'जज बिटिया' अर्चना कुमारी की मां को खुशी मिली इतनी कि मन में ना समाय
सोनपुर (बिहार) के रेलवे कोर्ट में चपरासी रहे पिता के असमय निधन के बाद पति की मदद से उच्च शिक्षा प्राप्त अर्चना कुमारी को आज उनके गांव मानिक बिगहा के लोग 'जज बिटिया' कहकर बुलाने लगे हैं। इस खुशी में उनकी मां को न भूख लग रही है, न नींद आ रही है। कहती हैं, अर्चना के पापा होते तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।
बिहार में मूल रूप से धनरूआ (पटना) के गांव मानिक बिगहा की अर्चना कुमारी इन दिनो लोगों में 'जज बिटिया' के नाम से मशहूर हो चुकी हैं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी अर्चना की बेमिसाल कामयाबी का सफर बहुत मुश्किलों भरा रहा है। उनकी जिंदगी ऐसे घुमावदार रास्तों से गुज़री है, जिस पर चल कर इतनी बड़ी सफलता विरलों की ही मिल पाती है। गरीब घर में पैदा हुईं वह बचपन में हर वक़्त अस्थमा से पीड़ित रहा करती थीं।
पटना के राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, शास्त्रीनगर से बारहवीं पास अर्चना ने पटना यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी ऑनर्स किया है लेकिन इसी बीच ग्रैजुएशन की पढ़ाई करते समय वर्ष 2005 में सोनपुर रेलवे कोर्ट में चपरासी रहे उनके पिता गौरीनंदन प्रसाद की असामयिक मृत्यु हो गई। अब पिता की चारों संतानों में सबसे बड़ी होने के नाते पूरे परिवार का बोझ उनके कंधों पर आ गया। चूंकि उन्होंने कंप्यूटर सीख रखा था तो अपने ही स्कूल में बच्चों को कंप्यूटर पढ़ाने लगीं ताकि घर ख़र्च उठा सकें। उनकी तो इक्कीस की उम्र में शादी हो चुकी थी, बाकी तीनों बहनों के अनब्याहे होने का उन पर एक बड़ा दबाव था।
34 वर्षीय अर्चना कुमारी बताती हैं कि हम लोगों का परिवार एक कमरे के सर्वेंट क्वॉर्टर में रहता था और हमारे क्वॉर्टर के आगे जज साहब की कोठी थी। पापा दिन भर जज साहब के पास खड़े रहते थे। बस वही कोठी, जज को मिलने वाला सम्मान और अपने सर्वेंट क्वॉर्टर की छोटी सी जगह उनके लिए प्रेरणा स्रोत बनी। कठिन हालात के बीच ही अर्चना कुमारी पिछले साल वर्ष 2018 में 30वीं बिहार न्यायिक सेवक परीक्षा में पास हो गईं।
इस साल गत माह नवंबर 2019 के आख़िरी सप्ताह में घोषित नतीजों में उनको सामान्य श्रेणी में 227वां और ओबीसी कैटेगरी में 10वीं रैंक मिली। इसके बाद तो अर्चना की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। बेहद साधारण परिवार से निकलकर इतनी बड़ी उपलब्धि ने खुद उनको आश्चर्य से भर दिया। वह तो छह साल की उम्र से ही जज बनने का सपना देखती आ रही थीं। अर्चना कहती हैं कि आज उनकी सफलता में पूरे परिवार का हाथ रहा है।
अर्चना की सातवीं तक पढ़ी मां प्रतिमा देवी कहती हैं कि बिटिया का रिजल्ट जब से निकला है, खुशी के मारे उनको न भूख लग रही है, न नींद आ रही है। आज इसके पापा होते तो बिटिया पर कितना नाज करते। अर्चना की अन्य दोनों बहनें भी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। पति राजीव रंजन पटना मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में क्लर्क हैं।
अर्चना कुमारी बताती हैं कि उनके पति राजीव रंजन ने उनका सपना पूरा करने में कोई कोर-कसर नहीं उठा रखी थी। वर्ष 2006 में जब उनकी शादी हुई, राजीव रंजन ने उनमें पढ़ने की ललक दिखी तो साल 2008 में पुणे विश्वविद्यालय से उनको हिंदी माध्यम से एलएलबी में दाखिला दिला दिया। लोगों को अंदेशा था कि पुणे के अंग्रेजीदां माहौल में वह टिक नहीं पाएंगी लेकिन वर्ष 2011 में उनकी क़ानून की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद ही पटना लौटी थीं।
2012 में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। उसके बाद घर की ज़िम्मेदारी और बड़ी हो गई लेकिन उन्होंने फिर भी कभी अपने सपनों से आंखें नहीं फेरीं। ऊपर से मां-बहनों की ज़िम्मेदारी भी संभाले रखा। उसके बाद वह अपने पांच माह के बच्चे और मां के साथ आगे की पढ़ाई और तैयारी के लिए दिल्ली चली गईं। वहां से उन्होंने एलएलएम किया और जज बनने की तैयारी में जुट गईं। अपनी आजीविका के लिए क़ानून के छात्रों की कोचिंग भी करती रहीं।