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आज के 'श्रवण कुमार' ने अपनी 70 साल की मां को स्कूटर से घुमाए 20 राज्य, प्रभावित होकर आनंद महिंद्रा ने किया कार देने का ऐलान

आज के 'श्रवण कुमार' ने अपनी 70 साल की मां को स्कूटर से घुमाए 20 राज्य, प्रभावित होकर आनंद महिंद्रा ने किया कार देने का ऐलान

Thursday October 31, 2019 , 4 min Read

श्रवण कुमार की कहानी तो आपने भी सुनी होगी कि कैसे उन्होंने अपने माता-पिता को अपने कंधों पर पालकी में बैठाकर तीर्थ यात्रा कराई थी। जो कहानी हम आपको बता रहे हैं वह भी बिल्कुल श्रवण कुमार जैसी ही है। मां... यह केवल एक शब्द नहीं है बल्कि कुछ लोगों के लिए इसमें पूरा संसार छिपा है। किसी भी शख्स का सबसे ज्यादा लगाव अपनी मां से होता है। वह हर वो चीज करना चाहता है, जिससे उसकी मां को खुशी मिले।


हालांकि, इन सबके बीच एक अहम सवाल उठता है कि आप अपनी मां को खुश रखने के लिए कितनी दूर तक जा सकते हैं? अमूमन हर कोई अपनी मां की खुशी के कुछ न कुछ करता रहता है, लेकिन दक्षिणमूर्ति कृष्णकुमार ने कुछ हटकर किया है।


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दक्षिणमूर्ति कृष्ण कुमार अपनी 70 वर्षीय मां चूड़ारत्ना के साथ

मैसूर के कृष्ण कुमार (39) अपनी 70 वर्षीय मां चूड़ारत्ना को तीर्थ यात्रा पर ले गए। अपनी मां को तीर्थ कराने की बात सुनकर अच्छी तो लगती है लेकिन आपके मन में यह भी यह भी सवाल आ सकता है कि इसमें नया क्या है? बहुत से लोग अपने माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते हैं। कृष्ण कुमार के मामले में सबसे खास बात यह है कि उन्होंने अपनी सत्तर वर्षीय मां को 2018 से स्कूटर पर बिठाकर 20 राज्यों में तीर्थ भ्रमण कराया है। इनमें केरल, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और तमिलनाडु जैसे राज्य शामिल हैं।


दक्षिणमूर्ति के अनुसार, यह 'मथरू सेवा संकल्प यात्रा' का दूसरा चरण है। इसमें उन्होंने अपने 20 साल पुराने बजाज चेतक स्कूटर पर 48,100 किमी की दूरी तय की है। दक्षिणमूर्ति इसी स्कूटर पर अपनी मां को नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे देशों में भी ले जा चुके हैं।


उन्होंने 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' से बात करते हुए कहा,

'हम कभी किसी होटेल या कमरे में नहीं रुके। मुझे 16,000 किमी की दूरी तय करने के बाद केवल पंचर ठीक कराना होता था।'


दक्षिणमूर्ति बिल्कुल नहीं चाहते थे कि उनकी बूढ़ी मां को यात्रा के दौरान किसी तरह की तकलीफ ना हो। इसलिए उन्होंने स्कूटर में कुछ फेर-बदल करके उसमें फल, ककड़ी, चपटा चावल, चाकू, रेनकोट और गद्दे का साथ अन्य जरूरी समान रखने की जगह बना ली थी।





दक्षिणमूर्ति के पिता चार साल पहले गुजर गए थे। उसके बाद उनकी मां मैसूर में अकेले जिंदगी के दिन काट रही थीं। उस वक्त दक्षिणमूर्ति बेंगलुरु में एक कॉर्पोरेट टीम के लीडर के तौर पर काम कर रहे थे। दक्षिणमूर्ति जब घर जाते उन्हें अहसास होता था कि उनकी मां किस दौर से गुजर रही हैं।


वह विस्तार से बताते हैं,

'संयुक्त परिवार में मेरे पिता की मौत तक मेरी मां की भूमिका रसोई तक ही सिमटी थी। मैंने फैसला किया कि मेरी मां ने जो कुर्बानियां दी हैं, उनके हिसाब से वह अपने इकलौते बेटे के साथ अच्छा वक्त गुजारने के साथ ही गरिमापूर्ण जीवन की भी हकदार हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में भी माता-पिता की ही सेवा पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया है।'

एनडीटीवी के अनुसार, अपनी मां के प्रति एक बेटे के अनोखे समर्पण की दास्तान सोशल मीडिया की बदौलत दिग्गज कारोबारी आनंद महिंद्रा तक पहुंच गई।


इस विस्मयकारी सवारी के बारे में शब्द सोशल मीडिया की बदौलत इतने फैले कि जानेमाने उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने भी इसे लेकर ट्वीटकिया। इस मां-बेटे के प्यार और साहसिक भावना ने उन्हें काफी प्रभावित किया।


महिंद्रा ने ट्विटर पर लिखा,

'एक खूबसूरत कहानी। इससे एक बेटे का मां के साथ देश के प्रति प्यार का भी पता चलता है। इसे साझा करने के लिए मनोज का आभार। अगर आप कृष्णमूर्ति से मुझे मिलवा सकते हैं तो मैं उन्हें निजी तौर पर महिंद्रा केयूवी 100 एनएक्सटी गिफ्ट करना चाहूंगा, ताकि वह अगले सफर पर अपनी मां को कार में बिठाकर ले जा सकें।'