वन्यजीवों के साथ इंसानी गतिविधियों को लंबे वक़्त से कैमरे में कैद करने वाले फोटोग्राफर से एक बातचीत
तमिलनाडु के डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफर सेंथिल कुमारन वर्ल्ड प्रेस फोटो कॉन्टेस्ट-2022 (विश्व प्रेस फोटो प्रतियोगिता-2022) के विजेताओं में से एक हैं. यह पुरस्कार उन्हें भारत में मानव-बाघ संघर्ष की विजुअल डॉक्यूमेंट्री के लिए दिया गया है.
मानव-वन्यजीव संपर्क बढ़ रहा है. लेकिन उनमें से सभी सकारात्मक नहीं हैं. भारत में हर साल इंसानों और जानवरों के बीच टकराव के कारण सैकड़ों लोगों और जानवरों की मौत हो जाती है. जंगली जानवरों के टकराव के कारण उनके अस्तित्व और संख्या पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है. हालाँकि, दुनिया भर में कुछ इलाके दूसरे इलाकों की तुलना में अधिक जोखिम भरे हैं.
दुनिया के दो-तिहाई एशियाई हाथियों और बाघों का आवास, 1.4 अरब लोगों के साथ साझा जगहों में है. प्रत्येक वर्ग किलोमीटर में 400 से अधिक लोगों का उच्च-घनत्व है. भारत से जुड़ी इस तरह की वास्तविकताओं पर तत्काल वैश्विक रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है. डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफर सेंथिल कुमारन इन वास्तविकताओं को बड़े पैमाने पर दर्शकों को दिखाने का इरादा रखते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में मानव-बाघ टकराव को एक दशक तक अपने कैमरे में कैद करने के लंबे प्रयास के बाद कुमारन, ने ‘बाउंड्रीज़: ह्यूमन-टाइगर कॉन्फ्लिक्ट’ नामक एक प्रभावशाली डॉक्यूमेंट्री बनाया है. जिसकी वजह से उन्हें फोटो जर्नलिज्म का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला. वर्ल्ड प्रेस फोटो 2022 के 24 विजेताओं में एक नाम उनका भी है.
कुमारन के लिए पुरस्कार कोई नई बात नहीं है, उन्हें अब तक 20 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. मोंगाबे-इंडिया के साथ अनौपचारिक बात-चीत के दौरान फोटोग्राफर ने भारत में मानव-वन्यजीव संघर्षों, उनकी लंबी और थकाऊ कार्य प्रक्रिया और दो दशकों के अपने करियर के अनुभवों के बारे में बताया.
मोंगाबे: संरक्षण के विषय पर सबसे लंबे समय से चली आ रही बहस से शुरुआत करते हैं, जो आपके काम में भी परोक्ष रूप से दिखता है, संरक्षण मानव-केंद्रित होना चाहिए या वन्यजीव-केंद्रित?
सेंथिल कुमारन: एक डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफर के रूप में, मेरा काम दोनों पक्ष को दर्शाता है. मैं पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण का समर्थन करता हूँ, साथ ही मैं स्थानीय लोगों के सामने आने वाली समस्याओं को भी सामने लाना चाहता हूँ.
हम इसे केवल पारिस्थितिक नजरिए से इसका समाधान नहीं कर सकते. वास्तव में स्थानीय गांव के निवासियों और आदिवासी लोगों को जंगली जीवों से होने वाले नुकसान से बचाकर वन्यजीवों की रक्षा कर सकते हैं. देश में हर साल लगभग 5 लाख लोग इंसान और हाथी के बीच टकराव से प्रभावित होते हैं. खुद को नुकसान से बचाने के लिए जब प्रभावित ग्रामीण जानवरों के खिलाफ हो जाते हैं, तो ऐसी परिस्थिति में वन्यजीवों की सुरक्षा एक चिंता का विषय होती है. इस तरह का विरोध हाथियों के संरक्षण के लिए एक बड़ा ख़तरा है, क्योंकि कई राज्यों में हाथियों से हुए नुकसान की जवाबी कार्रवाई में उनकी हत्याओं की सूचना मिलती रहती है.
यदि भारत में हाथियों के संरक्षण को सफल बनाना है, तो इंसान-हाथी टकराव का समाधान निकालना होगा. या हाथियों से होने वाले नुकसान को इस स्तर पर लाया जाए कि स्थानीय समुदाय उसे सहन कर सकें.
