भारत आने वाला पहला विदेशी कॉस्मैटिक ब्रांड ‘रेवलॉन’ हुआ बैंकरप्ट
दो अमेरिकी भाइयों ने एक केमिस्ट दोस्त के साथ मिलकर 90 साल पहले अपनी जमा पूंजी लगाकर रेवलॉन की शुरुआत की थी. एक समय कॉस्मैटिक्स की दुनिया में राज करने वाली यह कंपनी अब दिवालिया होने की कगार पर है.
भारत आने वाली पहली विदेशी कॉस्मैटिक ब्रांड कंपनी रेवलॉन अब बंद होने जा रही है. अमेरिका की इस मशहूर सौंदर्य उत्पाद बनाने वाली कंपनी रेवलॉन इंक (
) अब दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है.रेवलॉन ने बढ़ते कर्जों, कम हो रहे बाजार और प्रतिस्पर्द्धा में टिक न पाने की वजह से चैप्टर 11 बैंकरप्सी (bankruptcy) के लिए आवेदन किया है. कंपनी के शेयरों में 53 फीसदी गिरावट आई है. एक दिन के भीतर यह कंपनी के शेयरों में आई अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. शुक्रवार को कंपनी का शेयर 2.05 डॉलर पर बंद हुआ.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक बीते मार्च तक कंपनी पर 3.31 अरब डॉलर का कर्ज था. सबसे पहले Reorg Research ने यह न्यूज ब्रेक की थी कि रेवलॉन बैंकरप्सी के लिए आवेदन करने की योजना बना रही है. रेवलॉन के 15 से ज्यादा ब्रांड हैं. Elizabeth Arden और Elizabeth Taylor रेवलॉन के ब्रांड्स में शामिल प्रमुख नाम हैं. इसका बिजनेस दुनिया के 150 देशों में फैला हुआ है.
छोटे ब्रांड्स का बढ़ता बाजार और कठिन प्रतिस्पर्द्धा
अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित इस कंपनी का मालिकाना हक अरबपति रॉन पेरेलमन की कंपनी मेकएंड्रूज और फोर्ब्स के पास है. गुजरे कुछ सालों में बाजार में ढेर सारे नए कॉस्मैटिक ब्रांड्स के आने की वजह से प्रतिस्पर्द्धा काफी बढ़ गई थी. यहां तक कि कंपनी को छोटे-छोटे ब्रांड्स से भी कॉम्पटीशन करना पड़ रहा था. सोशल मीडिया के आने के बाद से इन उत्पादों का एक नए तरह का बाजार भी बना है, जिसमें कई छोटी कंपनियां सीधे सोशल मीडिया के जरिए अपने प्रोडक्ट
बेच रही हैं.
यह थोड़ा चकित करने वाली बात है, लेकिन सच यही है कि बाजार का डायनैमिक्स इतना बदल चुका है कि रेवलॉन जैसी बड़ी इंटरनेशनल कंपनी भी इस नए बढ़ते और बदलते हुए बाजार के बीच प्रासंगिक नहीं रह पाई और घाटे और कर्ज में डूबती चली गई.
लाखों भारतीयों का पहला विदेशी कॉस्मैटिक ब्रांड
ग्लोबलाइजेशन की दस्तक के बाद जो पहला इंटरनेशनल कॉस्मैटिक ब्रांड भारत आया, उसका नाम था- रेवलॉन. इसके पहले 1952 में शुरू हुआ लैक्मे सौंदर्य प्रसाधनों के लिए महिलाओं के बीच सबसे पॉपुलर नाम हुआ करता था. लेकिन रेवलॉन के रूप में पहली बार महिलाएं ऐसे ब्रांड की लिप्सटिक, नेशपॉलिश और दूसरे कॉस्मैटिक्स इस्तेमाल कर रही थीं, जिस पर “विदेशी” होने का ठप्पा लगा था.
रेवलॉन की लिप्सटिक लगाने में वही अदा, ठसक और क्लास था, जो आज की पीढ़ी मैक या शैंबोर (Chambor Geneva) जैसे ब्रांड्स के लिए महसूस करती है. एक पूरी पीढ़ी गुजरी चुकी है, रेवलॉन जिनके जीवन का पहला विदेशी कॉस्मैटिक ब्रांड था.
यूं तो आज बाजार में सैकड़ों देशी-विदेशी कॉस्मैटिक ब्रांड मौजूद हैं, लेकिन रेवलॉन के साथ जुड़ी यादें कुछ खास है. शायद वैसी ही यादें, जो हर पहली चीज से जुड़ी होती हैं.
रेवलॉन की शुरुआत
रेवलॉन की शुरुआत 1 मार्च, 1932 को अमेरिका के न्यूयॉर्क में हुई थी. यह ग्रेट डिप्रेशन का समय था. दो ज्यूइश अमेरिकन भाइयों चार्ल्स रेवसन और जोसेफ रेवसन ने अपने केमिस्ट दोस्त चार्ल्स लेचमेन के साथ मिलकर रेवलॉन की शुरुआत की. शुरुआत उन्होंने सिर्फ एक प्रोडक्ट के साथ की थी- नेलपेंट. तीनों ने अपनी जमा पूंजी लगाई और एक नए तरह का मैन्यूफैक्चरिंग प्रॉसेस ईजाद किया. डाइज की जगह उन्होंने रंग बनाने के लिए पिगमेंट का इस्तेमाल करना शुरू किया.
रेवलॉन ने तरह-तरह के नए नेल पॉलिश के शेड बनाए. ऐसे शेड अब तक बाजार में और किसी कॉस्मैटिक ब्रांड के पास नहीं थे. शुरू-शुरू में डिपार्टमेंटल स्टोर और फार्मेसी के जरिए उन्होंने अपना प्रोडक्ट बेचना शुरू किया. छह सालों के भीतर यह कंपनी कई मिलियन डॉलर की कंपनी में तब्दील हो गई थी.
1940 में कंपनी ने एक नई मैनीक्योर लाइन के साथ-साथ लिप्सटिक बनाना भी शुरू किया. दूसरे विश्व युद्ध के समय इस कंपनी ने अमेरिकन आर्मी के लिए कई तरह के मेकअप प्रोडक्ट बनाए.
दूसर विश्व युद्ध खत्म होते-होते रेवलॉन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कॉस्मैटिक्स बनाने वाली कंपनी बन चुकी थी. 1943 में रेवलॉन ने कटलरी बनाने वाली एक कंपनी Graef & Schmidt को खरीद लिया. इसके साथ ही रेवलॉन अब मैनीक्योर के टूल्स बनाने में भी खुद सक्षम हो गई थी, जो पहले उसे दूसरी कंपनियों से लेना पड़ता था. 1985 में 2.7 अरब डॉलर में रॉन पेरेलमन ने रेवलॉन को
खरीद लिया.
एक समय कॉस्मैटिक उत्पादों की दुनिया में राज करने वाली इस कंपनी का इस तरह दीवालिया होना यह भी बताता है कि जीत और सबसी ऊंची कुर्सी पर अधिकार हमेशा नहीं रहता. चीजें लगातार बदल रही हैं. ग्लोबलाइजेशन के बाद एक बार बाजार का डायनैमिक्स सिरे से बदला था और अब इंटरनेट उस डायनैमिक्स को एक बार फिर बदल रहा है.