह कहते हैं, “ओझा ने एक दिन मुझे बुलाकर पूछा कि भाई तुम क्या काम करते हो?"

बाबू भाई ने उन्हें बताया, “मैं एक शिक्षक हूँ, लेकिन ट्यूशन क्लास के लिए जगह नहीं होने के कारण काम ठीक तरह से नहीं हो रहा है।”

बाबू भाई परमार

बाबू भाई परमार

इस तरह मिला गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम

अहमदाबाद की एक अन्य समाजसेवी स्वीटी भल्ला सालों से गरीब बच्चों के लिए काम कर रही थीं। उनका भी सपना था कि गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए कुछ काम करें। वह काम के चलते समय निकालकर बच्चों को पढ़ाने नहीं जा सकती थीं। इसलिए उन्होंने किसी को यह जिम्मेदारी देने का विचार बनाया, जिसके लिए वह पैसे देने को भी तैयार थीं।

फिर अहमदाबाद लायंस क्लब के माध्यम से स्वीटी को बाबू भाई के बारे में जानकारी मिली। बाबू भाई पहले ही गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे थे। इसलिए वह बिना समय गवाएं इस काम के लिए तैयार भी हो गए।

यदि इन दिनों कि बात करें, तो बाबू भाई लगभग 50 बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रहे हैं। इसके लिए स्वीटी उन्हें हर महीने छह हजार रुपये की आर्थिक मदद भी देती हैं।


Edited by Ranjana Tripathi