Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

सुनिए तो, हिमालय पर बज रही है खतरे की घंटी!

सुनिए तो, हिमालय पर बज रही है खतरे की घंटी!

Monday September 02, 2019 , 4 min Read

"औद्योगीकरण, घटती हरियाली, बढ़ती आबादी और प्रदूषण, कीट नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण हिमालय की सैकड़ों औषधीय वनस्पतियों, वन्यजीवों, हजारों किस्म के फूलों, रंग-विरंगी तितलियों का जीवन इस समय गंभीर संकट से गुज़र रहा है। वैज्ञानिक इसे मानव जीवन के लिए एक बड़े खतरे की घंटी बता रहे हैं।"


himalaya

सांकेतिक फोटो (Shutterstock)



कुदरत की अदभुत नियामत हिमालय की औषधीय, वनस्पतियों, वन्यजीवों, हजारों किस्म के फूलों, रंग-विरंगी तितलियों का जीवन इस समय गंभीर संकट से गुज़र रहा है। इस संकट को मानव जीवन के लिए भी खतरे की घंटी माना जा रहा है। हिमाच्छादित श्रृखंलाओं के साथ घट रही इस विस्मयकारी विनाश लीला ने भारत के पर्यावण विज्ञानियों को गहरी चिंता में डाल दिया है।


इंटरनेशनल यूनियन फॉर कनजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्र में फूलों की 101 प्रजातियां संकट में हैं। डगमगाते पारिस्थितिकी तंत्र के जानकार एवं उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड  के सचिव एसएस रसाइली बताते हैं कि नुकसान न्यूनतम किए जाने की दिशा में अब बहुत तेज पहल बहुत जरूरी हो गई है। गौरतलब है कि विश्व के 25 अति महत्वपूर्ण जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से दो भारत में हैं, पश्चिमी घाट और हिमालय। औद्योगीकरण, बढ़ती आबादी, प्रदूषण, घटती हरियाली, कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से हिमालय पर यह मुसीबत गहराई है। 


एक ताज़ा वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, भारत की साढ़े चार हजार से अधिक पौध-प्रजातियों में से लगभग साढ़े तीन हजार, 447 पक्षी-प्रजातियां और 83 मत्स्य-प्रजातियां, कुल 3120 ओनजियोस्पर्म और 13 जिमनोस्पर्म फूल तो अकेले हिमाचल प्रदेश में ही हैं। करीब 60 प्रजातियों के औषधीय पौधों के दोहन से भी यह संकट बढ़ता जा रहा है। उत्तराखंड में फूलों की 213 फैमिली, 1503 जेनेरा प्रजातियों में से 93 संकटग्रस्त हैं।


इसी तरह वन्यजीवों की 3748 प्रजातियों में से 451 प्रजातियों को पहली बार रिपोर्ट किया गया है। राज्य में पक्षियों की 743, तितलियों की 439 और पौधों की सात हजार प्रजातियां हैं। इसी तरह जम्मू-कश्मीर-लद्दाख में फूलों की कुल 4 प्रजातियों में सगंध पादपों, फूलों और औषधीय पौधों की 55 प्रजातियां खतरे में हैं। इन जीवों की सुरक्षा की दिशा में पहल करते हुए भारत में दशकों पहले 1980 में ही वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन किया जा चुका है। 




हिमालय की हजारों किस्म की औषधीय वनस्पतियों, फूल-पौधों, तितलियों, वन्य जीवों को पर्यावरण के संकट बचाने की कोशिशें हो तो रही है, लेकिन विशेषज्ञ कह रहे हैं कि उनके अपेक्षित संरक्षण अब बहुत देर हो चुकी है। अभी तक यही स्पष्ट नहीं हो सका है कि हिमालयी वैटलैंड की स्थिति क्या है। इस दिशा में भारतीय वन्य जीव संस्थान, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सहयोग से सक्रिय हुआ है। जैव विविधता बोर्ड लोगों के सहयोग से सुरक्षात्मक मोरचे पर प्रबंध कमेटियों का गठन कर रहा है। हिमालयी राष्ट्रीय उद्यानों, पार्कों, वन्यजीव विहारों, जमीनी आर्द्रता आदि को संरक्षित किया जा रहा है। बायो डायवर्सिटी बोर्ड की ओर से अब तक 5529 जैव विविधता प्रबंधन समितियां गठित हो चुकी हैं।


पर्यावरणविदों, जीव वैज्ञानिक के मुताबिक तितली प्रकृति के सबसे करीब रहने वाली प्राणी है। फसलों, पेड़-पौधों का 80 प्रतिशत पॉलीनेशन मधुमक्खियों और तितलियों से होता है। दिल्ली के अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क (एबीपी), वसंत विहार, यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क (वाईबीपी), वजीराबाद और असोला भाटी वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी, लोधी गार्डन में तितली पार्क भी बनाए गए हैं। तितलिों की गतिविधियां मौसम का पूर्वानुमान भी करा देती हैं।


हमारे देश में तितलियों की तो 2000 से भी ज्यादा प्रजातियां हैं, जिनमें से करीब 1800 प्रजातियों नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में ही हैं। इस समय पूरी दुनिया के प्रकृति शास्त्री और शोधार्थी उनके विनाश को लेकर चिंता में हैं। इस दिशा में विभिन्न सामाजिक संगठन भी उठ खड़े हुए हैं। यूएस के एक नागरिक ने तो अपने दो कीमती साल हजारों डॉलर खर्च करते हुए कैलीफोर्निया में समाप्ति की कगार पर पहुंच चुकीं तितलियों को बचाने में लगा दिए हैं।