डिजिटल शिक्षा के दौर में पहुंच चुका भारत, पर अभी भी दूर है 100 फीसदी साक्षरता का लक्ष्य
1947 में महिलाओं और ग्रामीण आबादी की नगण्य भागीदारी के साथ देश की साक्षरता दर केवल 12.7 फीसदी थी. जबकि राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSO) की रिपोर्ट के अनुसार साल 2017-18 में देश की साक्षरता दर बढ़कर 77.7 फीसदी हो गई है.
आज 8 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस (International Literacy Day) मनाया जा रहा है. हर साल आठ सितंबर को दुनियाभर में इसे मनाया जाता है. इसे मनाने की शुरुआत साल 1966 में हुई थी, जब यूनेस्को ने शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और दुनियाभर के लोगों का इस तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए हर साल आठ सितंबर को 'विश्व साक्षरता दिवस' मनाने का फैसला किया था. इस साल साक्षरता दिवस 2022 की थीम 'ट्रांसफॉर्मिंग लिटरेसी लर्निंग स्पेस' (Transforming Literacy Learning Spaces) है.
अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामाजिक रूप से साक्षरता के महत्व पर प्रकाश डालना है. इस दिवस के माध्यम से दुनियाभर में लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाता है, ताकि वो अपने आने वाले कल को बेहतर बना सकें.
यूनेस्को (Unesco) की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में आज भी 77 करोड़ से अधिक युवा और वयस्क पढ़ और लिख नहीं सकते हैं. यूरोप और उत्तरी अमेरिका में साक्षरता दर 97-99 प्रतिशत, दक्षिणी अमेरिका लगभग 95 प्रतिशत और पूर्वी एशिया लगभग 90 प्रतिशत है. दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका लगभग 80 प्रतिशत मंडराते हैं, जबकि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 70-75 प्रतिशत की दर्ज की गई है.
वहीं, आजादी के 76 सालों में भारत ने साक्षरता दर हासिल करने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है. 1947 में महिलाओं और ग्रामीण आबादी की नगण्य भागीदारी के साथ देश की साक्षरता दर केवल 12.7 फीसदी थी. जबकि राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSO) की रिपोर्ट के अनुसार साल 2017-18 में देश की साक्षरता दर बढ़कर 77.7 फीसदी हो गई है.
हालांकि, आज जब नई शिक्षा नीति लागू हो चुकी है और डिजिटल एजुकेशन का दायरा और मार्केट दोनों बेहद तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, तब भी भारत 100 फीसदी साक्षरता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा है. देश की बात तो दूर शिक्षा के मानकों में सबसे ऊपर रहने वाला केरल राज्य भी 100 फीसदी साक्षरता के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका है.
यही कारण है कि ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से देश में 15 वर्ष व इससे अधिक आयु वर्ग के 5 करोड़ निरक्षर लोगों को साक्षर करके साल 2030 तक शत-प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए के लिए सरकार जल्द ही ‘नव भारत साक्षरता अभियान’ शुरू करने की तैयारी कर रही है.
शिक्षा और साक्षरता में अंतर
साक्षर और शिक्षित शब्द को आम तौर पर समानार्थी रूप से उपयोग किया जाता है. हालांकि, दोनों ही शब्द अलग हैं और एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं. साक्षरता का आधार शिक्षा अर्जित करना होता है और शिक्षा का आधार ज्ञान. शिक्षा का अर्थ है किसी उपयोगी कल को सीखना जबकि साक्षरता केवल मात्र अक्षर ज्ञान है. शिक्षा एक बहुआयामी साधन है, जो मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारती है.
जब कोई व्यक्ति पढ़ने और लिखने की बेसिक जरूरतों को पूरा कर सकता है तब उसे साक्षर कहा जाता है. साक्षरता एक तथ्यात्मक जानकारी देती है ताकि वे अपना हस्ताक्षर डालने से पहले दस्तावेज़ पर पढ़ सकें, सड़क पर संकेतों का पालन करें या बाजार से प्राप्त होने वाले बदलाव की गणना करें. शिक्षा किसी को अपने पूर्वाग्रहों, अंधविश्वासों, आदि से छुटकारा पाने में मदद करती है.
1950 से जारी है निरक्षता खत्म करने का प्रयास
200 सालों के अंग्रेजी शासन के खात्मे के बाद साल 1947 में जब आजादी मिली तब उसके बाद भारत में शिक्षा के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार करने के लिए भारत ने 1950 में एक योजना आयोग की स्थापना की. उसके बाद विभिन्न योजनाएं तैयार की गईं और इन योजनाओं का प्राथमिक लक्ष्य निरक्षरता को मिटाना, सार्वभौमिक प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करना और दूसरों के बीच वोकेशनल और स्किल ट्रेनिंग प्रोग्राम स्थापित करना था.
इसके 18 सालों बाद साल 1968 में देश की पहली एजुकेशन पॉलिसी घोषित हुई थी. इसके 20 सालों बाद 1986 में दूसरी एजुकेशन पॉलिसी आई. 1986 की शिक्षा नीति 1968 की शिक्षा नीति में ही कुछ बदलाव करके घोषित की गई थी. वहीं, अब इसके 52 सालों बाद देश में एक नई एजुकेशन पॉलिसी लागू हुई है.
