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क्या लीव इनकैशमेंट सैलरी का हिस्सा होता है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

राजस्थान हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था कि न तो ग्रेच्युटी और न लीव इनकैशमेंट, राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम, 2010 के नियम 10 के तहत या राजस्थान गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थानों (मान्यता अनुदान सहायता और सेवा शर्तें, आदि) नियम, 1993 के तहत सैलरी के तहत आता है.

क्या लीव इनकैशमेंट सैलरी का हिस्सा होता है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

Wednesday September 28, 2022 , 2 min Read

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण में कहा है कि कर्मचारियों की बची हुई छुट्टियों के बदले पैसे देना (लीव इनकैशमेंट) सैलरी का हिस्सा होता है. कोर्ट ने माना कि राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम, 2010 में बची हुई विशेषाधिकार छुट्टियों को आगे की छुट्टियों में नहीं जोड़ने की शर्त मनमाना और असंवैधानिक है और इसे जारी नहीं रखा जा सकता है.

क्या है मामला?

1993 में राजस्थान के एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल में खाली पदों पर याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति हुई थी. राजस्थान हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था कि न तो ग्रेच्युटी और न लीव इनकैशमेंट, राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम, 2010 के नियम 10 के तहत या राजस्थान गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थानों (मान्यता अनुदान सहायता और सेवा शर्तें, आदि) नियम, 1993 के तहत सैलरी के तहत आता है.

हालांकि, अपीलकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक नारगोकर ने तर्क दिया कि सैलरी में ग्रेच्युटी के साथ ही साथ लीव इनकैशमेंट दोनों घटक भी शामिल हैं। उन्होंने इसके लिए साल 2005 के राजस्थान हाईकोर्ट के एक फैसले का उदाहरण दिया जिसमें लीव इनकैशमेंट को सैलरी के तहत बताया गया था.

वहीं, उत्तरदाताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने कहा कि लीव इनकैशमेंट और गेच्युटी को सैलरी का हिस्सा नहीं माना जाना चाहिए.

10 फीसदी ब्याज के साथ लीव इनकैशमेंट और ग्रेच्युटी देने का आदेश

सीजेआई यूयू ललति और एस. रविंद्र भट्ट की बेंच ने कहा कि सीनियर हायर सेकेंडरी स्कूल लक्ष्मणगढ़ (सुप्रा) में यह देखा गया कि सैलरी में लीव इनकैशमेंट का लाभ शामिल है, जो कि कर्मचारी की बची हुई छुट्टियों के बदले दिया जाता है.

कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार और उत्तरदाता क्रमश: 70 और 30 के अनुपात में 6 सप्ताह के अंदर लीव इनकैशमेंट की रकम सभी याचिकाकर्ताओं को मुहैया कराएं. इसके साथ ही, 6 सप्ताह के अंदर ही कैलुकेट करके गेच्युटी की रकम भी मुहैया कराएं.

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि दोनों ही उत्तरदाताओं ने अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की और याचिकाकर्ताओं को उनका हक देने से इनकार कर दिया इसलिए याचिकाकर्ताओं को दी जाने वाली राशि निर्धारित अवधि से 10 फीसदी ब्याज के साथ मुहैया कराई जाए.


Edited by Vishal Jaiswal