आईपीएस अफसर ने अपनी बेटी का आंगनबाड़ी में कराया एडमिशन
आज हर खासोआम पब्लिक स्कूलों पर फिदा है। ज्यादातर लोग कितना भी खर्च कर अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में डालने की होड़ लगाए हुए हैं। सरकारी अफसरों के लाडले महंगे स्कूलों में जाते हैं। ऐसे में पुलिस अधीक्षक के इस फैसले ने सभी को एक बार और सोचने पर विवश किया है।
अब एक और आईपीएस गाजीपुर (उ.प्र.) के पुलिस अधीक्षक डॉ यशवीर सिंह ने भी अपनी दो साल की मासूम बेटी अंबावीर का शहर से जुड़े विशेश्वरगंज स्थित मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र में दाखिला कराया है। आजकल के बड़े अधिकारियों को छोड़िए, मामूली रहन-सहन के लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों अथवा आंगनवाड़ी केंद्रों में भेजने से कतराते हैं, वही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के अब तक तीन ऐसे प्रशासनिक अधिकारी अपने बच्चों को आंगनवाड़ी भेज चुके हैं।
पुलिस अधीक्षक डॉ यशवीर सिंह ने अपनी दो वर्षीय बिटिया को आंगनबाड़ी केंद्र में भेजकर पूरे प्रदेश में एक और मिसाल कायम की है। अपनी मां के साथ कल पहले दिन स्कूल पहुंची अंबावीर ने सामान्य बच्चों के साथ मिड-डे का खाना भी खाया। डा. यशवीर सिंह कहते हैं कि अम्बावीर अब नियमित आंगनबाड़ी केंद्र जाएगी और सामान्य बच्चों संग पढ़ाई करने के साथ पुष्टाहार भी वहीं ग्रहण करेगी।
गौरतलब है कि आज हर आम से लेकर खास आदमी तक अंग्रेजी माध्यम के पब्लिक स्कूलों पर फिदा है। ज्यादातर लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में डालने की होड़ लगाए हुए हैं। इसके लिए वह कितना भी खर्च करने को तैयार हैं। अगर बात की जाए सरकारी अफसरों की तो उनके लाडले महंगे से महंगे स्कूलों में जाते हैं। ऐसे में पुलिस अधीक्षक के इस फैसले ने सभी को एक बार और सोचने पर विवश कर दिया है। सरकारी शिक्षण व्यवस्था अभी भी जमीनी आचरण से बच्चों को जोड़ती है। डॉ यशवीर सिंह कहते हैं कि हम भी सरकारी स्कूल में ही पढ़े-लिखे हैं। अगर सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ने लगें तो निश्चित रूप से शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी। मेरी पत्नी प्रियंका सिंह की भी मंशा रही है कि बेटी का दाखिला आंगनबाड़ी केंद्र में कराया जाए, ताकि वह हमउम्र बच्चों के साथ कुछ पल गुजार सके।
डॉ सिंह ने बताया कि पहले ही दिन अम्बावीर अन्य बच्चों के साथ काफी घुलमिल गई। वह उनके साथ बेहद खुश भी नजर आई। इतना ही नहीं, उसने एमडीएम में बने चावल-सब्जी को अन्य बच्चों के साथ पूरे चाव से खाया। अन्य बच्चे भी काफी आह्ललादित रहे। पुलिस अधीक्षक कहते हैं कि पब्लिक स्कूलों में दाखिला कराने की होड़ के बीच सरकारी शिक्षण व्यवस्था अभी भी प्रभावशाली है। कम से कम मुझे तो अपने निर्णय से ऐसा महसूस हो रहा है। अंबावीर अपनी मां प्रियंका सिंह के साथ पहले दिन आंगनवाड़ी केंद्र पहुंची थी। वहां उसने चार घंटे बिताए। प्रियंका सिंह का कहना है कि बच्चों को उनके अनुकूल परिवेश मिलना चाहिए। अम्बावीर बंद सुरक्षा व्यवस्था के बीच उदास रहती रही है, जबकि उसकी दुनिया तो यहां है। हम उम्र के बच्चों के बीच। उसे अभी सुरक्षा की दुनिया नहीं बल्कि अपने जैसे दोस्त चाहिए।
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