नौकरी छोड़ प्रोफेसर ने शुरू की सोलर लाइट पहुंचाने की मुहिम, 400 गांवों को कर चुकी हैं रौशन
चीन और अमेरिका के बाद भारत में सबसे ज्यादा बिजली का उत्पादन होता है और खपत के मामले में भी भारत तीसरा ऐसा देश है। लेकिन दुख की बात है कि देश की लाखों आबादी अभी भी अंधेरे में बसर करने के लिए मजबूर है। वैसे तो सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन एक एनजीओ भी ग्रामीण भारत के लाखों लोगों को अंधेरे से उजाले में लाने के लिए प्रयत्न कर रहा है। उस एनजीओ का नाम है चिराग रूरल डेलवपमेंट फाउंडेशन (CRDF)।
CRDF ने अभी हाल में ही महाराष्ट्र के पालघर जिले में मोखाड़ा और बलद्याछपाड़ा गांव में रोशनी फैलाकर 400वें गांव का लक्ष्य पूरा कर लिया है। एनजीओ अपने प्रॉजेक्ट चिराग के माध्यम से 16,000 घरों को सोलर लैंप पहुंचाने की दिशा में काम कर रहा है। इस प्रॉजेक्ट की शुरुआत एच आर कॉलेज ऑफ कॉमर्स में प्रोफेसर 62 वर्षीय प्रतिभा पई ने की थी। उन्होंने शुरू में छात्रों के साथ मिलकर इस मुहिम की शुरुआत की थी। छोटे स्तर पर शुरू हुई यह मुहिम आज विशाल रूप धारण कर चुकी है।
2011 में प्रतिभा ने अपनी पूर्णकालिक नौकरी छोड़ दी और इसे एनजीओ में बदलकर इसी के लिए काम करना शुरू कर दिया। वे इस बारे में बात करते हुए कहती हैं, 'भारत में ऐसे हजारों गांव हैं जहां अभी तक बिजली नहीं पहुंची है और हम ऐसे ग्रामीण भारत को रोशन करने में लगे हुए हैं।' इन नौ सालों में चिराग फाउंडेशन ने काफी महत्वपूर्ण काम किए हैं। प्रतिभा ने दिगांत स्वराज फाउंडेशन नाम के एक स्थानीय एनजीओ के साथ मिलकर भारत के 400 गांवों को रोशन कर दिया है। इससे प्रत्यक्ष तौर पर एक लाख से अधिक लोगों को फायदा हुआ है।
प्रतिभा कहती हैं, 'हम गांवों को उनकी बिजली की जरूरत के हिसाब से चुनते हैं और फिर वहां दौरा करते हैं। इसके बाद गांव में बिजली पहुंचाने की योजना बनाई जाती है। यह एक 360-डिग्री प्लान है जिसमें सिर्फ लोगों को प्रकाश नहीं मिलता बल्कि उनकी जिंदगी भी रोशन होती है। उनकी जिंदगी में काफी बदलाव आता है। गांव में शिक्षा, स्वास्थ और रोजगार के साथ-साथ पर्यावरण को भी लाभ पहुंचता है। '
एनजीओ चिराग कॉर्पोरेट्स और प्राइवेट कंपनियों के जरिए फंड्स की व्यवस्था करता है और गांव के लोगों से मामूली फीस लेकर उन्हें सोलर सिस्टम दे दिया जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सोलर सिस्टम्स पर गांव के लोगों का ही मालिकाना हक हो जाता है। दूसरी बात कि उन लोगों से कोई पैसा नहीं लिया जाता जो इसे दे पाने में सक्षम नहीं होते हैं।
इसके अलावा प्रतिभा का एनजीओ ग्रामीणों को सौर ऊर्जा का उपयोग करने और मिट्टी के तेल के उपयोग से बचने में मदद करने के लिए सेमिनार और अभिविन्यास कार्यक्रम भी आयोजित करता है। सौर पैनलों की स्थापना के अलावा, एनजीओ रोशनी को चालू रखने के लिए रखरखाव का काम करता है। प्रतिभा कहती हैं कि गंदा होने पर सोलर पैनल को सिर्फ पोंछना पड़ता है और तीन साल में एक बार बैट्री को बदलना पड़ता है। अगर इस बीच कोई समस्या आती है तो एनजीओ उसे ठीक करने का काम करता है।
यह एनजीओ केवल घरों के लिए लाइट नहीं उपलब्ध करवाता बल्कि स्ट्रीट लाइट और सोलर पंप की भी व्यवस्था की जाती है। लोगों को सोलर बैटरी खरीदने की जानकारी दी जाती है जिसकी लागत 300 रुपये से 500 रुपये के बीच कहीं भी हो सकती है। एनजीओ मेघालय, असम, उत्तरांचल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में काम कर रहा है। अब 2020 तक 15,000 गांवों को विद्युतीकृत करने और दो लाख लोगों को प्रभावित करने की योजना बन रही है।
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