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मिलें जून रोज वायफे से, जो ऑर्गेनिक साबुन के बिजनेस से पैसे कमाकर अनाथ बच्चों को दे रही हैं शिक्षा

मिलें जून रोज वायफे से, जो ऑर्गेनिक साबुन के बिजनेस से पैसे कमाकर अनाथ बच्चों को दे रही हैं शिक्षा

Thursday October 31, 2019 , 3 min Read

यह बात सभी जानते हैं कि किसी भी देश के विकास और उसके आगे बढ़ने में शिक्षा का अहम योगदान होता है। शिक्षा को हर घर तक पहुंचाने के लिए सरकारें कई जागरूकता अभियान भी चलाती हैं। इन सब प्रयासों के बाद आज भी हमारे देश की युवा आबादी का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा से दूर है।


युवाओं के शिक्षा से दूर रहने के पीछे कई कारण हैं। कई जगहों पर तो स्कूल जैसी मूल जरूरतों के आधारभूत ढांचें ही नहीं हैं। इसके अलावा ग्रामीण और दूर-दराज इलाकों में रहने वाले लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी शिक्षा में पिछड़ेपन का कारण है।


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सरकार लोगों तक शिक्षा पहुंचाने के लिए काफी प्रयास कर रही है लेकिन केवल सरकार के प्रयास ही काफी नहीं हैं। ऐसे में मणिपुर निवासी जून रोज वायफे जैसे लोग भी देश में शिक्षा की दशा सुधारने की दिशा में सराहनीय काम कर रही हैं। जून एक सामाजिक कार्यकर्ता और उद्यमी हैं। जून अनाथलय के बच्चों को आधारभूत शिक्षा की ओर ले जाने में लगी हुई हैं। खासकर उन बच्चों को जो गरीब परिवार से आए हैं।


जून ने साल 2017 में ऑर्गेनिक यानी प्राकृतिक साबुन बनाने का बिजनेस शुरू किया था और अब उसी बिजनेस के जरिए वह अनाथ बच्चों की मदद कर रही हैं। बिजनेस में साबुन बनाने के लिए प्राकृतिक तेल के अर्क, फलों के अर्क (रस), नींबू, गुलाब और ऐलोवेरा जैसी जड़ी-बूटियों के अर्क का इस्तेमाल करती हैं।


बनाए गए साबुनों को वह Luxury Soothe (लग्जरी सूद) ब्रैंड के नाम से बेचती हैं। जून के एक प्राकृतिक साबुन की कीमत 150 से 250 रुपये के बीच होती है। यह साबुन अलग-अलग खुश्बू, साइज और शेप में आते हैं। जून बताती हैं कि केमिकल से बने साबुन उनकी स्किन के लिए खतरनाक थे। इसलिए उन्होंने प्राकृतिक साबुन बनाना शुरू किया।





जून ने अपने प्रोडक्ट को लोगों तक पहुंचाने के लिए कई सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स का सहारा लिया। इसका उन्हें तुरंत फायदा भी मिला। उनके साबुन तुरंत लोगों के बीच लोकप्रिय हो गए। इस बिजनेस से वह जितना भी कमाती हैं, वह अनाथ बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर देती हैं।


न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए जून ने बताया,

'मैंने कई गरीब बच्चों को देखा जो पढ़ने में होशियार होते हैं। इनमें से अधिकतर ऐसे होते हैं जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वे अपनी पढ़ाई नहीं कर सकते। मैं अपनी जेब से पैसे खर्च कर ऐसे बच्चों को शिक्षा तक ले जाने में मदद कर रही हूं।'


जून ने साल 1989 में जीपी वुमेन कॉलेज से ग्रैजुएशन किया था। उसी समय से उनका झुकाव समाज के विकास खासकर महिलाओं के लिए काम करने में था। समाज के विकास कामों में उनके इसी लगाव और झुकाव के कारण उन्हें मणिपुर महिला आयोग में एसोसिएट बनाया गया। यहां उन्होंने अपने काम के जरिए अधिकारों से वंचित कई परिवारों और बच्चों की मदद की है।