मिलिए कर्नाटक के 79 वर्षीय '10 रुपये वाला डॉक्टर' से, जो मन की शांति के लिए करते हैं गरीबों का 'फ्री' में इलाज
हाल ही में वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा के महत्वपूर्ण स्तंभ में, भारत सर्वेक्षण किए गए 141 देशों में 110 वें स्थान पर है। साथ ही, विभिन्न हेल्थकेयर काउंट पर इसका स्कोर वैश्विक औसत से काफी नीचे पाया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत को स्वस्थ जीवन प्रत्याशा के मापदंड पर कुल 141 देशों में 109वां स्थान मिला है। यह अफ्रीका महाद्वीप के बाहर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक है, साथ ही एशिया के सबसे निचले स्तर पर है।
हाल ही के वर्षों में सरकार ने आयुष्मान भारत जैसी पहलों को शुरू किया है। इन पहलों का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा वितरण और गुणवत्ता को संबोधित करने और देश में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज विकसित करना है। इसके अलावा, वर्षों में, व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों ने भी आगे आकर इस क्षेत्र में योगदान दिया है।
डॉ. अन्नाप्पा एन बाली भी एक ऐसे ही व्यक्ति हैं। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वह केवल परामर्श शुल्क के रूप में मरीजों से 10 रुपये ले रहे हैं, जिसमें दवाइयां, इंजेक्शन और अन्य उपचार भी शामिल हैं। उनके पास केवल तीन सदस्यीय टीम है जो उनकी सहायता करती है।
कर्नाटक के बेलगावी जिले के बैल्हंगल शहर के निवासी, 79 वर्षीय डॉक्टर, हर दिन अपने क्लिनिक में 75 से 150 रोगियों का इलाज करते हैं। उनका क्लीनिक सुबह 10 से 1:30 बजे तक और फिर शाम को 4 बजे से 7:30 तक खुलता है। उनके अधिकांश मरीज गरीब हैं। इसलिए वे केवल उनसे परामर्श के शुल्क के रूप में 10 रुपये लेते हैं और उनका इलाज मुफ्त में करते हैं।
स्टोरीपिक की रिपोर्ट के मुताबिक, इस अमूल्य सेवा के लिए, अन्नाप्पा को 'हट्टा रुपई डॉक्टर’ (10 रुपये वाला डॉक्टर) बुलाया जाता है।
गरीब परिवार से होने के कारण, अन्नाप्पा ने खुद अपने बचपन के दौरान बहुत सारी चुनौतियों का सामना किया था।
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा,
“मैं किसी तरह एक मुफ्त बोर्डिंग स्कूल में रहकर अपनी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम रहा। बाद में, मुझे कुछ लोगों द्वारा मदद मिली और केएमसी, हुबली में अपना एमबीबीएस पूरा करने में सक्षम रहा। फिर, मैंने 1978 में मैसूरु में ईएनटी में डिप्लोमा मिला।"
अपनी स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, अन्नाप्पा ने 1967 में सरकारी स्वास्थ्य विभाग में स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में शुरुआत की, 1998 में जिला सर्जन के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
वह कहते हैं,
''मुझे पता है कि गरीबी क्या होती है - मैंने भी इसे चखा है, मेरे पास अब पैसे कमाने का कोई कारण नहीं है। मैं सिर्फ मन की शांति चाहता हूं, जो मुझे गरीब मरीजों के इलाज से मिलती है।”
केवल 10 रुपये चार्ज करने का कारण, अन्नाप्पा बताते हैं, अगर इलाज पूरी तरह से मुफ्त दिया जाता है, तो उनके मरीज इसके महत्व को नहीं समझेंगे।