मोंगाबे: आपके विजुअल्स इंसानों, बाघों और हाथियों के बीच कई साझा भू-भाग दिखाते हैं. जब आप सालों तक किसी प्रोजेक्ट की शूटिंग करते हैं तो उस दौरान वहाँ के जमीनी हालात बदलते रहते हैं, इन बदलते जमीनी हालातों पर आपकी क्या राय है और आप इसे अपने काम में कैसे शामिल करते हैं?
सेंथिल कुमारन: जब मैंने 2012 में डॉक्यूमेंटेशन शुरू किया, तो बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए देश कुछ भी करने को तैयार था. हमारे पास सिर्फ 1,700 बाघ बचे थे. अनेक कार्यक्रम लागू किए गए थे और कई आदिवासी गांवों को बाघ अभयारण्यों के लिए स्थानांतरित किया गया था. 2022 में, बाघों की आबादी दोगुनी हो गई है और कोर टाइगर जोन में आदिवासी गांवों को छोड़ कर, पुनर्वास कार्यक्रम धीमा हो गया है.
कुछ टाइगर रिजर्व (बाघ अभयारण्य) में, बाघों की बढ़ती आबादी के कारण वन विभागों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. जहाँ बाघ जीवित रहने के लिए इंसानों के साथ संघर्ष करने के लिए मजबूर हैं, वहीं जब कुछ बाघ आदमखोर हो जाते हैं, तो अधिकारियों को उन्हें खत्म करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. इन सबके पीछे मुख्य कारण जंगलों की कटाई है. बाघों और हाथियों पर ध्यान देने से लेकर वनों की कटाई का पता लगाने तक मेरा काम फैला हुआ है. ये सभी मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं.
मोंगाबे: आपकी स्टोरी-टेलिंग में विभिन्न भू-भागों का इतिहास, संस्कृति और घटनाओं का वर्णन शामिल है. क्या आप हमें अपना काम करने के तरीके से अवगत करा सकते हैं?
सेंथिल कुमारन: इस काम पर निकलने से पहले, मुझे लगा था कि यह बहुत मुश्किल होगा. सौभाग्य से, 2012 में, मुझे वालपराई में एक घायल बाघ का डॉक्यूमेंटेशन करने का अवसर मिला, उस बाघ का इलाज किया जा रहा था और उसे वापस जंगल में भेज दिया गया. यह घटना मेरी सफलता की पहली सीढ़ी थी. इसकी वजह से वन विभाग और शोधकर्ताओं के साथ मेरे अच्छे संबंध बन गए. फिर मैं अपनी डॉक्यूमेंट्री की यात्रा में सुंदरबन और वहाँ के आदमखोर बाघों तक पहुंचा. मेरे दोस्तों ने ताडोबा में बाघों का डॉक्यूमेंटेशन करने में मदद की.
विभिन्न भू-भागों में अनुभव अलग-अलग थे. लोगों के लिए बाघ का अर्थ हर जगह अलग-अलग था. कुछ जगहों पर लोग सोचते हैं कि बाघों की रक्षा करना उनके जीवन के लिए ख़तरा है, कुछ कनफ्लिक्ट जोन (टकराव वाले इलाके) में आदिवासी बाघों की पूजा करते हैं. कुछ गांवों में अपने पशुओं को बचाने के लिए बाघों को जहर देने और कभी-कभी बाघों पर बेरहमी से हमला करने के मामले भे सामने आए हैं. मैं टाइगर रिजर्व में ऐसे ग्रामीणों से भी मिला हूँ जिन्होंने वहाँ कभी बाघ नहीं देखा. ये मानव-बाघ सह-अस्तित्व के विभिन्न पहलू हैं. टकराव के सभी मामलों में मनुष्य का एकमात्र उद्देश्य अपनी फसलों, मवेशियों और खुद को खतरे से बचाना होता है.
मोंगाबे: आपके विजुअल्स की एक और दिलचस्प बात यह है कि हमें परिस्थितियों को विभिन्न हितधारकों के नजरिये से देखने को मिलता है. डॉक्यूमेंट्री से किसी भी परत को हटाने से कहानी अधूरी हो सकती है. कैमरा उठाने से पहले आप जो शोध प्रक्रिया (रिसर्च प्रोसेस) अपनाते हैं क्या उसके बारे में कुछ बता सकते हैं?
सेंथिल कुमारन: मैं अपने फोटो डॉक्यूमेंट्री को तीन अलग-अलग नजरिए से देखता हूँ. वन्यजीवों, आदिवासी गांवों के लोगों और वन विभाग के सामने आने वाली समस्याओं को देखते हुए मैंने अपने अनुभव से बहुत कुछ सीखा है. मैंने भारत में इंसानों और जंगलीजीवों के बीच टकराव पर अथक प्रयास से टुकड़ों-टुकड़ों में जानकारी जुटाई, जिससे मुझे एक अच्छी डॉक्यूमेंट्री बनाने में मदद मिली.
