गन्ने की जैविक खेती करके उत्तराखंड के इस जिले को नई पहचान दिला रहे हैं ये शख्स, अन्य किसानों को भी कर रहे प्रेरित
नरेंद्र मेहरा इनदिनों खेतों में गन्ने की जैविक फसल का उत्पादन कर रहे हैं जिससे उन्हें पारंपरिक खेती की तुलना में काफी अधिक फायदा देखने को मिल रहा है।
भारत हमेशा से एक कृषि प्रधान देश रहा है। हमारे देश में खाद्यान उत्पादन काफी लंबे समय से होता चला आ रहा है। हरित क्रांति के बाद फसलों के उत्पादन में कई सारे बदलाव होते नजर आए है और खेती करने के तरीकों में भी बड़ा बदलाव आया है।
वर्षों से केमिकल युक्त खेती करने वाले किसान अब अपनी जमीन की उर्वरक क्षमता को बढ़ाने के प्रयास में जूटे हुए हैं। ऐसा करने से उन्हें दोहरा लाभ मिल रहा है। पहला जहां एक ओर उनकी फसल की लागत में कमी आती है। वहीं, दूसरी ओर उत्पादन अधिक होता है। कुछ ऐसे ही नए तरीकों का इस्तेमाल करके खेती करने में जूटे हुए हैं उत्तराखंड के नरेंद्र मेहरा।
जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं किसान
नरेंद्र मेहरा इन दिनों खेतों में गन्ने की जैविक फसल का उत्पादन कर रहे हैं जिससे उन्हें पारंपरिक खेती की तुलना में काफी अधिक फायदा देखने को मिल रहा है। लंबे समय से खेती के कामकाज से जुड़े मेहरा को यह एक नई उम्मीद के तौर पर नजर आ रही है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि वह जैविक खेती करने वाले पहले किसान हैं। इससे पहले भी कई अन्य किसानों ने इस ओर अपना रुख किया लेकिन, पिथौरागढ़ जैसे इलाकों में यह काम करके उन्होंने किसानों में एक नई अलख जला दी है।
गन्ना उत्पादन के लिए जाना जा रहा है ये जिला
वैसे तो उत्तराखंड राज्य के कई जिलों जैसे उधमसिंह, हरिद्वार, नैनीताल आदि में गन्ने की अच्छी खेती की जाती है। लेकिन, पिथौरागढ़ डिस्ट्रिक्ट भी गन्ना उत्पादन में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है बावजूद इसके इस बात को कम लोग ही जानते होंगे। लेकिन अब इस जिले को एक नई पहचान मिल रही है।
गन्ना विभाग की मदद से शुरू किया ये सराहनीय काम
मूलरूप से नैनीताल जिले के हल्द्वानी ब्लॉक जिले में आने वाले मल्लादेवला गाँव के रहने वाले नरेंद्र मेहरा नाम के इस किसान को जब पिथौरागढ़ की खेती के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने गन्ना विभाग की मदद लेकर नए सिरे से खेती करने की शुरुआत की।
एक साक्षात्कार में वह बताते हैं, “जब मुझे पिथौरागढ़ में हो रही गन्ने की पारंपरिक खेती के बारे में पता चला तो मैंने कई किसानों से पता करने की कोशिश की यहां पर किसान कैसे खेती कर रहे हैं। तब मैंने गन्ना विकास विभाग के अधिकारियों को गन्ने की इस तरह की खेती के बारे में बताया।"
क्यों महत्वपूर्ण है इस जिले गन्ने की खेती होना
किसी भी फसल की अच्छी पैदावार के लिए सबसे जरूरी है उस इलाके की मिट्टी। आपको बता दें कि पिथौरागढ़ भारत के उत्तराखंड राज्य के पूर्वी जिलों में से एक है। या यूं कहें कि यह भारत का पूर्वी हिमालायी जिला है।
यह इलाका चारों से प्राकृतिक पहाड़ों, बर्फ की चोटियों, घाटियों के अलावा अल्पाइन घास के मैदानों, जंगलों व झरनों के साथ- साथ बारह महीने बहने वाली नदियों और ग्लेशियरों से घिरा हुआ है। यह समुद्र तल से 1645 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जिला है। जिसका अधिकांश ऊबड़-खाबड़ है। यह इलाका करीब 2,788 वर्ग मील में फैला हुआ है।
गन्ने के फसल के लिए ऐसी जमीन की आवश्यकता होती है जहां लंबे समय तक गर्मी और पर्याप्त धूप आती हो। इसके अलावा बारिश भी जरूरत होती है। जबकि पिथौरागढ़ एक पहाड़ी इलाका है बावजूद इसके यहाँ गन्ने की फसल का सफल उत्पादन किया जा रहा है।
Edited by Ranjana Tripathi