इंजीनियरिंग से रिटायरमेंट किसानी में एंट्री, अब ग्रामीणों को शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक के प्रति कर रहे हैं जागरूक
डालमिया ग्रुप में कार्य करते हुए अपने लंबे समय के कार्यकाल के दौरान डॉ. जय नारायण तिवारी सीईओ पद से सेवनिवृत हुए। इसके बाद उनके पास कई बड़े-बड़े संस्थानों में नौकरी करने के मौके मौजूद थे लेकिन उन्होंने खेती में अपनी दिलचस्पी दिखाई।
‘न पूछो की मेरी मंजिल कहा है अभी तो सफर का इरादा किया है, न हारूँगा हौसला उम्र भर ये मैंने किसी नहीं खुद से वादा किया है।” कुछ ऐसे ही बुलंद हौसले हैं उत्तर प्रदेश के रहने वाले डॉ. जी नारायण तिवारी के।
डॉ. तिवारी ने यूपी के एक छोटे से गाँव से निकलकर इंजीनियरिंग के बाद लाखों रुपये महीने वाली नौकरी पाई, फिर रिटायरमेंट के बाद वापस गाँव आकार खेती-किसानी में जुट गए। इतनी अधिक उम्र हो जाने के बावजूद भी इनके हौसले और मेहनत को देखकर पूरा गाँव और आसपास के लोग हैरान हैं।
बीएचयू से की थी इंजीनियरिंग
साल 1950 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक छोटे से गाँव में जन्में डॉ. तिवारी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी स्कूल से पूरी की। वह शुरू से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। बेसिक एजुकेशन पूरी करने के बाद उन्होंने वर्ष 1971 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से सिरामिक इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की। उन दिनों अपने गाँव से इंजीनियरिंग करने वाले वो पहले इंसान थे। वर्ष 2016 तक उन्होंने ओडिशा में डालमिया ग्रूप के रिफैक्ट्री डिवीजन में काम किया।
विरासत में खेती करने का हुनर
डॉ. तिवारी के पिता रेलवे में स्टेशन मास्टर थे। नौकरी करने के साथ-साथ वह नियमित तौर पर अपने खेत खलिहानों में जाते रहते थे। उनके साथ ही जय नारायण तिवारी जी को भी खेतों में आने-जाने और किसानी के तौर तरीकों को सीखने का अच्छा अनुभव प्राप्त हुआ। हालांकि, उन्होंने न केवल किसानी से होने वाले लाभ को ही समझा बल्कि परेशानियों और नुकसान की भी बेहद ही बारीकी से समझ पैदा की।
सीईओ से पद हुए थे रिटायर, अपनाया किसानी का रास्ता
डालमिया ग्रुप में कार्य करते हुए अपने लंबे समय के कार्यकाल के दौरान डॉ. तिवारी सीईओ पद से सेवनिवृत हुए। इसके बाद उनके पास कई बड़े-बड़े संस्थानों में नौकरी करने के मौके मौजूद थे लेकिन उन्होंने खेती में अपनी दिलचस्पी दिखाई।
किसानों को सिखाया तकनीक का इस्तेमाल
एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से निकले इस इंजीनियर के मन में सदैव कृषि और किसानों की स्थिति में सुधार करने की इच्छा रही थी। जब उन्हें मौका मिला तो उन्होंने सबसे पहले अपनी 35 एकड़ पैतृक जमीन पर नए-नए कृषि यंत्रों व तकनीक के इस्तेमाल करके खेती को लाभदायक बनाया। उन्होंने सिंचाई के काम को काफी आसान बनाया। अपने इलाके में सबसे पहले उन्होंने सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर का इस्तेमाल करना शुरु किया था।
एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि, “खेतों की सिंचाई के लिए साधारण तौर पर तीन तरीके होते हैं – पहला नहर/तालाब से अपने खेतों तक पानी पहुंचाना। इसके अलावा दूसरा बोरिंग द्वारा पंपिंग से खेतों में पानी डालना और तीसरा उसी बोरिंग के पानी को स्प्रिंकलर का इस्तेमाल करते हुए सिंचाई करना।”
डॉ. तिवारी के मुताबिक पहले दो माध्यमों से सिंचाई करने के तरीकों में फसल की जरूरत ज्यादा पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पानी का बड़ी मात्रा में नुकसान होता है। जबकि स्प्रिंकलर मेथेड़ से सिंचाई करने पर जितनी जरूरत होती है, उतना ही पानी सोखा जाता है। इस तरह लगभग 40 फीसदी पानी की बचत होती है।
पत्नी ने दिया कंधे से कंधा मिलाकर पूरा साथ
डॉ तिवारी ने गाँव और आसपास के इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा को बेहतर बनाने के लिए बेटियों के नाम पर स्कूल व कॉलेज व आपातकालीन चिकित्सा सेवा की सुविधा उपलब्ध कराई है। इसके अलावा उनकी पत्नी कुमुद भी आसपास की महिलाओं को जागरूक बनाकर घर पर रहते हुए आचार, पापड़ व अन्य छोटे-मोटे कुटीर उद्योगों की शुरुआत करने में उनकी मदद करती हैं।
इसके लिए वह महिलाओं को पहले ट्रेनिंग भी देती हैं। वहीं, डॉ जय नारायण तिवारी गाँव के किसानों को उन्नत बीजों का इस्तेमाल करना, खेती के नए-नए आयामों की जानकारी साझा करना और तकनीक का प्रयोग करके फसलों को फायदेमंद बनाने की जानकारी दे रहे हैं। उन्हें देखकर आसपास के अन्य किसानों को भी प्रेरणा मिल रही है।
Edited by Ranjana Tripathi