2008 से, मैंने संरक्षणवादियों और वन विभागों के साथ अच्छे संबंध विकसित किए. मैं विभिन्न संरक्षण गतिविधियों जैसे जागरूकता कार्यक्रमों, पशु गणना और पशु पुनर्वास कार्यों में शामिल रहा हूँ. 2012 में मैं अजय देसाई (दिवंगत) से मिला, जिन्हें एलिफैंट मैन के नाम से भी जाना जाता है. वह भारत में हाथी अनुसंधान और संरक्षण में सबसे अनुभवी व्यक्ति थे. उनके साथ मेरे अच्छे संबंध ने मुझे इस मुद्दे के विभिन्न आयामों को समझने में मदद की.
मोंगाबे: आपने विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में लंबे समय तक मानव-वन्यजीव संघर्ष को कवर किया है. आपने अपनी यात्रा को कैसे मैनेज किया और इसकी योजना कैसे बनाई?
सेंथिल कुमारन: मैं शुरू से ही इस तरह के मुद्दे को डॉक्यूमेंट करने लिए सही समय पर सही जगह होने के महत्व से अवगत था. मुझे जल्दी यात्रा करनी थी. यहाँ तक कि मुझे पता नहीं होता था कि मैं आगे कहाँ जा रहा हूँ, तो मैं हमेशा यात्रा के लिए आवश्यक चीजों के साथ एक बैग तैयार रखता हूँ. यह डॉक्यूमेंट्री सेल्फ फाईनेंस्ड थी. चूंकि मेरे पास कार नहीं है, इसलिए मुझे सार्वजनिक परिवहन (पब्लिक-ट्रांसपोर्ट) का सहारा लेना पड़ा. कभी-कभी केवल कुछ घंटों के डॉक्यूमेंटिंग के लिए कई पब्लिक ट्रांसपोर्ट से 14-15 घंटे की यात्रा करना पड़ी. इस तरह की यात्राओं के दौरान, खुद को तरोताजा करने और सीधे घटना स्थल पर जाने के लिए मैंने बस स्टैंड के शौचालयों का इस्तेमाल किया. मैं पर्याप्त भोजन और नींद के बिना यात्रा करता रहा. मुझे जो तस्वीर मिली, उसने सारे संघर्ष को सार्थक कर दिया.
मोंगाबे: संघर्ष की स्थिति खराब हो सकती है, खासकर इंसान के मृत्यु के मामले में. आप ऐसी परिस्थितियों में रहे हैं जहां हिंसक घटनाएं हो सकती हैं. आपने अपनी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की? क्या आपको स्थानीय समुदायों से मदद मिली?
सेंथिल कुमारन: इन संघर्षों में विरोध के दौरान कैमरे के साथ यात्रा करना मुश्किल है. 2015 में, नीलगिरी में गुडलुर के पास एक बाघ ने एक चाय बागान के 38 वर्षीय कर्मचारी की ह्त्या कर दी थी, जिससे वहाँ दहशत और विरोध प्रदर्शन हुआ था. वन विभाग के वाहनों में आग लगा दी गई और गुस्साई भीड़ ने उनके ऑफिस को बर्बाद कर दिया.
जब मैं एक दोस्त की मदद से वहाँ पहुंचा तो धारा 144 लगा दी गई थी. मैं तस्वीरों के बिना लौटने ही वाला था कि मैंने उनके घर के सामने पोस्टमॉर्टम के बाद पीड़िता के शव के साथ एम्बुलेंस को देखा. मैं तस्वीर लेने को लेकर असमंजस में था, लेकिन मैंने स्थिति का आकलन करने के लिए वहाँ मौजूद लोगों से बातचीत की. यह महसूस करते हुए कि मेरा मकसद अच्छा है, उन्होंने मुझे 10-15 तस्वीरें लेने दीं, जो बाद में मेरे डॉक्यूमेंट्री के कुछ ख़ास विजुअल्स बन गए. विश्वास कायम करना और लोगों के साथ अच्छे संबंध विकसित करना बेहद अहम है.
मोंगाबे: संरक्षण कार्यक्रमों और नीतियों में बाघों और हाथियों जैसे मेगाफौना (महाप्राणी) पर अधिक ध्यान देने से अन्य कई विभिन्न प्रमुख प्रजातियों की उपेक्षा होती है और वन-निर्भर समुदायों के जीवन और आजीविका प्रभावित होती है. बाघ और हाथी की संख्या में अब सुधार हुआ है, लेकिन मनुष्यों के साथ उनका आमना-सामना बढ़ा है. आप इन समस्याओं को कैसे देखते हैं और इसका समाधान क्या हैं?
