मंदी की इस भुतही आहट को जरा गौर से सुनिए और चौकन्ना हो जाइए!
"इस चुड़ैल मंदी की पदचाप को जरा गौर से सुनिए कि किस तरह पिछले साढ़े चार दशक में पहली बार अपने चरम पर जा पहुंची बेरोजगारी का आंकड़ा छह फीसदी की सीमा पार कर चुका है। पिछले 17 वर्षों में पहली बार सेंसेक्स की भारी गिरावट ने तीस बड़ी कंपनियों के 17 लाख करोड़ रुपए डुबो दिए हैं।"
व्यापार को कठिनाई में बदल रहे ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस के दौर में पिछले 17 वर्षों में पहली बार भारत के पांच ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनने से पहले ही पिछले महीने जुलाई में सेंसेक्स की भारी गिरावट ने तीस बड़ी कंपनियों के 17 लाख करोड़ रुपए डुबो दिए। इसे हमारे देश की अर्थ व्यवस्था को मंदी का करारा झटका माना जा रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था भी लगातार तनावपूर्ण व्यापारिक वार्ता के वातावरण में अनिश्चितता की ओर जा रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने भारत की वृद्धि दर का अनुमान घटा दिया है।
दुनिया की सबसे तेज इकोनॉमी वाली भारतीय अर्थव्यवस्था अपने पांच साल के निचले स्तर पर आ गई है। वर्ष 2008 से भी बड़ी तबाही की आहट वाली मंदी की यह पदचाप बिना कुछ बोले बहुत कुछ कह रही है। मैन्युफ़ैक्चरिंग, ऑटोमोबाइल, हाउसिंग, फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स, उपभोक्ता बाज़ार सेक्टर पर इस भयानक मंदी का साया साफ नजर आने लगा है। ऐसे में भारत के कॉरपोरेट घराने और कंपनियां अपने भारी-भरकम खर्चों में कटौती के लिए अलर्ट मोड में आ गई हैं। इसका पहला असर इस रूप में सामने आ रहा है कि नौकरियों में केवल रिप्लेसमेंट के तौर पर भर्तियां हो रही हैं।
मंदी की पदचाप से सहमी अमेरिकी इकोनॉमी हाफने लगी है। वर्ष 2008 की मंदी के बाद पहली बार अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने अपनी ब्याज दरें घटा दी हैं। उसके 3.8 ट्रिलियन डॉलर के एसेट पोर्टफोलियो में भी कटौती के संकेत हैं। उधर, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में भी मंदी की पदचाप साफ-साफ सुनी जा रही है। उसकी की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर लगातार घट रही है।
इस तरह चारों ओर से उभरते विपरीत संकेतों के बीच हतोत्साहित हो रहे भारतीय कारोबार जगत में मंदी के इस काले झोके को अरबों रुपए के सालाना कारोबार वाले गुजरात के कपड़ा बाजार में तीस फीसदी गिरावट के रूप में भी देखा जा रहा है। देश की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति का एकीकृत शुद्ध लाभ चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 31.67 प्रतिशत घटकर 1,376.8 करोड़ रुपये रह गया है। मंदी की इसी कड़ी मार से जोड़कर टैक्स और कर्ज़ के आतंक से सहमे दुनिया के सबसे बड़े ब्रांडों में एक भारत (बेंगलुरु) कैफ़े कॉफ़ी डे के मालिक वीजी सिद्धार्थ के देहावसान को भी जोड़कर देखा जा रहा है।
इस संकट के जरा गौर से देखिए कि मंदी के कैसे-कैसे रंग भारतीय बाजार-कारोबार में दिख रहे हैं। देश की प्रमुख ऑटो कंपनी टाटा मोटर्स को चालू तिमाही में 3,679.66 करोड़ रुपए की चपत लगी है। पिछले साल के मुकाबले दोगुना घाटा हुआ है। उसने ब्लॉक क्लोजर शुरू करते हुए कहा है कि घरेलू ऑटो उद्योग में भारी मंदी छा गई है। जबरदस्त मंदी के दौर से गुजर रहे सूरत (गुजरात) के डायमंड उद्योग की वराछा, कापोद्रा, कतारगाम और महीधरपुरा इलाके की फैक्ट्रियों में काम करने वाले बीस से अधिक कर्मचारी आत्महत्याएं कर चुके हैं।
परिवहन सेक्टर की विशेषज्ञ आइएफटीआरटी के मुताबिक, मंदी के इस दौर में माल ढुलाई के पर्याप्त ऑर्डर नहीं मिलने से ट्रांसपोर्टरों की बुकिंग में भारी गिरावट ने सड़कों पर दौड़ रहे चालीस फीसदी खाली खड़े ट्रकों के पहिए थाम दिए हैं। हर तरह की गाड़ियों की बिक्री भी लगातार घटती जा रही है। ऑटो कंपनियों ने प्रोडक्शन घटा दिए हैं। गाड़ियों के बड़े बड़े शोरूम बंद हो रहे हैं। सर्विसिंग सेंटरों पर ताले लटकने लगे हैं। उत्पादन ठप होने की वजह से ऑटो सेक्टर में काम कर रहे दस लाख लोगों की नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।
इस चुड़ैल मंदी की पदचाप को जरा गौर से सुनिए कि किस तरह पिछले साढ़े चार दशक में पहली बार अपने चरम पर जा पहुंची बेरोजगारी का आंकड़ा छह फीसदी की सीमा पार कर चुका है। खुद सरकार तीन लाख रेल कर्मचारियों की छंटनी कर उनकी जगह कोई नई भरती नहीं करने की घोषणा कर चुकी है। बाईस लाख सरकारी पद पहले से ही खाली चल रहे हैं। भारत संचार निगम लिमिटेड और बीएसएनएल दिवालिया होने की कगार पर जा पहुंचे हैं। उनके और निजी दूरसंचार कंपनियों के बड़ी संख्या में कर्मचारियों पर भी छंटनी की तलवार लटक रही है। मंदी ने मोबाइल हैंडसेट सेक्टर की भी कमर टेढ़ी कर दी है। कपड़ा उद्योग से लेकर हीरा उद्योग तक, वाहन से लेकर संचार तक हर जगह हालात तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं। संगठित-असंगठित दोनो क्षेत्रों में तेजी से बड़ी संख्या में नौकरियां जा रही हैं।