क्या प्लास्टिक कचरा पर लगाया जा रहा प्रतिबंध ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की बड़ी समस्या से हमारा ध्यान भटका रहा है?
हमें जितनी अधिक मात्रा में कचरे का निपटारा करना है, उसे देखते हुए, समय की मांग है कि हम सभी - वो चाहे नागरिक हों, कॉर्पोरेट हों या सरकारें हों - साथ मिलकर सार्थक तरीके से इस समस्या का हल करें.
प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जिसका उपयोग दुनिया के किसी भी कोने में और हर तरह के क्रियाकलापों में देखने को मिल सकता है. इसका उपयोग सुबह के जगने के साथ ही शुरू हो जाता है. जब आप जागते हैं तब आप प्लास्टिक टूथपेस्ट ट्यूब से प्लास्टिक टूथब्रश पर पेस्ट डालकर अपने दांतों को ब्रश करते हैं. आपके कपड़े, घरेलू आपूर्ति और फर्निशिंग आदि को तैयार करने में किसी न किसी रूप में प्लास्टिक का उपयोग हुआ है. यह एक विशिष्ट सामग्री है जिसमें लोच और लचीलापन के कार्यात्मक गुण होने के साथ-साथ यह हल्की और वाटरप्रूफ भी होती है. इसके अलावा यह सस्ता भी है और इसने खाद्य और उपभोक्ता वस्तुओं की पैकिंग करने के हमारे तरीके में क्रांतिकारी बदलाव आया है.
वैश्विक प्लास्टिक खपत के मुकाबले भारत की प्लास्टिक खपत 5 प्रतिशत से भी कम है. हालांकि, इसका उपयोग बढ़ रहा है और वर्ष 2016 से 2020के बीच प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा दोगुना हो गया है. भले ही इसके उपयोग की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है, लेकिन अभी भी भारत में प्लास्टिक कचरा सभी नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का केवल 6-8% ही है जबकि वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक कचरे सभी ठोस अपशिष्ट के 12% से भी अधिक हैं. नीचे दिये गये ग्राफ में भारत में पैदा होने वाले ठोस अपशिष्ट की कुल मात्रा और उसमें प्लास्टिक के कचरे के प्रतिशत को दिखाया गया है.
अपशिष्ट संग्रह और प्रक्रमण की वर्तमान दर पर, हमें अपने सभी कचरे के लैंडफिल के लिए हर 7 साल में ईडन गार्डन क्रिकेट ग्राउंड के आकार की एक नई लैंडफिल साइट की आवश्यकता होगी.
सिंगल-यूज प्लास्टिक्स (एसयूपी) की कम उपयोगिता और गंदगी फैलाने की उच्च क्षमता को देखते हुए सरकार द्वारा हाल ही में इस पर लगाया गया प्रतिबंध उचित है. लेकिन यह भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की बड़ी समस्या को हल करने के लिए बहुत कम है. हमारे पास विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व नियम (ईपीआर) भी हैं ताकि संबंधित उत्पादकों को उनके द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे के संग्रह और रीसाइक्लिंग की जिम्मेदारी उन्हें दे सकें. लेकिन एसयूपी पर प्रतिबंध के विपरीत, ईपीआर नियमों का मतलब यह नहीं है कि देश में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा में कमी आएगी. इसमें एक प्रणाली कायम की जाती है जिसमें उपयोग के बाद बचा हुआ प्लास्टिक लैंडफिल या जलाशयों में नहीं डाला जाता है.
हमें जितनी अधिक मात्रा में कचरे का निपटारा करना है, उसे देखते हुए, समय की मांग है कि हम सभी - वो चाहे नागरिक हों, कॉर्पोरेट हों या सरकारें हों - साथ मिलकर सार्थक तरीके से इस समस्या का हल करें.
हमें भारत में उत्पन्न होने वाले कचरे और रीसाइक्लिंग क्षमता के बारे में सटीक आँकड़े के लिए एक प्रणाली का निर्माण करके इस दिशा में शुरुआत करनी चाहिए. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास देश में उत्पन्न खतरनाक कचरे की मात्रा का खुलासा करने के लिए केंद्रीकृत पोर्टल है, जिसका उपयोग राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड डेटा इनपुट करने के लिए करते हैं. क्यों न इस पोर्टल का विस्तार सभी प्रकार के अपशिष्ट डेटा तक किया जाए और साथ ही जनता तक खुली पहुंच की अनुमति दी जाए? इससे सभी प्रकार के कचरों और रीसाइक्लिंग अवसरों की सटीक माप सुनिश्चित हो सकेगी.