सेंथिल कुमारन: ऐसा लगता था कि प्रोजेक्ट टाइगर जैसे संरक्षण कार्यक्रम शुरु में सिर्फ बाघों के लिए थे, लेकिन इससे वन-भूमि के विशाल क्षेत्रों और जैव-विविधता की रक्षा करने में मदद मिली है. साथ ही, मैं इस बात से सहमत हूँ कि अन्य जानवरों की प्रजातियां भी उसी स्तर के ध्यान और सुरक्षा के पात्र हैं जो बाघों और हाथियों को दिया जाता है.
भारत में बाघों की आबादी पिछले एक दशक में दोगुनी हो गई है लेकिन अभी बाघों की कुल आबादी 100 साल पहले की तुलना में केवल आठ प्रतिशत है. रिपोर्टों के अनुसार, भारत में 35 प्रतिशत बाघ संरक्षित क्षेत्र के बाहर मनुष्यों के साथ साझा जगह पर रहते हैं. पिछली शताब्दी में, अंग्रेजों ने नकदी फसलें उगाने के लिए जंगलों के विशाल क्षेत्रों को नष्ट कर दिया था. पिछले पांच या छह दशकों में, हमने ‘विकास परियोजनाओं’ के लिए और अधिक जंगल बर्बाद कर दिए हैं. इससे हाथी गलियारे का लगभग 80 प्रतिशत और साथ ही इन बिखरे हुए जंगलों में विभिन्न प्रजातियों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है नतीजतन इंसानों और जंगली जीवों में टकराव होता है. किसी ख़ास जानवर का जितना महत्व दिया गया है उतना उनके आवास की रक्षा का महत्त्व नहीं दिया गया है, यही समस्या है.
मोंगाबे: आप औपचारिक रूप से फोटोग्राफी में प्रशिक्षित नहीं हैं. मैंने पढ़ा है कि जब आपको अपना पहला कैमरा मिला, तो आपने अपने पसंद की तस्वीर पाने के लिए आठ महीने तक लगातार सूर्योदय की तस्वीरें खींचीं. बेहतरीन काम करने के लिए आप अपने समकालीन और महत्वाकांक्षी युवा फोटोग्राफरों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
सेंथिल कुमारन: बाघ देखना बचपन से मेरा सपना था. उस सपने और जिज्ञासा ने मुझे जंगल के जीवन के बारे में जानने और यात्रा के लिए प्रेरित किया. पिछले 20 सालों से मैंने कई फोटो स्टोरीज की हैं. एक डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफर के रूप में, मेरी तस्वीरें मेरी मानसिकता को दर्शाती हैं. मैंने जो देखा और अनुभव किया है, उसके गवाह मेरे सभी फोटोग्राफ हैं.
एक कलाकार में जिज्ञासा, उत्साह और आश्चर्य कभी नहीं मरना चाहिए. एक बच्चे की तरह जिज्ञासु होना चाहिए. उनमें ज्ञान और उत्साह के लिए नई चीजों को देखने और अनुभव करने का उत्साह होना चाहिए. आप अपने काम के निर्माता और निरीक्षक हैं.
ईमानदार रहें और बेहतरीन काम करते समय अपनी ईमानदारी न गवाएं. विभिन्न प्लेटफार्मों पर प्रतिदिन लाखों तस्वीरें प्रकाशित हो रही हैं, आपकी तस्वीर उनके बीच कहाँ खड़ी है, कितना आश्चर्य पैदा करती है इसकी कीमत निर्धारित करें.
तडोबा टाइगर रिजर्व के पास घोसरी गांव में जंगली सूअर और हिरण से फसलों की रक्षा के लिए अपने कपास के खेत में मचान पर रात को पहरेदारी करता किसान. अक्सर बड़ी बिल्लियां शिकार की तलाश में खेतों में घूमती पाई जाती हैं. वन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, चंद्रपुर डिवीजन में लगभग 200 बाघ रहते हैं, जिनमें से लगभग 80 बाघ ‘टाइगर रिजर्व कोर’ जोन के बाहर इंसानों के साझा इलाके में रहते हैं.
(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: तडोबा टाइगर रिजर्व में सड़क पार करता एक वयस्क नर बाघ. एक बाघ 40 वर्ग किमी की सीमा तक कब्जा कर सकता है. इस बाघ के क्षेत्र में लगभग आठ गांव स्थित हैं. तस्वीर - सेंथिल कुमारन.