श्रीकांत बोल्ला: न देख सकने के चलते बार-बार ठुकराया गया, आज इतने कामयाब बिजनेसमैन कि बन रही बायोपिक
श्रीकांत बोल्ला को कभी IIT ने रिजेक्ट कर दिया था लेकिन फिर उन्हें अमेरिका में MIT में एडमिशन मिला.
हाल ही में खबर आई थी कि बॉलीवुड अभिनेता राजकुमार राव की आगामी फिल्म ‘श्री’ की शूटिंग शुरू हो गई है. यह एक बायोपिक है और दृष्टिबाधित (Visually Impaired) उद्योगपति श्रीकांत बोल्ला (Srikanth Bolla) की जिंदगी पर बेस्ड है. श्रीकांत बोल्ला को कभी आईआईटी ने रिजेक्ट कर दिया था लेकिन फिर उन्हें अमेरिका में MIT में एडमिशन मिला. अपनी दृष्टिबाधिता को धता बताकर वह एक सफल एंटरप्रेन्योर बने. इतने सफल कि उनकी Bollant Industries में कभी रतन टाटा ने भी निवेश किया था.
श्रीकांत का जन्म 1991 में आंध्र प्रदेश के शहर मछलीपट्टनम के सीतारामपुरम में हुआ. वह जन्म से ही दृष्टिबाधित हैं. उनका परिवार मुख्य रूप से खेती पर निर्भर था. जब श्रीकांत का जन्म हुआ, तो पड़ोसियों ने उनके माता-पिता को सुझाव दिया कि वे बच्चे का गला दबा दें. लोगों का कहना था कि श्रीकांत अगर जिंदा रहे तो जीवन भर का दर्द रहेगा, वह एक बेकार बच्चे हैं. इससे तो यही अच्छा है कि श्रीकांत का अभी गला दबा दिया जाए.
लेकिन उनके माता-पिता ने ऐसा नहीं किया और श्रीकांत को बड़े ही लाड़-प्यार से पाला. आगे चलकर श्रीकांत ने जो करके दिखाया, वह किसी का भी मुंह बंद करने के लिए काफी है. श्रीकांत इस विश्वास के साथ जी रहे हैं कि 'अगर दुनिया मुझे देखती है और कहती है कि श्रीकांत, तुम कुछ नहीं कर सकते, तो मैं दुनिया को देखता हूं और कहता हूं कि मैं कुछ भी कर सकता हूं.'
स्कूल में बिठा दिया जाता था आखिरी बेंच पर
जब श्रीकांत बड़े हो रहे थे, तो उनके पिता उन्हें खेतों में ले जाते थे, लेकिन श्रीकांत की इससे कोई मदद नहीं हो सकती थी न ही वह कोई मदद कर पाते थे. तब पिता ने फैसला किया कि श्रीकांत भी पढ़ाई कर सकते हैं. श्रीकांत के गांव का सबसे नजदीकी स्कूल पांच किलोमीटर दूर था. वह वहां तक पैदल जाते थे. दो साल तक किसी ने भी उनकी उपस्थिति को स्वीकार नहीं किया. स्कूल में उन्हें आखिरी बेंच पर बिठा दिया जाता. श्रीकांत पीटी क्लास में शामिल नहीं हो सकते थे.
जब उनके पिता को पता चला कि बच्चा कुछ भी नहीं सीख रहा है, तो उन्होंने श्रीकांत को हैदराबाद के एक स्पेशल नीड्स स्कूल में भर्ती कराया. वहां श्रीकांत का अकेलापन दूर हुआ और उनकी प्रतिभा सामने आई. उन्होंने न केवल शतरंज और क्रिकेट खेलना सीखा बल्कि उनमें उत्कृष्ट प्रदर्शन भी किया. उन्होंने लीड इंडिया प्रोजेक्ट में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम करने का अवसर भी प्राप्त किया. लीड इंडिया 2020: द सेकेंड नेशनल यूथ मूवमेंट को कलाम ने ही शुरू किया था.
जब अपनी मर्जी के सब्जेक्ट के लिए किया केस
लेकिन यह सब काम नहीं आया क्योंकि श्रीकांत को ग्यारहवीं कक्षा में उनकी दृष्टिबाधिता के कारण विज्ञान वर्ग में प्रवेश नहीं दिया गया. उन्होंने 90 प्रतिशत से अधिक अंकों के साथ आंध्र प्रदेश की क्लास 10 राज्य बोर्ड परीक्षा पास की थी, लेकिन बोर्ड ने कहा कि वह उसके बाद केवल आर्ट्स स्ट्रीम ले सकते हैं. लेकिन श्रीकांत ने हार नहीं मानी, उन्होंने इसके खिलाफ लड़ने का फैसला किया. श्रीकांत ने सरकार पर मुकदमा दायर किया और छह महीने तक लड़ाई लड़ी. अंत में एक सरकारी आदेश आया, जिसमें कहा गया कि श्रीकांत विज्ञान विषय ले सकता हैं लेकिन अपने जोखिम पर.