75 सालों में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति
साल 1950-51 में क्लास 1 से क्लास 8 तक हर लड़के पर 0.41 लड़कियां थीं. अब हर लड़के पर 1.02 लड़कियां हैं. भारत में साक्षरता दर 1951 में 18.3 फीसदी से बढ़कर 77.7 फीसदी (2017–18) हो गई है.
1950-51 में देश में 578 कॉलेजे थे जिनकी संख्या अब बढ़कर 42,343 हो गई है. साल 1951 में 28 की तुलना में अब मेडिकल कॉलेजों की संख्या 612 हो गई है. साल 1951 में देश में केवल एक आईआईटी था, उनकी संख्या अब बढ़कर 28 हो गई है. 1950-51 में केवल 27 विश्वविद्यालयों की तुलना में 2019-20 में उनकी संख्या बढ़कर 1043 पहुंच गई है.
देश में बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए राइट टू एजुकेशन एक्ट (RTE Act) 2009 लाया गया था. यह 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त शिक्षा की गारंटी देता है, भारत की संसद ने 4 अगस्त 2009 को इस एक्ट को अधिनियमित किया और यह 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ.
पारपंरिक शिक्षा से डिजिटल शिक्षा की ओर बढ़ता देश
कोविड-19 महामारी की शुरुआत से बहुत पहले ही स्टूडेंट्स दूसरों के साथ जुड़ने, कम्यूनिटी बिल्ड करने, रिसर्च करने, कंज्यूम करने और मीडिया बनाने के लिए अकेडमिक और सामाजिक रूप से डिजिटल संसाधनों का उपयोग कर रहे थे. महामारी के दौरान डिस्टेंस एजुकेशन की आवश्यकता ने सीखने और संचार दोनों के लिए डिजिटल संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता को और तेज कर दिया.
डिजिटल साक्षरता से मतलब टेक्नोलॉजी का उपयोग करने में स्किल्ड होना है. आज डिजिटल साक्षर होने का मतलब केवल ऑनलाइन आर्टिकल्स से नहीं है बल्कि आज व्लॉग्स, टिकटॉक, यूट्यूब जैसे वीडियो सोर्से भी इसमें आते हैं. इसके साथ ही पॉडकॉस्ट्स और सोशल मीडिया साइट्स इसमें शामिल हैं.
डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए सरकार की पहल
नीति आयोग ने अपनी 'स्ट्रैटेजी फॉर न्यू इंडिया @75' रिपोर्ट में देश में डिजिटल डिवाइड को खत्म करने की आवश्यकता पर जोर दिया है.
सबसे पहले 1983 में सरकार ने इच वन टीच वन प्रोग्राम की शुरुआत की थी. 1983 में स्थापित, इच वन टीच वन चैरिटेबल फाउंडेशन एक विकास संगठन है जो भारत के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में वंचित बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है और इसने देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 10,000 से अधिक बच्चों की मदद की है.
सरकार ने 52.50 लाख लोगों को डिजिटली साक्षर करने के लिए 2014-2016 में राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन और डिजिटल साक्षरता अभियान चलाया था. इन दोनों पहलों के तहत 53.67 लाख लोगों को डिजिटल साक्षर घोषित किया गया था.
वहीं, 6 करोड़ ग्रामीण घरों (हर घर में एक व्यक्ति) को डिजिटली शिक्षित करने के लिए केंद्र सरकार ने साल 2017 में प्रधानमंत्री ग्रामीण डिटिल साक्षरता अभियान शुरू किया था. इसके तहत लगभग 5.78 करोड़ उम्मीदवारों का नामांकन किया गया है, 4.90 करोड़ को प्रशिक्षित किया गया है और 3.62 करोड़ को प्रमाणित किया गया है.
डिजिटल एजुकेशन से तेजी से बढ़ा एडटेक मार्केट
कोविड-19 के दौरान लगी पाबंदियों के कारण क्लासरूम से लेकर कोचिंग तक डिजिटली शिफ्ट हो गया. यही कारण है कि धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा एजुकेशन-टेक्नोलॉजी (एडटेक) मार्केट में लॉकडाउन के दौरान भारी उछाल देखने को मिला.
भारत में 4,450 से अधिक एडटेक स्टार्टअप हैं जिनसे 30 करोड़ से अधिक स्कूली स्टूडेंट्स जुड़े हुए हैं. इनमें से 4 करोड़ से अधिक हाईअर एजुकेशन प्राप्त करने वाले छात्र हैं,जिनकी पढ़ाई कोविड के दौरान बाधित हो गई थी.
साल 2010 में जहां एडटेक मार्केट को 50 करोड़ की फंडिंग मिली थी. वह 2022 तक 32 गुना बढ़कर 16.1 बिलियन डॉलर (करीब 13 खरब रुपये) पहुंच गई है. इसमें के-12 सेगमेंट, हाईअर एजुकेशन और अपस्किलिंग कोर्सेस की मांग सबसे अधिक है.
वहीं, ऑनलाइन कोर्सेज और डिस्टेंस एजुकेशन की बढ़ती मांग को देखते हुए उम्मीद जताई जा रही है कि अगले 10 सालों में यह मार्केट 30 बिलियन डॉलर (करीब 24 खरब रुपये) का हो जाएगा.