मंदिर वाले कचरे के 'नंदनवन' से करोड़पति बन गए गुजरात के हितेंद्र रामी
माउंट आबू (राजस्थान) से सटे बनासकांठा (गुजरात) में एक सैकड़ो वर्ष पुराना अंबा मंदिर है, जिससे निकलने वाले चढ़ावे के लाखो टन कचरे (नारियल के छिलके, फूल आदि) को रिसाइकल कर मेहसाणा के हितेंद्र रामी कई तरह के प्रोडक्ट बना रहे हैं। इस अनोखे बिजनस का सालाना टर्नओवर दो करोड़ रुपए से ज्यादा का हो चुका है।
अब तो हमारे देश के टॉप बिजनेस स्कूल भी स्टुडेंट्स को कचरा प्रबंधन की शिक्षा देने लगे हैं। कई संस्थाएं अपने-अपने स्तर पर कचरे से आमदनी कर रही हैं। कई शहरों के नगर निगम भी कूड़े से कमाई की योजनाओं पर काम कर रहे हैं। मसलन, बेंगलुरु की एक कंपनी घरों के कूड़े का निस्तारण करने के साथ ही उससे मुनाफा भी कमाती है। वेल्थ आउट ऑफ वेस्ट (वॉब) नाम से घरों से निकलने वाले कचरे से पैसा कमाने का अनोखा मिशन शुरू किया गया है। दिल्ली में 5300 मीट्रिक टन कूड़ा रोजाना ट्रीटमेंट प्लांट में पहुंच जाता है लेकिन बनासकांठा (गुजरात) के अम्बा मंदिर से निकले कचरे से मेहसाणा के बावन वर्षीय हितेंद्र रामी ने करोड़ो रुपए की कमाई का जैसे रिकार्ड ही बना दिया है।
हितेंद्र रामी माउंटआबू (राजस्थान) से सटे बनासकांठा के अंबा मंदिर से निकले पंद्रह-बीस रुपए के नारियल के छिलके से देव प्रतिमाएं, जूते, चप्पल आदि बनाकर दो-ढाई हजार रुपए कमा लेते हैं। वह मंदिर के ध्वजा, चुनरी, फूल-प्रसाद आदि की रिसाइकलिंग कर तरह-तरह के प्रोडक्ट्स बना रहे हैं। चढ़ावे के बासी फूलों से वह सुगंधित साबुन, गुलाब जल, फेयरनेस क्रीम, इत्र आदि का भी प्रोडक्शन करने लगे हैं। इस 'नंदनवन' नाम के बिजनस में उनका दो करोड़ रुपए से अधिक का सालाना टर्नओवर है। इसमें आदिवासी महिलाओं समेत चार-पांच सौ लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है।
अब से लगभग तेईस साल पहले पहले गॉर्डन मैनेजमेंट का काम करते रहे रामी के पैरों में चिपक गए नारियल के एक छिलके ने उनकी किस्मत का ताला खोल दिया। उस छिलके से उन्हे आइडिया मिल गया कि यूं ही फेक दिए जा रहे इस कचरे से तो बहुत कुछ बनाया जा सकता है। फिर क्या था, उन्होंने नारियल के छिलके से 'नंदनवन' नाम से हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स बनाने का संकल्प लिया। उन्हे अंबा मंदिर कचरे का एक बड़ा ठिकाना लगा तो वहीं सामने उन्होंने अपने प्रोडक्ट्स बेचने के लिए दुकान भी खोल ली। अंबा मंदिर से हर साल चढ़ावे का लाखों टन कचरा निकलता है। पहले मंदिर प्रबंधन उसे डंपयार्ड पहुँचाता रहा है।
हितेंद्र रामी को अंबा मंदिर के छिलके, फूल आदि कचरे के अलावा नारियल विक्रेताओं से छिलके थोक में मिलने लगे। रामी छिलके के कचरे को रिसाइकल कर चप्पल, सजावटी झूमर, टोकरी, मूर्तियाँ आदि तैयार कराने लगे। बासी फूलों से साबुन, इत्र आदि तैयार होकर उनकी दुकान पर पहुंचने लगा। वर्ष 1998 से मंदिर के पास वाली अपनी दुकान पर चालीस-पचास रुपए से लेकर पांच लाख रुपए तक के हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स सजा दिए। धीरे-धीरे बिक्री बढ़ने लगी और रामी का प्रोडक्श भी परवान चढ़ने लगा।
इससे पहले हितेंद्र ने आसपास के आदिवासी बहुल गांवों से मानव श्रम का इंतजाम किया। इस समय उनके कारखाने में रिसाइकलिंग आदि के काम कर रहे लोग भी दस-पंद्रह हजार रुपए महीने कमा लेते हैं। हितेंद्र रामी अपनी बेमिसाल कामयाबी के लिए गुजरात नारियल विकास बोर्ड द्वारा सम्मानित भी हो चुके हैं।