गोदरेज में, हम स्थानीय नगर पालिकाओं के सहयोग से कई सामुदायिक अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाएं चलाते हैं. हमने शहर के अपशिष्ट प्रबंधन को पारदर्शी बनाने और हितधारकों के बीच जवाबदेही तय करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया है. ठेकेदार, शहरी स्थानीय निकाय के अधिकारी और पर्यवेक्षक अब कचरे की मात्रा, शुरुआत से अंत तक इसकी मूवमेंट और प्रत्येक अपशिष्ट श्रमिक द्वारा दैनिक आधार पर प्रदान की जाने वाली सेवा की गुणवत्ता की निगरानी कर सकते हैं. इससे जमीनी समस्याओं के त्वरित समाधान में मदद मिली है, जबकि नागरिकों को अपने कचरे को अलग करना सुनिश्चित किया गया है, और कचरे के पुनर्चक्रण हेतु अवसर प्रदान करने में भी मदद मिली है.
पुनर्चक्रण से एक वर्ष में लगभग 30,000 करोड़ रुपये के राजस्व की सहायता मिल सकती है. सिर्फ प्लास्टिक अपशिष्ट रीसाइक्लिंग लगभग 1.6 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान करता है और यदि हम सक्रिय रूप से सभी ठोस अपशिष्ट रीसाइक्लिंग पर ध्यान दें तो इससे लाखों और नौकरियों का सृजन हो सकता है.
पूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन सुनिश्चित करने और इस प्रक्रिया में अवसरों का पता लगाने के लिए हमें सार्वजनिक-निजी-व्यक्ति की भागीदारी मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है. निजी क्षेत्र कचरे के पृथक्करण और अंतिम उपभोक्ता तक पुनर्चक्रण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सरकार के साथ मिलकर काम कर सकता है. मुंबई में कई स्थानों पर, स्थानीय प्राधिकरण केवल घरों से अलग-अलग अपशिष्ट एकत्र करते हैं. व्यक्ति और निवासी संघों द्वारा इस प्रणाली को अपनाये जाने की आवश्यकता है जो वैज्ञानिक अपशिष्ट पृथक्करण, संग्रह और निपटान का आधार है.
इस सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण को भी लैंडफिल में कचरे के डंपिंग के खिलाफ कठोर नियमों के रूप में मजबूत विधायी प्रोत्साहन की आवश्यकता है. हमारे लैंडफिल वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित नहीं होते हैं और कचरे के ढेर अक्सर आस-पास के निवासियों के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं. ऑस्ट्रिया ने 2015 में लैंडफिल टैक्स की शुरुआत की, इस कानून के साथ लैंडफिल ऑपरेटर लैंडफिल में कचरे की मात्रा और लैंडफिल के प्रकार के आधार पर कर का भुगतान करते हैं. इसके अलावा, 5% से अधिक कार्बन उत्सर्जन दर वाले कचरे को लैंडफिल से प्रतिबंधित कर दिया गया. हमें नियमों के उल्लंघन के लिए दंड के साथ-साथ एकसमान विधायी ढांचे की आवश्यकता है, और कानून के पालन करने के लिए प्रोत्साहन दिये जाने की ज़रूरत है.
पांडिचेरी में हमारे एकीकृत सामुदायिक अपशिष्ट प्रबंधन ने वैज्ञानिक रूप से अपशिष्ट का प्रबंधन करने के लिए एक स्वच्छता पार्क बनाया. पृथक किये गये कचरे को अलग-अलग प्रकार की सामग्रियों के रूप में छाँट लिया जाता है, लॉजिस्टिक्स का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उनके गट्ठर बनाये जाते हैं और विभिन्न साझेदारियों के माध्यम से उन्हें उनके समग्र निपटारा समाधानों के लिए भेजा जाता है. संयंत्र प्रबंधन, सामग्री के मूवमेंट का रिकॉर्ड रखने में मदद करता है जो अनावश्यकता को खत्म करने और स्वच्छता पार्क के लिए राजस्व उत्पन्न करने हेतु अंतर्दृष्टि प्रदान करने में सहायक है.
सारांश यह है कि कचरे के विशाल अंबार की सफाई साझा जिम्मेदारी होनी चाहिए. पारदर्शिता पर जोर दिया जाना चाहिए, रीसाइक्लिंग सिस्टम होना चाहिए, और वैकल्पिक पैकेजिंग समाधान के लिए नवाचार हेतु कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, साथ ही उपभोक्ताओं को उनके प्लास्टिक फुटप्रिंट के बारे में संवेदनशील बनाया जाना चाहिए.
(लेखक गायत्री दिवेचा - गोदरेज इंडस्ट्रीज एंड एसोसिएट कंपनीज में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी विभाग की हेड हैं.)
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