इसके बाद श्रीकांत ने सभी टेक्स्ट बुक्स को ऑडियो बुक्स में तब्दील कराया और कोर्स कंप्लीट करने के लिए दिन—रात मेहनत की. नतीजा, उन्होंने 12वीं के बोर्ड एग्जाम्स में 98 प्रतिशत अंक हासिल किए.
जब IIT ने ठुकराया
12वीं के बाद श्रीकांत ग्रेजुएशन करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने IIT, BITS पिलानी और अन्य टॉप इंजीनियरिंग कॉलेजेस के लिए अप्लाई किया. लेकिन उन्हें कॉम्पिटीटिव एग्जाम के लिए हॉल टिकट भी नहीं मिला. दृष्टिबाधिता के कारण श्रीकांत को कॉम्पिटीटिव एग्जाम में बैठने से मना कर दिया गया. तब श्रीकांत ने भी आईआईटी को ठुकराने का फैसला कर लिया.
इसके बाद उन्होंने अपने जैसों के लिए बेस्ट इंजीनियरिंग प्रोग्राम सर्च करना शुरू किया. श्रीकांत ने अमेरिका के कॉलेजेस के लिए अप्लाई किया और एमआईटी, स्टैनफोर्ड, बार्कले व Carnegie Mellon में एडमिशन के लिए क्वालिफाई कर लिया. उन्होंने एमआईटी को चुना और स्कॉलरशिप के साथ एडमिशन मिल गया. वहां वह पहले अंतरराष्ट्रीय विजुअली इंपेयर्ड छात्र थे. एमआईटी से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद श्रीकांत के सामने सवाल खड़ा हो गया कि अब क्या? वह वहीं खड़े थे, जहां से उन्होंने शुरुआत की थी. श्रीकांत को अमेरिका में कॉर्पोरेट अवसर मिले, लेकिन वे भारत में कुछ करना चाहते थे.
करियर की शुरुआत
भारत लौटने के बाद श्रीकांत साल 2011 में मल्टीपल डिसेबिलिटीज वाले बच्चों के लिए समन्वय केंद्र के को—फाउंडर बने. उसमें उन्होंने एक ब्रेल प्रिंटिंग प्रेस शुरू की. इसे मल्टीपल डिसेबिलिटीज वाले स्टूडेंट्स को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर जीवन के लिए शैक्षिक, व्यावसायिक, वित्तीय, पुनर्वास सेवाएं प्रदान करने के मकसद से शुरू किया गया. लेकिन दिव्यांग लोगों के रोजगार का सवाल जस का तस था.
2012 में शुरू की Bollant Industries
2012 में, श्रीकांत ने हैदराबाद बेस्ड Bollant Industries की शुरुआत की. यह सुपारी के पौधे से बनने वाले उत्पादों का निर्माण करती है और सैकड़ों दिव्यांग व अनपढ़ लोगों को रोजगार प्रदान करती है. Bollant Industries, म्यूनिसिपल वेस्ट या सॉइल्ड पेपर से इको—फ्रेंडली रिसाइकिल्ड क्राफ्ट पेपर, रिसाइकिल्ड पेपर से पैकेजिंग प्रॉडक्ट्स, प्राकृतिक पत्तियों व रिसाइकिल्ड पेपर से डिस्पोजेबल प्रॉडक्ट्स और वेस्ट प्लास्टिक को रिसाइकिल कर उपयोगी सामान बनाती है. श्रीकांत को एंटरप्रेन्योर बनने में सपोर्ट किया, को—फाउंडर स्वर्णलता ने. वह स्कूल में उनकी स्पेशल नीड्स टीचर थीं. स्वर्णलता ने श्रीकांत को मेंटोर और गाइड किया. वह Bollant में सभी दिव्यांग कर्मचारियों को ट्रेन करती हैं.
कंपनी को साल 2016 में रतन टाटा से फंडिंग मिली. Bollant की वर्तमान में 5 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हैं. श्रीकांत सितंबर 2016 में स्थापित सर्ज इम्पैक्ट फाउंडेशन के निदेशक भी हैं. संगठन का उद्देश्य भारत में व्यक्तियों और संस्थानों को 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम बनाना है. श्रीकांत को देश व विदेश में कई अवॉर्ड भी मिले हैं. अप्रैल 2017 में उन्हें फोर्ब्स मैगजीन ने पूरे एशिया के 30 अंडर 30 लिस्ट में जगह दी थी.