इंटरनेशनल कराटे चैंपियन आयशा ने लाखो लड़कियों को सिखाया सेल्फ डिफेंस
मिलें कोलकाता के स्लम एरिया से निकलकर इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाली 21 वर्षीय कराटे चैंपियन आयशा नूर से...
"कोलकाता के स्लम एरिया से निकलकर इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भारत को स्वर्ण पदक दिला चुकीं कराटे चैंपियन 21 साल की मिर्गी पीड़ित आयशा निर्भया कांड के बाद से लाखों लड़कियों को सेल्फ डिफेंस सिखा चुकी हैं। वह कराटे का विश्वस्तरीय स्कूल खोलकर भारत की एक करोड़ लड़कियों को सेल्फ डिफेंस में पारंगत करना चाहती हैं।"
कोलकाता की झुग्गियों में पली-पढ़ी 21 वर्षीय कराटे चैंपियन आयशा नूर अमेरिका तक को लोहा मान चुका है। आयशा उनके लिए मिसाल है, जो अपने बेहतर भविष्य के लिए जिंदगी के अलग-अलग मोर्चों पर कामयाबी के सपने देख रहे हैं। आयशा की सफलताएं सिद्ध करती हैं कि हिम्मत और संघर्ष का माद्दा हो तो जीवन में कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कोलकाता के स्लम एरिया में रहने वाली आयशा को मिर्गी की बीमारी भी सफलता में आड़े आने से रही। अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मेडल फतह कर चुकी इस कराटे चैंपियन का हौसला बड़े-बड़े लड़ाकों पर भारी पड़ा है।
कई तरह की खूबियों से लैस आयशा को 'हीरो ऑफ जेंडर इक्वलिटी' पुरस्कार मिल चुका है। अमेरिका में उस पर 'गर्ल्स कनेक्टेड' नाम से एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बन चुकी है। इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भारत को थाई मार्शल आर्ट में स्वर्ण पदक दिलाने वाली पहली भारतीय कराटे चैंपियन आयशा को बचपन से ही मिर्गी की बीमारी है। उसे बातचीत करने में भी मुश्किल आती है।
अब तो आयशा कराटे सीखने वाली लड़कियों की कोच बन चुकी है। वह लगभग एक दर्जन लड़कियों को इस समय कराटे में प्रशिक्षित कर रही है, जिनमें से कई उसकी लीडरशिप में इंटरनेशनल टूर्नामेंट में शिरकत कर आई हैं।
दिल्ली के निर्भया कांड के बाद से अब तक आयशा एक-दो नहीं, डेढ़ लाख से अधिक लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे चुकी है। उसका टारगेट भारत की एक करोड़ लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देना है। आयशा एक ऐसा विश्वस्तरीय ट्रेनिंग स्कूल खोलना चाहती हैं, जिसमें लड़के भी कराटे की ट्रेनिंग ले सकें।
आयशा की जिंदगी की मुश्किलें उसके मासूम बचपन से ही शुरू हो जाती हैं। वह जब चार साल की थी, अपने भाई के साथ कराटे क्लास अटेंड करने लगी। आयशा नूर के फुर्तीलेपन पर सबसे पहली नज़र कोच अली की पड़ी, जिन्होंने ने इस बच्ची के ड्राइवर पिता से मशविरे के बाद बिना फीस के फ्री में आयशा को कराटे सिखाने के लिए अपने पास बुला लिया।
यद्यपि उस वक़्त आयशा की झुग्गी बस्ती वाले किसी मुस्लिम लड़की के जूडे-कराटे सीखने को हिकारत की नजर से देखते थे। उनके लिए लड़कियां सिर्फ शादी के सामान जैसी होती हैं।
आयशा के मिर्गी से पीड़ित होने के कारण उसको कराटे सिखाना भी अली के लिए एक कठिन चुनौती था। ट्रेनिंग के दौरान मिर्गी के दौरे पड़ने से उसकी कई बार जीभ कट कई। जब बारह साल की हुई, उसके पिता का भी इंतकाल हो गया। मां लोगों के कपड़े सिलकर आयशा की तीन बहनों का परवरिश करने लगीं।
कराटे सीखकर बड़ी हो चुकी आयशा को जब पहली बार बैंकॉक के इंटरनेशनल टूर्नामेंट में अपने करतब दिखाने का मौका मिला, यात्रा खर्च के 75 हजार रुपए जुटाने में उसकी मां ने घर पर बंधी बकरी तीस हजार रुपए में बेच दी।
किसी तरह बाकी 35 हजार रुपए की मदद इधर-उधर से मिल गई। टूर्नामेंट के दौरान आयशा घायल हो गई। एक सरदारजी ने 25 हजार रुपए देकर उसका इलाज कराया, जिसे बाद में आयशा ने लौटा दिए।